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इंफोसिस सह संस्थापक नारायण मूर्ति ने मां को किया याद और शेयर की ऐसी घटना की सब चौंक गए

Infosys co-founder Narayana Murthy इंफोसिस के सह.संस्थापक नारायण मूर्ति ने रविवार को एक ऐसी बात कहीं, जिसे सुनकर सब चौंक गए। नारायण मूर्ति बेहद अफसोस के साथ कहा कि, उन्होंने अपनी मां को इंफोसिस आने के लिए तब आमंत्रित किया, जब वह मर रही थीं।

Apr 02, 2023 / 10:01 pm

Sanjay Kumar Srivastava

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इंफोसिस सह संस्थापक नारायण मूर्ति ने मां को किया याद और शेयर की ऐसी घटना की सब चौंक गए

इंफोसिस के सह.संस्थापक नारायण मूर्ति ने रविवार को एक ऐसी बात कहीं, जिसे सुनकर सब चौंक गए। नारायण मूर्ति बेहद अफसोस के साथ कहा कि, उन्होंने अपनी मां को इंफोसिस आने के लिए तब आमंत्रित किया, जब वह मर रही थीं। नारायण मूर्ति ने महात्मा गांधी को अपनी प्रेरणा बताते हुए कहाकि, उनका मानना था कि जब भी आप कोई निर्णय लें तो उन गरीब लोगों के बारे में सोचें जो उस फैसले से प्रभावित होंगे। नारायण मूर्ति ने विनम्रता के महत्व पर जोर देते हुए कहा, मेरे कॉलेज में और बाद में मेरे उद्योग में मुझसे ज्यादा होशियार लोग थे। लेकिन विनम्रता एक ऐसी चीज है, जिसने मुझे अपने करियर में ऊंची उड़ान भरने में मदद की। हमेशा अपने पैर जमीन पर रखें। मौका था रविवार 2 अप्रैल को एक उद्यमी और भारतीय प्रबंधन संस्थान अहमदाबाद के पूर्व छात्र मदन मोहनका की एक जीवनी के विमोचन का। इंफोसिस के सह.संस्थापक नारायण मूर्ति ने विज्ञापन पेशेवर अंजना दत्त की लिखी किताब का विमोचन किया था। इस किताब का नाम आई डिड व्हाट आई हैड टू डू है। यह किताब मोहनका की सफलता और विश्वास प्रणालियों का विवरण देती है, जिसने उनकी उल्कापिंड के बारे में खोज का मार्ग प्रशस्त किया।
अपने वेतन का सिर्फ 1/10वां हिस्सा लेते थे

इंफोसिस के सह.संस्थापक नारायण मूर्ति ने एक बात साझा की, जिसमें बताया कि, मुझे बुरा लगता है कि, मैंने अपनी मां को इंफोसिस आने के लिए तभी आमंत्रित किया जब वह मर रही थीं। मैं इंफोसिस बनाने में इतना व्यस्त था। इसके बाद उन्होंने 1990 के दशक में परामर्श और आईटी सेवाओं में एक वैश्विक नेता, इंफोसिस के निर्माण में अपने अनुभव के बारे में बताया। उन्होंने बताया कि कैसे वे अपने वेतन का केवल 1ध्10वां हिस्सा लेते थे। और अपने कनिष्ठ सहयोगियों को 20 प्रतिशत अतिरिक्त देते थे। उदाहरण के लिए नेतृत्व करते थे और अपनी टीम के बीच जिम्मेदारी की भावना पैदा करते थे।
नारायण मूर्ति ने मोहनका की कहानी की प्रशंसा की

अपने भाषण में नारायण मूर्ति ने मोहनका की कहानी की प्रशंसा करते हुए कहा कि, यह इच्छुक उद्यमियों के साथ.साथ व्यापारिक नेताओं के लिए मूल्यवान अंतर्दृष्टि और प्रेरणा प्रदान करती है। उन्होंने कहा, एक व्यक्ति जो कार्रवाई में विश्वास करता है, उसकी जीवनी का उपयुक्त शीर्षक आई डिड व्हाट आई हैड टू डू है और मुझे उसके जीवन, उसके व्यावसायिक कौशल और वंचितों के लिए शिक्षा के प्रति उसके समर्पण के बारे में पढ़कर बहुत अच्छा लगा।
मदन मोहनका 1943 में हुआ था जन्म

मदन मोहनका 1943 में पैदा हुए। उन्होंने उदारीकरण के बाद के भारत को देखा है और दुनिया की वित्तीय राजधानी में रहकर देश के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।

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