NVS-01 इंडियन कॉन्स्टेलशन सर्विस (NavIC) के साथ नेविगेशन के लिए दूसरी जनरेशन की अपने तरह की पहली सैटेलाइट है। 2,232 किग्रा वजन की इस सैटेलाइट में स्वदेशी एटॉमिक घड़ी लगाई गई है। ये घड़ी ऑर्बिट रेजिंग प्रोसीजर को और भी बेहतर और बारीकी से बता सकेगी। साथ ही यह भारत और इसके आसपास के क्षेत्रों में यूजर्स को स्थिति, वेलोसिटी और समय की जानकारी देगी।
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NVS-01 सैटेलाइट ने ली IRNSS-1G की जगह
ISRO अनुसार NVS-01 सैटेलाइट IRNSS-1G सैटेलाइट की जगह लेगा। IRNSS-1G सैटेलाइट वर्ष 2016 में लॉन्च किया गया था। ये सैटेलाइट भारतीय क्षेत्र को नेविगेशनल सर्विस देने वाली 7 सैटेलाइट के एक ग्रुप का हिस्सा है। इसकी मिशन लाइफ 12 साल है। दूसरी जनरेशन की सैटेलाइट एडवांस फीचर और क्षमताओं के साथ बनाई जाती हैं। इसे लगभग 36,000 किमी के अपोजी के साथ जियोसिंक्रोनस ट्रांसफर ऑर्बिट (जीटीओ) में तैनात किया जाएगा।
दुनिया में इन देशों के पास है अपना नेविगेशन सिस्टम? अमेरिका जीपीएस – (ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम)
रूस – ग्लोनास (ग्लोबल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम)
यूरोपीय संघ – गैलीलियो
चीन – BeiDou नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम (BDS)
भारत – NavIC (नेविगेशन विद इंडियन Constellation)
जापान – QZSS (क्वैसी-जेनिथ सैटेलाइट सिस्टम)
दक्षिण कोरिया – KASS (कोरिया ऑग्मेंटेशन सैटेलाइट सिस्टम)
क्या होते हैं नाविक उपग्रह ?
नाविक उपग्रह (NavIC) एक खास तकनीक से बनाए जाते हैं। ये उपग्रह पृथ्वी की कक्षा में स्थापित किए जाने वाले सात उपग्रहों का एक समूह है, जो ग्राउंड स्टेशनों के साथ कनेक्ट होगा। इन उपग्रहों को खासतौर पर सशस्त्र बलों की ताकत मजबूत करने और नौवहन सेवाओं की निगरानी के लिए बनाया गया है। इसरो ने भारतीय उपग्रहों के साथ मिलकर जीएसएलवी NVS-01 नाविक को तैयार किया है।
NVS-01 सैटेलाइट ने ली IRNSS-1G की जगह
ISRO अनुसार NVS-01 सैटेलाइट IRNSS-1G सैटेलाइट की जगह लेगा। IRNSS-1G सैटेलाइट वर्ष 2016 में लॉन्च किया गया था। ये सैटेलाइट भारतीय क्षेत्र को नेविगेशनल सर्विस देने वाली 7 सैटेलाइट के एक ग्रुप का हिस्सा है। इसकी मिशन लाइफ 12 साल है। दूसरी जनरेशन की सैटेलाइट एडवांस फीचर और क्षमताओं के साथ बनाई जाती हैं। इसे लगभग 36,000 किमी के अपोजी के साथ जियोसिंक्रोनस ट्रांसफर ऑर्बिट (जीटीओ) में तैनात किया जाएगा।
दुनिया में इन देशों के पास है अपना नेविगेशन सिस्टम? अमेरिका जीपीएस – (ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम)
रूस – ग्लोनास (ग्लोबल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम)
यूरोपीय संघ – गैलीलियो
चीन – BeiDou नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम (BDS)
भारत – NavIC (नेविगेशन विद इंडियन Constellation)
जापान – QZSS (क्वैसी-जेनिथ सैटेलाइट सिस्टम)
दक्षिण कोरिया – KASS (कोरिया ऑग्मेंटेशन सैटेलाइट सिस्टम)
क्या होते हैं नाविक उपग्रह ?
