ये हैं भारत के गृह मंत्री अमित शाह। जब उन्होंने साक्षात्कार के लिए ‘पत्रिका’ को रात साढ़े नौ बजे का समय दिया, तो आश्चर्य होना स्वाभाविक था। दिन भर बैठकों, फाइलों और दिशा-निर्देशों में व्यस्त रहने के बावजूद उन जैसे व्यक्ति को कानून जैसे जटिल विषय पर सवा घंटे तक सहजता से बातचीत करते देख हैरानी होती रही, वह भी आराम करने के समय! जयपुर में पुलिस महानिदेशकों की तीन दिन की मैराथन कॉन्फ्रेंस की थकावट का उन पर किंचित भी असर दिखाई नहीं दिया। नई दिल्ली पहुंचने पर उनके सरकारी निवास पर ‘पत्रिका’ समूह के डिप्टी एडिटर भुवनेश जैन के साथ हुई लम्बी चर्चा में शाह ने न्यायिक कानूनों से लेकर विभिन्न राजनीतिक विषयों पर सवालों के जवाब दिए।
सवाल: देश की न्यायिक प्रक्रिया के साथ सबसे बड़ी शिकायत यह रही है कि समय पर लोगों को न्याय नहीं मिल पाता है। अदालतों में सालों साल तक सुनवाई चलती रहती है और न्याय की उम्मीद में लोगों के जीवन समाप्त हो जाते हैं। इन नए आपराधिक न्याय के कानूनों में समय पर न्याय के लिए क्या प्रयास किए गए हैं?
शाह : देखिये, कुल मिलाकर पुलिस, प्रॉसिक्यूशन की प्रक्रिया और न्यायिक प्रक्रिया, इन तीनों कानूनों में, समय पर न्याय मिले, इसके लिए हमने 35 अलग-अलग सेक्शनों में टाइम लाइन जोड़ी हैं। जैसे – अब चार्जशीट के लिए 90 दिन का ही समय मिलेगा। जज को सुनवाई समाप्त करने के बाद 45 दिन में जजमेंट देना ही होगा। पहली सुनवाई के 60 दिन में ही आरोप तय करने होंगे। इस तरह के कई अलग-अलग प्रावधान कर समय मर्यादा को सीमित करने का प्रयास किया गया है। मैं विश्वास से कह सकता हूँ कि जब पूरे देश में ये नए कानून लागू हो जाएँगे, तो उसके बाद अपराध होने के तीन साल के अंदर पीडि़त को न्याय मिल पाएगा। पहले सालों तक न्याय नहीं मिलता था, अपराधी इससे खौफ भी नहीं खाते थे। एक तरह से “मिसकैरेज ऑफ़ जस्टिस” होता था। अब समय पर न्याय मिलने की शुरूआत होगी।
सवाल: भारत की पारंपरिक आपराधिक न्याय प्रक्रिया कभी-कभी मशीनी भी लगती थी। आपने कहा था कि ये नए आपराधिक न्याय के कानून दंड नहीं न्याय केन्द्रित हैं। न्याय को आपराधिक कानून के केन्द्र में लाने के लिए क्या नए उपाय किए गए हैं?
