जूते चमकाते हुए जब पिता ने उन्हें देखा…
जवाहर लाल नेहरू का जन्म एक बड़े बैरिस्टर मोती लाल के घर हुआ था। उनके पिता मोती लाल उस जमाने में एक पढ़े लिखे और धनी लोगों में गिने जाते थे। उनके घर में कामकाज के लिए नौकर, चाकर और सहयोगियों की कोई कमी नहीं थी लेकिन पूत के पांव पालने में दिखने लगते हैं। ऐसा ही एक वाकया हम यहां नेहरू के बचपन से जुड़ा हुआ बताने जा रहे हैं। एक बार स्कूल जाने से पहले वह अपने जूतों में पॉलिश कर रहे थे और ऐसा करते हुए उनके पिता की नजर उनपर पड़ी। उन्होंने बेटे को टोकते हुए पूछा- क्या हो गया तुम अपने जूते खुद क्यों पॉलिश कर रहे हो? जूतों की पॉलिश के लिए तुम नौकरों से कह सकते हो। नेहरू ने अपने पिता को बड़े प्यार से कहा- पिताजी, जो काम मैं खुद कर सकता हूं, उसे किसी दूसरे से क्यों करवाना? नेहरू ने छोटे-छोटे काम के लिए खुद पर आत्मनिर्भर होना अपने बाल्यकाल में ही सीख लिया और इसका निर्वाह उन्होंने ताउम्र किया।
जब पिता मोतीलाल ने की थी पिटाई
यहां उनके पिता से ही जुड़ा दूसरा वाकया बताना चाहूंगा। एक बार मोतीलाल नेहरू को किसी ने दो बेशकीमती फाउंटेन पेन गिफ्ट में दिए। बालसुलभ नेहरू ने एक कलम यह सोचकर ले लिया किया पिताजी तो एक ही कलम से लिखेंगे। दूसरे कलम की क्या जरूरत पड़ेगी? उस कलम का इस्तेमाल मैं क्यों ना कर लूं? यह सोचकर उन्होंने एक कलम अपने पास रख ली। जब पिता को कलम नहीं मिली तो उन्होंने उसे ढूंढने को कहा और वह बहुत गुस्से में पूरे घर में चहलकदमी कर रहे थे। पिता को गुस्से में देखकर बच्चा नेहरू डर गए और वह अपने पास कलम निकालकर पिता के सामने रखने की हिम्मत नहीं जुटा पाए। खोजबीन के दरम्यिान कलम बाल नेहरू के बैग से मिली तो पिता आग बबूला हो उठे और उन्होंने उनकी बहुत पिटाई कर दी। इतने नाराज थे कि जवाहर लाल उनके सामने जाकर अपनी गलती स्वीकारने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे थे। काफी खोजबीन के बाद जब कलम जवाहर लाल के पास से बरामद हुई तो उनके पिता ने उनकी जमकर पिटाई की। पिटाई के चलते उनका शरीर इस कदर छलनी हो गया कि पूरे शरीर पर दवाई लगानी पड़ी। इसके बाद वे पिता से डरने लगे और शायद यही वजह है कि वह बच्चों को ताउम्र बहुत ज्यादा प्यार करते रहे।
अरबी घोड़े से गिरकर हो गए थे चोटिल
जब उनके बचपने का जिक्र हो रहा है तो एक किस्सा उनकी शरारत का यहां बताना तो बेहद जरूरी है। एक बार वह अपने घर आनंद भवन में घुड़सवारी करते हुए परिसर से बाहर निकल गए और घर के सहयोगियों में किसी का ध्यान इस ओर नहीं गया। कुछ देर बार वह अरबी घोड़ा जिसपर बाल नेहरू सवार थे, अकेला परिसर में आता दिखा तो सभी को आशंका हुई कि आखिर माजरा क्या है? अब नेहरू को ढूंढने में सभी लग गए। इस काम के लिए पिता खुद ही सड़कों पर निकल आए। इलाहाबाद की एक सड़क पर बेटे को घर की ओर लौटते हुए देखा। उनके शरीर पर कई जगह चोट के निशान दिख रहे थे। पिता ने गोद में उठाकर पूछा तो उन्होंने मासूमियत से भरकर कहा- घोड़े ने उन्हें अपनी पीठ से गिरा दिया। दरअसल जोखिम लेने की यह आदत उनकी आगे भी बनी रही। एक बार वे पहाड़ों पर ट्रैकिंग करते हुए हिमस्खलन में फंस गए थे और किसी तरह से जान बच पाई थी।
सारा देश आजाद होना चाहता फिर तोता पिंजरे में क्यों रहे?
आनंद भवन में उनके पिता मोतीलाल तोता पालते थे। एक बार की बात है जब नेहरू छोटे थे तब तोते घर में पेड़ पर बैठी दूसरी पक्षियों के कलरव सुनकर पिंजरे से बाहर आने के लिए छटपटाने लगे। बाल नेहरू ने तोतों को पिंजरे में आजादी के लिए संघर्ष करते देखा तो उनसे रहा नहीं गया। उन्होंने पिंजरे का दरवाजा खोल तोते को आजाद कर दिया। माली ने यह देखा तो कहा कि यह आपने क्या किया? मालिक नाराज होंगे। जवाब में बाल नेहरू ने कहा- पूरा देश आजादी चाहता है तो इसे भी आजादी मिलनी चाहिए।
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