नाविक उपग्रह (NavIC) एक खास तकनीक से बनाए जाते हैं। ये उपग्रह पृथ्वी की कक्षा में स्थापित किए जाने वाले सात उपग्रहों का एक समूह है, जो ग्राउंड स्टेशनों के साथ कनेक्ट होगा। इन उपग्रहों को खासतौर पर सशस्त्र बलों की ताकत मजबूत करने और नौवहन सेवाओं की निगरानी के लिए बनाया गया है। इसरो ने भारतीय उपग्रहों के साथ मिलकर जीएसएलवी NVS-01 नाविक को तैयार किया है।
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NavIC की जरूरत क्यों पड़ी ?
अब सवाल उठता है कि NavIC को क्यों डेवलप किया गया? NavIC के जरिए भारत और उसकी सीमा से 1500 किमी तक के क्षेत्र को कवर किया जाता है। इसका इस्तेमाल टेरेस्टियल, एरियल, मरीन ट्रांसपोर्टेशन, लोकेशन बेस्ड सर्विसेज, पर्सनल मोबिलिटी, रिसोर्स मॉनिटरिंग और साइंटिफिक रिसर्च के लिए किया जाता है। नाविक की पोजीशन एक्यूरेसी, सामान्य यूजर्स के लिए 5-20 मीटर और सैन्य उपयोग के लिए 0.5 मीटर है। NavIC दो सर्विसेज प्रोवाइड करता है। पहला सिविलियन के लिए स्टैंडर्स पोजीशन सर्विस और स्ट्रैटजिक यूजर्स के लिए रेस्ट्रिक्टेड सर्विस।
पहली बार स्वदेशी रूबिडियम परमाणु घड़ी का किया इस्तेमाल
दिलचस्प बात यह है कि पहली बार, इसरो के स्पेस एप्लिकेशन सेंटर (एसएसी), अहमदाबाद से विकसित एक स्वदेशी रूबिडियम परमाणु घड़ी को एनवीएस-01 में उड़ाया जा रहा है। इसरो ने पहले लॉन्च किए गए सभी नौ नेविगेशन सैटेलाइट पर आयातित परमाणु घड़ियों का इस्तेमाल किया था। ऐसा कहा जाता था कि आईआरएनएसएस-1ए में परमाणु घड़ियां विफल होने तक एनएवीआईसी उपग्रह अच्छा प्रदर्शन कर रहे थे। वैज्ञानिक पहले तारीख और स्थान का निर्धारण करने के लिए आयातित रूबिडियम परमाणु घड़ियों का इस्तेमाल करते थे।
NavIC की जरूरत क्यों पड़ी ?
अब सवाल उठता है कि NavIC को क्यों डेवलप किया गया? NavIC के जरिए भारत और उसकी सीमा से 1500 किमी तक के क्षेत्र को कवर किया जाता है। इसका इस्तेमाल टेरेस्टियल, एरियल, मरीन ट्रांसपोर्टेशन, लोकेशन बेस्ड सर्विसेज, पर्सनल मोबिलिटी, रिसोर्स मॉनिटरिंग और साइंटिफिक रिसर्च के लिए किया जाता है। नाविक की पोजीशन एक्यूरेसी, सामान्य यूजर्स के लिए 5-20 मीटर और सैन्य उपयोग के लिए 0.5 मीटर है। NavIC दो सर्विसेज प्रोवाइड करता है। पहला सिविलियन के लिए स्टैंडर्स पोजीशन सर्विस और स्ट्रैटजिक यूजर्स के लिए रेस्ट्रिक्टेड सर्विस।
पहली बार स्वदेशी रूबिडियम परमाणु घड़ी का किया इस्तेमाल
दिलचस्प बात यह है कि पहली बार, इसरो के स्पेस एप्लिकेशन सेंटर (एसएसी), अहमदाबाद से विकसित एक स्वदेशी रूबिडियम परमाणु घड़ी को एनवीएस-01 में उड़ाया जा रहा है। इसरो ने पहले लॉन्च किए गए सभी नौ नेविगेशन सैटेलाइट पर आयातित परमाणु घड़ियों का इस्तेमाल किया था। ऐसा कहा जाता था कि आईआरएनएसएस-1ए में परमाणु घड़ियां विफल होने तक एनएवीआईसी उपग्रह अच्छा प्रदर्शन कर रहे थे। वैज्ञानिक पहले तारीख और स्थान का निर्धारण करने के लिए आयातित रूबिडियम परमाणु घड़ियों का इस्तेमाल करते थे।