शाह: हमने सभी कानूनों को न्याय आधारित किया है और भारत के मूल न्याय दर्शन के अनुरूप बनाया है। मैं आपको छोटा सा उदाहरण देता हूँ। जैसे, पहले किसी के साथ चीटिंग होती थी, तो चीटिंग करने वाले को सजा हो जाती थी। यह तो दंड हो गया, लेकिन जिसके साथ चीटिंग हुई उसको क्या मिला? अब यह होगा कि चीटिंग करने वाले की चीटिंग से अर्जित होने वाली संपत्ति की नीलामी की जाएगी और पीड़ित की भरपाई की जाएगी। यह न्याय का कॉन्सेप्ट पहली बार आया है। इसी तरह, पहले सालों तक फैसले नहीं आते थे। लोग सालों तक जेलों में पड़े रहते थे। अब हमने तय किया है कि किसी ने पहली बार अपराध किया हो और उस अपराध में जितनी सजा का प्रावधान हो, उसकी एक तिहाई सजा काट चुका हो, तो उसे जमानत दी जा सकती है और दूसरी बार अपराध किया है। इसमें हमने गंभीर अपराधों को बाहर रखा है, जैसे देशद्रोह है, बलात्कार है, चरस-गांजा आदि पर, जो छोटे अपराध हैं, जैसे चोरी-चकारी और एक्सीडेंट, इनमें अन्याय हो रहा था। लोग अपराध की सजा से ज्यादा समय जेल में काट रहे थे। ऐसी छोटी-छोटी कई धाराओं में हमने ‘दंड’ की जगह ‘न्याय’ का प्रावधान किया है। अंग्रेजों ने जो कानून बनाये थे, वे सत्ता सँभालने के लिए बनाये थे। पहली बार संविधान की भावना के अनुकूल – सबके साथ समान व्यवहार, नागरिक के सम्मान का अधिकार और न्याय- इन तीनों कॉन्सेप्ट को नयी संहिताएँ चरितार्थ करेंगी, इसका मुझे पूरा विश्वास है।
सवाल: पुराने आपराधिक कानूनों में महिलाओं और बच्चों को लेकर क्या बदलाव किए गए हैं?
शाह: सबसे पहले हमने कंसेप्चुअल बदलाव किया है। पुराने कानून देख लीजिये। सबसे पहले रेलवे की लूट का , फिर राजद्रोह का, फिर सरकारी खजाने की लूट का और सरकारी अधिकारियों पर हमले का कानून है। इनके केंद्र में नागरिक नहीं था। अंग्रेजों ने अपनी सरकार बचाने के लिए ये कानून बनाए थे। मानव वध से बड़ा अपराध क्या हो सकता है? लेकिन, इसका नंबर 302 था। बलात्कार का नंबर उसके भी पीछे था। हमने शुरुवात महिलाओं और बच्चों के साथ अपराधों से की है। पहला चैप्टर महिला और बच्चों सम्बन्धी अपराध का है। हमने गैंग रेप में आजीवन कारावास का प्रावधान किया है। नाबालिग के साथ बलात्कार के मामलों में मौत की सजा का प्रावधान किया है। पहले पीड़िता के बयान के खिलाफ साँठ-गाँठ हो जाती थी। अब पीडि़ता के बयान की रिकॉर्डिंग अनिवार्य की गई है। वह बयान पीडि़ता के अभिभावकों की मौजूदगी में ही हो सकता है, जिससे दबाव न रहे। सबसे बड़ी बात यह कि अब ऑनलाइन एफआईआर का प्रावधान किया गया है। महिलाओं व बच्चों के अपराध से संबंधित 35 धाराएँ हैं, जिनमें लगभग 13 नए प्रावधान हैं और बाँकी में संशोधन किए गए हैं। त्वरित न्याय और पीड़ित को समाज की शर्म से बचाने के लिए भी प्रक्रियाओं को बदला गया है।
सवाल: हमारी न्यायिक प्रणाली के साथ बड़ी समस्या यह भी रही कि घोषित अपराधी कई तरह के लूप्स का सहारा लेते थे। इसमें क्या बदलाव किए हैं?
