फैमिली कोर्ट ने स्वीकारा महिला का आवेदन
महिला ने गुजारे भत्ते से जुड़े एक मामले में आवेदन दायर किया, जिसे फैमिली कोर्ट ने स्वीकार कर लिया। कोर्ट ने इसमें दंड संहिता की धारा 125 के तहत भरण-पोषण की कार्यवाही में अपने बेटे के पितृत्व का पता लगाने के लिए पति से डीएनए जांच के लिए कहा था। न्यायमूर्ति हरप्रीत सिंह बरार ने मोहाली के प्रिंसिपल जज फैमिली कोर्ट के इस आदेश को बरकरार रखने के बाद यह निर्देश दिया है। अनुमानों का सहारा लेने से बेहतर, विज्ञान पर भरोसा करना
न्यायमूर्ति बरार ने इस मामले में कहा कि अनुमानों का सहारा लेने से बेहतर, विज्ञान पर भरोसा करना चाहिए। उन्होंने कहा कि किसी परिणाम पर पहुंचे बिना नाजायज या अनैतिक करार नहीं दिया जा सकता। न्यायालयों के लिए सच तक पहुंचने और सटीक न्याय करने के लिए विज्ञान पर भरोसा न करने का कोई कारण नहीं है। बेंच ने फैसला सुनाते कहा कि किसी भी पक्ष को अपने दावों के समर्थन में सबसे बेहतर उपलब्ध सबूत पेश करने का अवसर देना चाहिए। अगर ऐसा नहीं होता है तो भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत स्वतंत्र और निष्पक्ष सुनवाई के अधिकार के साथ-साथ प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का भी उल्लंघन होगा।
आदमी बोला, महिला और बच्चे से कोई भी संबंध नहीं
कोर्ट में आदमी ने कहा कि महिहला और बच्चे के साथ उसके किसी भी तरह के संबंध नहीं है। उसने वास्तव में महिला के साथ विवाह के औपचारीककरण से भी मना कर दिया। यह भी कहा था कि बच्चा कथित विवाह से पैदा नहीं हुआ था। मोहाली कोर्ट के आदेश के खिलाफ आदमी ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की। उन्होंने कहा कि इस मामले में डीएनए सैंपल लेने का कोई क्लिटर कानून न होने की ओर इंगित किया था। हाईकोर्ट ने कहा है कि बच्चे का पिता है या नहीं, इसके लिए डीएनए टेस्ट तो करना ही होगा।