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अंग्रेजों के अन्याय के 166 साल बाद न्याय की उम्मीद

संघर्ष का परिणाम : हरियाणा में गांव की जमीन कर दी थी नीलाम, सरकार ने बनाई कमेटी
 

Jan 08, 2024 / 12:13 am

ANUJ SHARMA

अंग्रेजों के अन्याय के 166 साल बाद न्याय की उम्मीद

अंग्रेजों के अन्याय के 166 साल बाद न्याय की उम्मीद

रोहनात (हरियाणा). 1857 की क्रांति में अपने सैकड़ों लाल की शहादत देने वाले गांव रोहनात के लोगों को अब न्याय मिलने की उम्मीद है। लोग अपनी जमीन के मालिकाना हक के लिए सरकार व प्रशासन से लड़ाई लड़ रहे हैं। सरकार ने गांव के पुराने अभिलेखों की खोज के लिए एक टीम का गठन किया है। टीम में रोहनात के ग्रामीण भी शामिल हैं। यह टीम अभिलेखागार और राजस्व कार्यालयों में खोजबीन कर रही है।टीम का नेतृत्व करने वाले भिवानी के तहसीलदार आदित्य रंगा का कहना है कि बिखरे हुए ऐतिहासिक दस्तावेजों में ठोस सबूत ढूंढना कठिन काम है। राजस्व में रेकॉर्ड में जमीन की बिक्री का उल्लेख है, लेकिन वास्तविक नीमामी का उल्लेख नहीं मिलता। हम इसके लिए प्रयास कर रहे हैं। उम्मीद है कि एक माह में बेहतर प्रमाण होंगे। नीलामी के प्रमाण मिलने पर ग्रामीणों को उनकी जमीन का फिर मालिकाना हक मिल सकेगा। रोहनात के ग्रामीण इस मामले को लेकर एक साल से अधिक समय से धरने पर बैठे हैं। गांव के निवासी रविंदर बूरा ने दावा किया कि गांव के सम्मान को बहाल करने के लिए गांव की संपत्ति का सही वर्गीकरण जरूरी है। गौरतलब है कि 1857 में अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह की सजा पूरे रोहनात गांव को भुगतनी पड़ी थी। अंग्रेजों ने 14 सितंबर, 1857 को पूरे गांव को बागी घोषित कर जमीन की नीलामी करने का फैसला किया था। आजादी के बाद भी न्याय नहीं मिलने पर गांव के लोग स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस नहीं मनाते थे। मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने 23 मार्च, 2018 को ग्रामीणों से मिलकर उनके दर्द को समझा और गांव में तिरंगा झंडा फहराया। उन्होंने ग्रामीणों की मांग को जल्द पूरा करवाने का आश्वासन दिया था।
लाल सडक़ पर लोगों को कुचल था रोलर से

दिल्ली के बादशाह बहादुर शाह के आदेश पर 29 मई, 1857 को रोहनात वासियों ने क्रांतिकारियों का साथ देते हुए अंग्रेजी सेना पर आक्रमण बोला था। ग्रामीणों ने हांसी में सरकारी खजाना लूट लिया था। हिसार में 12 और हांसी में 11 अफसरों की हत्या कर दी थी। अंग्रेजों ने गांव को तोप से उड़ा दिया था। हांसी में सडक़ के बीच रोड रोलर से लोगों को मौत के घाट उतारा था। वह सडक़ लाल सडक़ के नाम से पहचानी जाती है।
अंग्रेजों ने नीलाम कर दिया था गांव

14 सितंबर, 1857 को गांव को बागी घोषित कर अंग्रेजों ने गांव को नीलाम करने का फैसला किया। 20 जुलाई, 1857 को जमीन नीलामी की प्रक्रिया शुरू की। एक महीने में 8100 रुपए में भूमि नीलाम कर दी। इसे आसपास के गांवों के 61 लोगों ने खरीदा था। बेदखल होने के कारण गांव के किसान अपनी ही जमीन पर मजदूरी करने को मजबूर हो गए।

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