शाह: इसके लिए हमने दो प्रावधान किये हैं। जो प्रोक्लेम्ड ऑफेंडर हैं और न्यायिक प्रक्रिया के बाद वे विदेश भाग गए हैं, तो उनकी संपत्ति जब्त होकर कुर्क होगी। लेकिन, जो ऐसे भगोड़े हैं, जो वर्षों से बाहर हैं, जैसे मुंबई ब्लास्ट के आरोपी दाउद इब्राहिम। सब जानते हैं वह कहाँ है, पर उस पर केस नहीं चल सकता। ऐसे ही कई लोग आर्थिक अपराध करके भाग गए। अब हमने ऐसे लोगों के लिए ‘ट्रायल इन अब्सेंसिया’ का प्रावधान किया है। अब उनकी गैर-मौजूदगी में भी उनपर केस चलेगा। जज उसके बचाव के लिए एक वकील देंगे। अगर उसको चैलेंज करना है, तो उसे तीन साल के अंदर समर्पण करने का मौका मिलेगा, अन्यथा उसे सजा हो जाएगी। इससे वे जहाँ भी छिपे हैं, उनके प्रत्यर्पण के लिए रास्ता खुलेगा। इन बदलावों के बाद जो लोग अपराध करके विदेश भाग जाते थे, उन पर नकेल कसना आसान हो जाएगा।
सवाल: नया युग तकनीक का है। देश और दुनिया की सारी चीजें तकनीक संपन्न होती जा रही हैं। केवल न्यायिक प्रक्रिया अभी भी पुराने तौर तरीकों से ही चल रही है। नए युग की तकनीकों को समाहित करने के लिए क्या बदलाव किए गए हैं?
शाह : 2019 में कानून पर विचार हमने शुरू किया। उसके बाद 2023 तक इसका पूरा खाका हमने खींचा। जेल, कोर्ट, गृह विभाग, एफएसएल और थाने पहले ही तकनीकी नेटवर्क से जुड़े हुए हैं। अब हमने पूरी न्यायिक प्रक्रिया को नई तकनीक से लैस करने का निर्णय किया है। पहले आर्थिक अपराधों में लाखों पेज की चार्जशीट दी जाती थी। अब पेन ड्राइव होंगे। ऑनलाइन बयान और ट्रायल भी हो सकते हैं। जीरो एफआईआर ऑनलाइन रजिस्टर हो सकेगी। चार्जशीट पूरी डिजिटल होगी। 90 दिन में आपके केस का स्टेटस पुलिस को आपको बताना होगा। सम्मन ऑनलाइन दिए जाएँगे। सात साल से ज्यादा की सजा वाले मामलों में फोरेंसिंक को अनिवार्य कर दिया है। ऑनलाइन गवाही, कोर्ट में ऑडियो वीडियो रिकार्डिंग और ई -पेशी भी हो पाएगी। थानों में अनेक मामलों से सम्बंधित पड़े मालों का मुद्दा – जैसे चोरी की साइकिलें, ऑटो, शराब ट्रांसपोर्ट करने वाला वाहन अदि, इनकी विडिओग्राफी करके इन्हें नष्ट भी किया जा सकेगा और बेचा भी जा सकेगा। इससे कोर्ट और थानों की जमीनें खाली होंगी। पुलिस ऑफिसर को ट्रांसफर होने के बाद तीस-तीस साल बाद तक गवाही के लिए नहीं जाना पड़ेगा। अब वहीं पर तैनात अधिकारी रिकॉर्ड देखकर गवाही देगा। इससे न्याय में तकनीक का उपयोग बहुत बढ़ा है। मैं विश्वास से कह सकता हूँ कि तीनों संहिता लागू होने के बाद विश्व का सबसे आधुनिक क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम भारत का होगा। आज से लेकर आने वाले 50 साल तक आने वाली सभी तकनीकों को ध्यान में रखते हुए कानूनों की व्याख्याएँ बना दी गयी हैं, जिससे सिर्फ नोटिफिकेशन निकालना पड़ेगा, बेसिक कानून को नहीं बदलना पड़ेगा। जैसे “डॉक्यूमेंट” की व्याख्या में हमने ई-रिकॉर्ड को शामिल कर दिया है। अब कोई भी नयी तकनीक आती है तो ई-रिकॉर्ड की व्याख्या में उसको जोड़ दिया जाएगा, कानून को नहीं बदलना पड़ेगा। हमने बेसिक कानून को अगले 50 साल तक की तकनीक को देखकर पुख्ता कर दिए हैं।
सवाल: पारंपरिक न्याय व्यवस्था में अपील एक समस्या बनी हुई थी। इसकी जटिलता के कारण एक पक्ष हमेशा इससे वंचित रह जाता था। इस दृष्टि से डायरेक्टर ऑफ प्रॉसिक्यूसन का कॉन्सेप्ट क्या है?
