क्या बोले रक्षामंत्री
रक्षा मंत्री ने इस क्षमता को हासिल करने में कड़ी मेहनत और तालमेल के लिए भारतीय नौसेना, डीआरडीओ और उद्योग की सराहना की। उन्होंने इस आत्मनिर्भरता को आत्मशक्ति की नींव बताया। उन्होंने कहा कि इस परियोजना के माध्यम से देश के औद्योगिक क्षेत्र, विशेषकर एमएसएमई को भारी बढ़ावा मिला है और रोजगार के अधिक अवसर पैदा हुए हैं।INS Arighat: जानिए किन-किन खूबियों से है लैस
अरिहंत श्रेणी की दूसरी पनडुब्बी अरिघात अरिहंत का उन्नत स्वरूप है और यह अत्याधुनिक हथियार प्रणाली तथा उपकरणों से लैस है। इसे कठिन तथा निरंतर परीक्षणों की सफलता के बाद नौसेना को सौंपा गया है। अरिघात की लंबाई 112 मीटर, चौड़ाई 11 मीटर तथा इसका वजन 6 हजार टन है । पनडुब्बी में घातक के-15 मिसाइलें लगी हैं जो 750 किलोमीटर तक मार करने में सक्षम हैं। इसकी विशेषता यह है कि यह दुश्मन को चकमा देकर उसकी पकड़ में आये बिना हमला करने में सक्षम है। पनडुब्बी डेढ हजार फुट से भी अधिक गहराई तक पानी में जा सकती है। देश में तीसरी परमाणु पनडुब्बी अरिदमन भी बनायी जा रही है और कुछ वर्षो में यह भी नौसेना के बेड़े में शामिल हो जायेगी।INS Arighat: महीनों तक पानी के भीतर रह सकती हैं
अरिहंत और अरिघात में 83 मेगावाट के लाइट वाटर रिएक्टर हैं जिनसे इनका संचालन किया जाता है। परमाणु रिएक्टरों के कारण ये पनडुब्बी परंपरागत पनडुब्बियों की तुलना में महीनों तक पानी के भीतर रह सकती हैं। सिंह ने पूर्व प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की राजनीतिक इच्छाशक्ति को याद करते हुए, जिसने भारत को एक परमाणु हथियार संपन्न देश के बराबर खड़ा किया, रक्षा मंत्री ने कहा, “आज, भारत एक विकसित देश बनने के लिए आगे बढ़ रहा है। विशेषकर आज के भू-राजनीतिक परिदृश्य में रक्षा सहित हर क्षेत्र में तेजी से विकास करना हमारे लिए आवश्यक है। हमें आर्थिक समृद्धि के साथ-साथ मजबूत सेना की भी जरूरत है. हमारी सरकार यह सुनिश्चित करने के लिए मिशन मोड पर काम कर रही है कि हमारे सैनिकों के पास भारतीय धरती पर बने उच्च गुणवत्ता वाले हथियार और प्लेटफॉर्म हों।” INS Arighat के निर्माण में उन्नत डिजाइन और विनिर्माण प्रौद्योगिकी, विस्तृत अनुसंधान और विकास, विशेष सामग्रियों का उपयोग, जटिल इंजीनियरिंग और अत्यधिक कुशल कारीगरी का उपयोग शामिल था। इसे स्वदेशी सिस्टम और उपकरण होने का गौरव प्राप्त है, जिनकी संकल्पना, डिजाइन, निर्माण और एकीकरण भारतीय वैज्ञानिकों, उद्योग और नौसेना कर्मियों द्वारा किया गया था।