क्या है मामला
यह मामला प्रतिनियुक्ति की व्याख्या और पेंशन पात्रता पर इसके प्रभाव से संबंधित है। 1968 से पश्चिम बंगाल सरकार की सेवा में प्रतिवादी फणी भूषण कुंडू थे। उन्हें 1991 में भारत सरकार के अधीन पशुपालन आयुक्त के रूप में नियुक्त किया गया था। उन्हें उक्त पद पर नियुक्त करने वाले पत्र में कहा गया था कि नियुक्ति 31 अगस्त 1992 तक या अगले आदेश तक जो भी पहले हो, प्रतिनियुक्ति के आधार पर स्थानांतरण द्वारा की गई थी। सितंबर 1992 में वे सेवानिवृत्त हो गए। केंद्र सरकार की एक त्रुटि कारण उन्हें उनके मूल विभाग में वापस नहीं भेजा गया। लेकिन प्रदेश सरकार ने उनके पेंशन के कागजात संशाधित किए।
सुप्रीम कोर्ट ने पलटा निर्णय
प्रतिवादी ने बाद में केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण से संपर्क किया। कैट ने निर्देश दिया कि भूषण कुंडू की पेंशन पशुपालन आयुक्त के पद के केंद्रीय वेतनमान के आधार पर तय की जानी चाहिए। पश्चिम बंगाल सेवा (मृत्यु-सह-रिटायरमेंट लाभ) नियम, 1971 (डब्ल्यूबी पेंशन नियम) के बजाय केंद्रीय सिविल सेवा (पेंशन) नियमों के तहत ऐसी पेंशन देय होगी। केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण और कलकत्ता हाईकोर्ट ने माना कि प्रतिनियुक्ति पर नियुक्ति से कर्मचारी के पक्ष में अपरवर्तनीय अधिकार बनाया गया और उसने अवशोषित होने का अधिकार हासिल कर लिया था। सुप्रीम कोर्ट ने कैट और कलकत्ता हाईकोर्ट के इस निर्णय को पलट दिया। SC ने कहा कि प्रदेश सरकार के कर्मचारी द्वारा केंद्र सरकार के किसी विभाग में प्रतिनियुक्ति के आधार पर की गई सेवा उसे पेंशन का हकदार नहीं बनाती है।
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी
सीजेआई संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति संजय कुमार की पीठ ने मामले में टिप्पणी करते हुए कहा कि हमारी राय में कैट और हाईकोर्ट का निर्णय कानून के विपरित है और टिकाऊ नहीं है। पीठ ने कहा कि प्रतिवादी कर्मचारी केंद्र सरकार के पद पर प्रतिनियुक्ति के आधार पर सेवा कर रहा था और प्रतिनियुक्ति में केंद्र सरकार के स्थायी रोजगार में आमेलन के प्रावधान शामिल नहीं थे, इसलिए CCS Pension Rules के तहत पेंशन के लिए उसका दावा टिकने योग्य नहीं था।