शाह: देखिये, मोदी जी का बड़ा आग्रह था कि भ्रष्टाचार पर भी अंकुश लगना चाहिए और न्याय मिलने की गति भी बढ़ना चाहिए। अगर पीड़ित कमजोर है, तो कई बार पुलिस, प्रॉसिक्यूशन और न्याय प्रक्रिया मिलकर उसके साथ अन्याय कर देते थे, क्योंकि उसकी अपील का निर्णय ये तीन ही करते थे। अब जिला स्तर व राज्य स्तर पर डायरेक्टर ऑफ़ प्रॉसिक्यूशन की अलग व्यवस्था की गई है। सजा की अवधि और धाराओं के अनुसार अपील का फैसला सहायक निदेशक से निदेशक स्तर तक होगा। स्वतंत्र अपील के लिए अलग व्यवस्था कर दी है। इससे भ्रष्टाचार कम होगा। यह मोदी जी की इच्छा थी।
सवाल: हमारे देश में एक बड़ी संख्या उन लोगों की है जो साक्ष्यों के अभाव में छूट गए। नए युग में फोरेंसिंग इससे निपटने का मजबूत माध्यम हो सकता है। नए कानून में इसके लिए क्या प्रावधान किए गए हैं?
शाह: इसमें भी प्रधानमंत्री जी की दूरदर्शिता से हमने शुरू से ही ट्रेंड मैनपॉवर की व्यवस्था की थी। फोरेंसिक साइंस को अनिवार्य करना तो सरल है, लेकिन इसके लिए ट्रेंड मैनपॉवर जरूरी थी। हमने फोरेंसिंक साइंस यूनिवर्सिटी बनाई, जिसकी अब नौ राज्यों में शाखाएँ हैं। हर साल बड़ी संख्या में साइंटिफिक फोरेंसिक ऑफिसर निकल रहे हैं। हमने देश भर में मोबाइल फोरेंसिक वैन का प्रावधान किया है। यह प्रयोग चंडीगढ़, दिल्ली और कर्णाटक में सफलतापूर्वक शुरू भी हो गया है। सात साल या उससे अधिक सजा वाले मामलों में फॉरेंसिक विजिट को जरूरी कर दिया गया है। मैं मानता हूँ कि इससे कन्विक्शन रेश्यो 90 प्रतिशत लाने का लक्ष्य हम पूरा कर पाएँगे। आने वाले पाँच सालों में हम देश भर में इसका सम्पूर्ण इंफ्रास्ट्रक्चर बना पाएँगे, इसका मुझे विश्वास है।
सवाल: न्यायाधीशों को लेकर कोई नए प्रावधान किये जा रहे हैं?
शाह: अंग्रेज जो प्रणाली बना कर गए थे, उसमें तीन प्रकार के ज्यूडिशयल सिस्टम थे। अब पूरे देश में कश्मीर से कन्याकुमारी तक और द्वारका से लेकर असम तक चार ही प्रकार के न्यायाधीश होंगे। एक- द्वितीय श्रेणी के न्यायिक मजिस्ट्रेट, दूसरे- प्रथम श्रेणी के न्यायिक मजिस्ट्रेट, फिर सत्र न्यायाधीश होंगे और कार्यकारी मजिस्ट्रेट होंगे। लोअर ज्यूडिश्यरी में यही सिस्टम होगा। उसके ऊपर हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट हैं। यह बहुत बड़ा परिवर्तन होगा। आज़ाद होने के बाद पहली बार देश की पूरी न्याय व्यवस्था में साम्यता आएगी। न्यायाधीशों को भी निश्चित समय में निर्णय देना होगा। चार्ज निश्चित समय में फ्रेम करना पड़ेगा। एक्विटल की अर्जी निश्चित समय में समाप्त करनी पड़ेगी। इसी तरह से स्पीडी न्याय के लिए भी बहुत से प्रावधान किये गए हैं।
सवाल: क्या संगठित और आर्थिक अपराध के लिए भी कुछ किया गया है?
