दरअसल, पिछले कुछ वर्षों से विधानसभाओं में हंगामा अधिक और विधायी कार्य कम हो रहे हैं। सदनों की बैठक चलाने में सियासत हो रही है। राजस्थान सहित जिन राज्यों में नियम बनाकर सदन की बैठकों की न्यूनतम संख्या तय है, वहां भी तय संख्या से कम बैठकें हो रही हैं। बैठकों की न्यूनतम संख्या तय करने को संवैधानिक प्रावधान के लिए संसद में प्राइवेट बिल जरूर लाए गए लेकिन वे मुकाम पर नहीं पहुंचे।
-बैठकों की न्यूनतम संख्या अनिवार्य, पर पालन नहीं
संविधान में विधानसभा की बैठकों की सालाना न्यूनतम संख्या को लेकर कोई प्रावधान नहीं है। हालांकि राजस्थान समेत आधा दर्जन विधानसभाओं ने अपने स्तर पर बनाए नियमों में साल में बैठकों के न्यूनतम दिनों की संख्या तय कर रखी है। इनमें से एक भी राज्य ने पिछले सात में इस नियम को माना ही नहीं है। यह भी पढ़ें
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सदन की बैठकों की अनिवार्य न्यूनतम संख्या वाले राज्य
राज्य सालाना न्यूनतम संख्या 2017-23 के बीच औसत दिनहिमाचल प्रदेश 35 28
ओडिशा 60 40
कर्नाटक 60 35
राजस्थान 60 29
उत्तर प्रदेश 90 19
पंजाब 40 13
-केरल में सबसे अधिक बैठकें
सात साल में केरल विधानसभा में सबसे अधिक बैठकों का औसत दिन 44 रहा है। इसके बाद ओडिशा में 40, कर्नाटक में 35, पश्चिम बंगाल में 33 और महाराष्ट्र में 32 रहा है। वहीं छत्तीसगढ़ में 25 और मध्यप्रदेश में सिर्फ 18 दिन का औसत रहा है।यह हैं कारण
-राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी, सरकारें सवालों और मुद्दों से बचना चाहती हैं-दलों के बीच बढ़ती दूरियां, कई मुद्दों पर आम सहमति नहीं
-सत्ताधारी दल के पास अधिक बहुमत से उसके विधायकों का विधेयकों पर कम होमवर्क और रुचि
सत्रावसान नहीं, राज्यपाल बाइपास
कानून के तहत राज्यपाल ही विधानसभा का सत्र बुलाते और सत्रावसान करते हैं। सत्र के दौरान बैठक बुलाने का अधिकार विधानसभा अध्यक्ष को है। पिछले सालों में कुछ प्रदेशों में राज्यपालों से विवाद के चलते राज्य सरकारें राज्यपाल के पास जाने से बचने के लिए सत्रावसान ही नहीं करतीं। इससे सत्र आहूत रहता है लेकिन सदन की बैठकें कम होती हैं। राज्यपाल को बाइपास करने का यह मामला राजस्थान, पंजाब और पश्चिम बंगाल सहित सात राज्यों में कानूनी और राजनीतिक विवाद बना है। यह भी पढ़ें
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आयोग ने भी की सिफारिश
देश के पूर्व जस्टिस एमएन वेंकटचलैया की अध्यक्षता में बने संविधान समीक्षा आयोग ने 2002 में दी अपनी रिपोर्ट में सिफारिश की थी कि छोटे राज्यों की विधानसभाओं की साल में कम से कम 50 दिन और अन्य राज्यों के सदन की 90 बैठकें होनी चाहिए। आयोग ने राज्यसभा के लिए सालाना न्यूनतम 100 और लोकसभा के लिए 120 बैठकों की सिफारिश की थी लेकिन इस आयोग की रिपोर्ट पर कोई अमल नहीं हुआ।राज्यसभा में आए प्राइवेट बिल
केंद्रीय और राज्य विधानमंडलों की सालाना न्यूनतम बैठकों का संवैधानिक प्रावधान करने के लिए 2009 में सपा के महेंद्र मोहन राज्यसभा में प्राइवेट बिल लाए थे। इसके अलावा संसद की न्यूनतम बैठकें तय करने के लिए 2019 में टीएमसी के डेरेक ओ ब्रायन और 2022 में राजद के मनोज झा भी राज्यसभा में प्राइवेट बिल लाए लेकिन इन पर बात आगे नहीं बढ़ी।राज्यों के बैठकों का औसत दिन
वर्ष औसत दिन2017 28
2018 26
2019 24
2020 16
2021 21
2022 22
2023 23
स्रोत: पीआरएस प्रयास है कि अधिक बैठकें हों- तोमर मेरी कोशिश यही रहती है कि सदन की अधिक से अधिक बैठकें हों। बैठकें होंगी तो विषयों पर चर्चा भी होगी। इसको लेकर मेरा लगातार प्रयास रहा है कि सदन में सदस्यों को अपनी बात कहने का मौका मिले।सत्तापक्ष और विपक्षी सदस्यों की जिम्मेदारी है कि वे सदन काे सुचारू चलाने में सहयोग करें। सभी के सहयोग से बैठकों की संख्या भी बढ़ सकती है।
-नरेन्द्र सिंह तोमर, विधानसभा अध्यक्ष मध्यप्रदेश विधानसभा
सबकुछ सरकार पर निर्भर करता
सरकार नहीं चाहती है, इसलिए विधान सभा का सत्र का समय कम हो जाता है। बंगाल में तो फिर भी ठीक है पर अन्य राज्यों में सेशन बहुत कम हुआ है। यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है। सबकुछ सरकार पर निर्भर करता है।-विमान बनर्जी, स्पीकर, पश्चिम बंगाल विधानसभा
2017 से 2023 तक सालाना औसत बैठकें
आंध्र प्रदेश 19
असम 25
बिहार 30
छत्तीसगढ़ 25
दिल्ली 16
गोवा 18
गुजरात 26
हरियाणा 14
हिमाचल प्रदेश 28
झारखण्ड 23
कर्नाटक 35
केरल 44
मध्य प्रदेश 18
महाराष्ट्र 32
मेघालय 15
मिजोरम 19
ओडिशा 40
पुडुचेरी 15
पंजाब 13
राजस्थान 29
सिक्किम 12
तमिलनाडु 31
तेलंगाना 18
त्रिपुरा 10
उत्तराखंड 12
उत्तर प्रदेश 19
पश्चिम बंगाल 33
आंध्र प्रदेश 19
असम 25
बिहार 30
छत्तीसगढ़ 25
दिल्ली 16
गोवा 18
गुजरात 26
हरियाणा 14
हिमाचल प्रदेश 28
झारखण्ड 23
कर्नाटक 35
केरल 44
मध्य प्रदेश 18
महाराष्ट्र 32
मेघालय 15
मिजोरम 19
ओडिशा 40
पुडुचेरी 15
पंजाब 13
राजस्थान 29
सिक्किम 12
तमिलनाडु 31
तेलंगाना 18
त्रिपुरा 10
उत्तराखंड 12
उत्तर प्रदेश 19
पश्चिम बंगाल 33