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शादी से लेकर संपत्ति के बंटवारे तक… मुस्लिम हो या हिन्दू, UCC से इतना बदल जाएगा संपत्ति पाने का अधिकार

समान नागरिक संहिता (यूसीसी) पर बिल उत्तराखंड विधानसभा में पास हो गया है। राज्यपाल से स्वीकृति मिलने के बाद यह कानून बन जाएगा। ऐसे में आइये जानते हैं कि यूसीसी लागू होने के बाद उत्तराखंड के हिंदू और मुस्लिमों के लिए क्या कुछ बदल जाएगा?

Feb 08, 2024 / 07:44 am

Paritosh Shahi

उत्तराखंड विधानसभा ने समान नागरिक संहिता (यूसीसी) विधेयक पारित कर इतिहास रच दिया है। ऐसा करने वाला वह देश का पहला राज्य बन गया है। उत्तराखंड विधानसभा में दो दिन की चर्चा के बाद बुधवार शाम को यूसीसी विधेयक ध्वनिमत से पास हो गया। अब इस बिल को राज्यपाल के पास मंजूरी के लिए भेजा जाएगा। राज्यपाल से मंजूरी मिलते ही यह कानून बन जाएगा।

उत्तराखंड विधानसभा से पारित यूसीसी के कानून बनने के बाद हिंदू और मुस्लिमों के अधिकारों में बड़े बदलाव आएंगे। विवाह, तलाक और वसीयत के संबंध में कुछ प्रमुख बदलाव इस प्रकार होंगेः

मुस्लिमों के लिए क्या बदलाव?

– यूसीसी में पुरुषों के लिए विवाह की न्यूनतम आयु 18 और 21 वर्ष किया गया है। वर्तमान मुस्लिम कानून लड़कियों के लिए शादी की उम्र के रूप में यौवन यानी 13 वर्ष की आयु को अनुमति देता है।

– मुसलमानों के लिए वसीयती उत्तराधिकार (वसीयत के माध्यम से) और निर्वसीयत उत्तराधिकार (वसीयत के अभाव में) की प्रकृति में भारी बदलाव आएगा।

– यूसीसी में वसीयत पर कोई प्रतिबंध नहीं है कि व्यक्ति अपनी संपत्ति का कितना हिस्सा किसे दे। जबकि, वर्तमान में मुस्लिम व्यक्ति वसीयत में संपत्ति का एक तिहाई हिस्सा ही पसंद के व्यक्ति को दे सकता है।

– यूसीसी विधेयक में द्विविवाह या बहुविवाह की प्रथाओं को गैरकानूनी घोषित किया गया है। यह एक शर्त के साथ किया जा सकता है कि किसी भी पक्ष के पास विवाह के समय जीवित जीवनसाथी नहीं हो।

– यूसीसी इद्दत और निकाह हलाला जैसी कुछ मुस्लिम विवाह प्रथाओं का भी स्पष्ट रूप से नाम लिए बिना उन्हें अपराध घोषित करता है।


हिंदुओं के लिए क्या बदलाव

– यूसीसी हिंदू कानून के तहत पैतृक और स्व-अर्जित संपत्ति के बीच अंतर को खत्म कर देता है। हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के तहत सहदायिक अधिकारों का यूसीसी विधेयक में उल्लेख नहीं है।

– यूसीसी में निर्वसीयत उत्तराधिकार (जब कोई व्यक्ति बिना वसीयत किए मर जाता है) के मामले में माता-पिता दोनों को पहली श्रेणी के उत्तराधिकारी के रूप में पदोन्नत किया गया है। यानी प्रथम श्रेणी के उत्तराधिकारियों में बच्चे, विधवा के साथ पिता और माता दोनों शामिल होंगे।

– माता-पिता दोनों को शामिल करने का मतलब यह हो सकता है कि किसी व्यक्ति की संपत्ति उसके माता-पिता के माध्यम से उसके बच्चों और विधवा के हिस्से में कटौती करके उसके भाई-बहनों को मिल सकती है।

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