शाह: ढेर सारे संगठित अपराध इस देश में चलते रहे थे। आपने देखा होगा कि दो साल पहले एनआईए कानून को सुधारा गया। इंटरस्टेट गैंग्स पर कठोर कार्रवाई शुरू हुई। कई जगह इंटरस्टेट गैंग और आतंकवाद गैंग की साँठ-गाँठ भी सामने आई। कई जगह संगठित रूप से अपराधी इकट्ठा होकर आर्थिक अपराध भी करते थे। अपहरण, डकैती, वाहन चोरी, वेश्यावृत्ति और बच्चों से भीख मँगवाने के गैंग संगठित अपराध के तौर पर चलते थे। इन सारे अपराधों के लिए व्यक्तिगत तौर पर एफआईआर दर्ज कर सकते थे। संगठित अपराध की कोई परिभाषा ही नहीं थी। सबसे निचले स्तर का व्यक्ति पकड़ा जाता था, जो ऑपरेट करते थे वे छूट जाते थे। अब इसकी व्याख्या से नीचे से ऊपर तक के सारे शामिल लोग कानून की जद में आएँगे। इनमें कठोर प्रावधान किये गए हैं। ड्रग्स, हथियारों की तस्करी और मानव तस्करी में भी ऐसा ही होगा। भारत की न्याय प्रणाली में ऐसा पहली बार होगा।
सवाल: किसी भी न्याय प्रणाली में पुलिस शुरू से अंत तक न्याय व्यवस्था की महत्त्वपूर्ण इकाई होती है। पुलिस की जवाबदेही और अधिक बढ़ाने के लिए नई आपराधिक न्याय प्रणाली में क्या-क्या किया गया है?
शाह: ढेर सारे बदलाव किए गए हैं। लगभग 35 धाराओं में पुलिस की जिम्मेदारी तय की गई है और पुलिस को जिम्मेदार बनाया गया है। पुलिस किसी के घर पर तलाशी के लिए जाएगी, तो उन्हें वीडियो बनाना होगा और दो गवाहों के साथ जाना होगा। पूछताछ के लिए बुलाने के मामले में हर थाने का रजिस्टर होगा और जिसे बुलाया जाएगा, उसके घर वाले को सूचना देनी होगी। आप गैरकानूनी तरीके से किसी को थाने में नहीं रख सकते। तीन वर्ष से कम या 60 वर्ष से अधिक उम्र के व्यक्तियों से पूछताछ की अनुमति लेनी होगी। पुलिस जिसे भी पकड़ेगी, उसे 24 घंटे में मजिस्ट्रेट के सामने पेश करना पड़ेगा। गलत शिकायत पर पी.ई. यानी ‘प्रीलिमरी इन्कवायरी’ को पहली बार लाया गया है, जिससे ग्रे-एरिया का दुरुपयोग नहीं होगा।
सवाल: आतंकवाद देश की सुरक्षा के लिए बहुत बड़ी समस्या थी। हमारे देश ने कई आतंकवादी हमलों को सहा। इसके लिए नए आपराधिक न्याय के कानूनों में क्या बदलाव किए गए हैं?
शाह: जब कानून बने थे तब तो अंग्रेजों को इसकी जरूरत ही नहीं थी। उनके लिए तो स्वतंत्रता सेनानी ही आतंकवादी थे। वे राजद्रोह के मामले में उन्हें फँसाते थे। हमने पहली बार आतंकवाद की व्याख्या की है। इसकी परिभाषा भी तय कर दी और इसकी सजा भी तय कर दी। अब आतंकवादी गतिविधि कोई करता है, तो स्पेशल कानून में जाने की जरूरत नहीं होगी। आईपीसी, सीआरपीएसी में ही आतंकवाद को समाहित कर दिया गया है। किसी अन्य कानून की जरूरत ही नहीं है। उसमें आजीवन कारावास और फाँसी तक का कठोर दंड हमने रखा है। हमने मोदी जी की आतंकवाद के खिलाफ ‘जीरो टॉलरेंस’ की नीति को परिभाषित किया है।
सवाल: सबसे जरूरी मुद्दा है राजद्रोह को हटाना और देशद्रोह की व्याख्या। लोगों की इस पर अलग-अलग राय है। राजद्रोह और देशद्रोह में क्या अंतर है?
शाह: मोदी जी ने लालकिले की प्राचीर से कहा था कि गुलामी की सभी निशानियों को समाप्त करना होगा। सब जानते हैं कि ये कानून 150 साल पुराने हैं। अंग्रेजों का उद्देश्य अंग्रेज राज को मजबूत करना था, तो उन्होंने राजद्रोह की व्याख्या की, जिसमें महात्मा गांधी, वीर सावरकर, तिलक महाराज से लेकर कई स्वतंत्रता सेनानी को छह-छह साल की सजा हुई थी। वहाँ राजद्रोह राज्य के लिए था, शासन के लिए था। अब हमने राजद्रोह को समाप्त कर दिया है। अब इस देश में लोकतंत्र है। वाणी की स्वतंत्रता है। किसी को भी संविधान के दायरे में बोलने और विरोध का संवैधानिक अधिकार है। उस पर राजद्रोह का केस नहीं हो सकता। लेकिन, हमने देशद्रोह की व्याख्या कर दी है, जिसमें सात साल से आजीवन कारावास तक की सजा है। इसमें भारत की सम्प्रभुता और अखंडता को कोई चैलेंज करता है, कोई सशस्त्र विद्रोह करता है, भारत की सीमाओं का अतिक्रमण करता है, तो उस पर देशद्रोह की धारा लगेगी। तो, हमने बहुत स्पष्ट कर दिया है। व्यक्ति के सामने या सरकार के सामने कोई बोल सकता है। गलत बोलते हो तो कोई कोर्ट में जाएगा और केस करेगा। लेकिन, राजद्रोह की धारा नहीं लगेगी। लेकिन, यदि आप देश के खिलाफ कुछ करते हो, तो कठोर कार्रवाई की जाएगी। इतने सालों के बाद पहली बार जो मोदी जी ने संकल्पना रखी थी कि अंग्रेजों के बनाए हुए कानून और गुलामी की निशानियों को समाप्त करना है, वह आज हो रहा है। राजद्रोह हट रहा है। राजद्रोह की जगह देशद्रोह की नयी धारा हम जोड़ रहे हैं, जो बहुत सुस्पष्ट है।
सवाल: नए आपराधिक कानूनों में तकनीकों को लेकर क्या प्रावधान किए गए हैं? साइबर अपराधों से निपटने की चुनौती के लिए पुलिस, कानून और संसाधन कारगर नजर नहीं आते ?
शाह: साइबर अपराध से हम भाग नहीं सकते, लेकिन इसे कंट्रोल जरूर सकते हैं। इसको लेकर भी कानून में हमने ढेर सारे प्रावधान किए हैं। हमने हमारे कानूनों को इंटरनेशनल कानूनों के साथ जोड़ा है। ऐसे में जब अपराध होगा, तो हमें अपराधियों को पकड़ने में इसका फायदा मिलेगा।
सवाल: हमारे देश की न्याय प्रक्रिया इतनी मुश्किल हुआ करती है कि कई बार गरीबों को पुलिस और अदालत की बात समझ में ही नहीं आती। कई लोग न्याय की प्रक्रिया की जटिलता के कारण वंचित रह जाते हैं।
शाह: आपकी बात सही है। कई छोटे-छोटे गुनाह होते हैं। अब इनमें ट्रायल के लिए जाना ही नहीं पड़ेगा। मजिस्ट्रेट को ट्रायल के अधिकार दिये हैं। उसमें चार्ज फ्रेम करने या इनसे मुक्ति देकर कई सारे गुनाह में कम्यूनिटी सर्विस देने की बात जोड़ी गई है। जमानत के लिए कहीं जाना नहीं है। पैनल्टी की 40 धाराएँ बढ़ा दी हैं। सजा की जगह पैनल्टी देकर आप छूट पाओगे। इस तरह, इसे सरल किया है। इससे जेलों पर भी दबाव कम होगा। कम्यूनिटी सर्विस और पेनल्टी से भी जेलों पर से दबाव कम होगा। सरकारी ऑफिसर के खिलाफ मुकदमा दर्ज होता था, तो सालों साल तक अनुमति नहीं मिलती थी। अब 120 दिन तक डिनायल नहीं किया, तो डीम्ड परमिशन मान ली जाएगी। चाहे कलक्टर हो, डीआईजी हो या डीजीपी, कानून ने सबको बराबर कर दिया है। आप ऐसे नहीं बैठ सकते। गुनाह किया है और परमिशन नहीं मिलती, तो 120 दिन में कार्रवाई शुरू कर देंगे।
सवाल: जेलों का दबाव कम करने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने हाउस अरेस्ट करने का भी प्रावधान किया था?
शाह: हम इसका समर्थन नहीं करते। सजा किसी को दंड देने के लिए नहीं है। इससे दूसरे लोगों के मन में गुनाह करने के प्रति डर तो होता है, लेकिन बोध भी होता है। इसलिए जेलों का प्रावधान तो जरूरी है, लेकिन इसमें कई व्यवस्थाएँ ऐसी की हैं, जिससे जेलों पर दबाव कम होगा।
सवाल: गवाहों की सुरक्षा की बात कई बार आती है।
शाह: कई बार सुप्रीम कोर्ट ने गवाहों की सुरक्षा को लेकर निर्देश दिए, लेकिन कानूनी प्रावधान नहीं थे। हमने पहली बार कानून के माध्यम से सभी राज्यों को कहा है कि आपको राज्य में साक्ष्य को सुरक्षा देने के लिए नीति 30 दिन में घोषित करनी पड़ेगी। अब कोर्ट से प्रोटेक्शन ऑर्डर की जरूरत नहीं पड़ेगी। अब एप्लीकेशन करते ही आपको सुरक्षा, नीति के तहत मिलेगी। इससे काफी चीजों में बदलाव आएगा।
सवाल: कानून में इतने बड़े बदलाव किए जा रहे हैं, क्या बदलाव से पहले पुलिस, वकील और कार्यपालिका के लिए कोई ट्रेनिंग होगी?
शाह: हमने कानून बनाने से पहले ही यह प्रक्रिया शुरू कर दी थी। कानून बनाने के तीसरे दिन ही पुरानी और नई धाराओं के साथ संहिताओं को प्रकाशित कर दिया गया। थाना, वकीलों, टेक्निकल अपग्रेडेशन, न्यायाधीश और जेल के लिए अलग-अलग ट्रेनिंग मॉडयूल बना दिए हैं। जयपुर में डीजीपी, आईजी कांफ्रेंस में भी यह बताया गया है। कानून को लागू करने के लिए कई सारी चीजें सोच भी रखी हैं। कानून लागू होने के बाद किसी भी मामले में अधिकतम तीन साल में अभियुक्त या तो निर्दोष घोषित होगा या सजा हो जाएगी।
सवाल: अभी एफआईआर और छोटी अदालती कार्रवाई में उर्दू और फारसी का उपयोग अधिक होता है ।
शाह: जो हमने सॉफ्टवेयर बनाया है उसमें शिडयूल आठ की सारी भाषाएँ हैं। सभी व्यक्ति अपनी भाषा में बात कर पाएँगे। कई तरह से हमने विक्टिम सेंट्रिक कानून बनाया है। पहले केस विड्रॉ हो जाते थे और इससे जिसका नुकसान हुआ उसे कोई पूछता नहीं था। अब सरकार को केस विड्रॉ करना है, तो उसे पीडि़त को बताना पड़ेगा। उससे पूछना पड़ेगा। क्षतिपूर्ति का भी अधिकार दिया है। 90 दिन में केस का क्या हुआ, इसके बारे में बताना पड़ेगा। यह विक्टिम सेंट्रिक कानून है।
सवाल: विपक्ष कई बार आरोप लगाता है कि इस पर बहस ज्यादा नहीं हुई।
शाह: निराधार और राजनीतिक आरोप है। सबसे ज्यादा आजादी के बाद चर्चा हुई, तो इस कानून पर हुई। चार साल तक चर्चा हुई। सभी राजनीतिक पार्टियों के अध्यक्षों, सांसदों और मुख्यमंत्रियों, आईपीएस, राज्यपालों, लॉ कालेजों, हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों को पत्र लिखे गए। सबके सुझाव भी आए। मेरी अलग-अलग स्तर पर 158 बैठकें हुई। ऑफिसरों को तो और हजारों घंटें लगे होंगे। फिर, कानून लाने के बाद हमने सीधा पार्लियामेंट में नहीं रखा। गृह विभाग की स्टेंडिंग कमेटी को भेजा, जहाँ विपक्ष के सदस्यों ने भी तीन महीने विचार-विमर्श किया। फिर, सारे सुझाव लेकर हम कानून लाए। चर्चा इनकी प्राथमिकता ही नहीं है। इतने महत्त्वपूर्ण कार्यक्रम पर उनको चर्चा करनी चाहिए थी, लेकिन उन्होंने चर्चा में हिस्सा नहीं लिया। हम क्या कर सकते हैं?
सवाल: ड्रग्स का मुद्दा लगातार आता रहा है। NCORD की स्थापना हो या जिला स्तर तक टास्क फोर्स का गठन करना हो, लगातार क्षेत्रीय मीटिंग में आप इस मुद्दे पर जोर देते रहे हैं। सीमा पार से भी ड्रग्स की बरामदगी सामने आती हैं। इसको लकर क्या प्रावधान है?
शाह: पाँच साल में सबसे ज्यादा ड्रग पकड़ा गया है, तो इसका मतलब यह नहीं है कि ड्रग का आना बढ़ा है। इसका मतलब यह है कि ड्रग्स का पकड़ना सुनिश्चित हुआ है। NCORD की स्थापना कर मल्टीलेयर सिस्टम हमने ड्रग के खिलाफ बनाया है। ऊपर से नीचे और नीचे से ऊपर तक जाँच होगी। जैसे, जहाज में बड़ा ड्रग का कंसाइनमेंट पकड़ा जाता है, तो उसकी चैन का पूरा इन्वेस्टीगेशन होता है। इसी तरह पान की दुकान पर नशे की पुडि़या पकड़ी जाती है, तो देश में यह कहाँ से आई वहाँ तक पहुँचना सुनिश्चित होता है। ढेर सारे लोगों को ऐसे मामलों में हिरासत में लिया गया है। पूरे सिंडिकेट पर शिकंजा कसा जा रहा है। ढेर सारे लोगों की प्रॉपर्टी जब्त की गई है। देश के बाहर भी 24 केस में कार्रवाई की गई है। रिहेबिलिटैशन, स्कूलों में शपथ, जागरूकता और ढेर सारी दवाइयों को प्रतिबंधित करने का काम भी किया गया है। इस दिशा में शिक्षा विभाग, फार्मास्यूटिकल, समाज कल्याण, आरोग्य, सीमा सुरक्षा सहित पूरी सरकार मिलकर कार्य कर रही है।