राष्ट्रीय

Hindi Diwas Vishesh : दुनिया की सभी भाषाओं की अगली श्रेणी में सभासीन हो सकती है हिंदी

हिंदी दिवस विशेष : अन्य भाषाओं का वर्चस्व चाहे जितना बढ़ जाए, हमारी हिंदी पर कोई प्रतिकूल प्रभाव कभी नहीं पड़ेगा

Sep 14, 2021 / 03:15 pm

सुनील शर्मा

Hindi Diwas 2021 Best wishes : हिंदी दिवस पर मैसेज भेज अपनों को शुभकामनाएं दें

राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त ने कहा था कि हिंदी उन सभी गुणों से अलंकृत है, जिनके बल पर वह विश्व की सभी साहित्यिक भाषाओं की अगली श्रेणी में सभासीन हो सकती है, तो समाज सुधारक स्वामी दयानंद सरस्वती का कहना था – ‘हिंदी के माध्यम से सारे भारत को एक सूत्र में पिरोया जा सकता है। मेरी आंखें उस दिन को देखना चाहती हैं, जब कश्मीर से कन्याकुमारी तक सब भारतीय एक भाषा समझने और बोलने लग जाएंगे।’ पूर्व प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी ने संयुक्त राष्ट्र में हिंदी में भाषण देकर इतिहास रचा था। हिन्दी दिवस पर हिन्दी के बारे में इस भाषा के प्रमुख साहित्यकारों के विचार यहां पेश किए जा रहे हैं।
गहरी है हिंदी की जड़ें
विख्यात आलोचक प्रो. नामवर सिंह कहते हैं कि हिंदी हमारे देश की राजभाषा भी है और राष्ट्रभाषा भी। इसके बावजूद हिंदी का फलक जितना व्यापक होना चाहिए था, नहीं हो सका। अंग्रेजी या किसी अन्य भाषा का वर्चस्व चाहे जितना बढ़ जाए, हिंदी की जड़ें इतनी गहरी हैं कि उस पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ने जा रहा है। हिंदी के प्रचार-प्रसार के लिए काम किया जाना चाहिए।
रोजगार से जोड़ा जाए
हिंदी के कहानीकार कन्हैया लाल नंदन कहते हैं कि हिंदी भाषा को हिंदी जगत में ही उपेक्षा की दृष्टि से देखा जाता है। हिंदी भाषी ही इसे दोयम दर्जे की भाषा मानते हैं। इसके दो कारण हैं। एक तो इसे रोजी-रोटी से नहीं जोड़ा गया, दूसरे इसे कभी स्वाभिमान से जोड़ने की कोशिश नहीं की गई। ऐसे में लोगों के मन में इस बात को लेकर आशंका ज्यादा रहती है कि हिंदी को अपनाकर उनका आखिर क्या भला होगा।
उदारता दिखानी होगी
उपन्यासकार मैत्रेयी पुष्पा कहती हैं कि सरकार ने हिंदी को राजभाषा घोषित कर रखा है। घोषणा अलग चीज है और उस पर अमल अलग बात है। जब तक घोषणाओं को व्यवहार में लाने की कोशिश नहीं की जाती, तब तक किसी घोषणा का उद्देश्य पूरा नहीं हो पाता। देश में अंग्रेजी की लोकप्रियता बढ़ती जा रही है। हिंदी का विकास करना है तो हमें उदारता दिखानी होगी।
सांस्कृति पहचान
प्रख्यात साहित्यकार काशी नाथ सिंह कहते हैं कि हिंदी का बाल भी बांका नहीं होने वाला है। अंग्रेजी उसका कुछ नहीं बिगाड़ पाएगी। हिंदी को देश की संस्कृति में, यहां की आबो-हवा में पूरी तरह से रची बसी हुई है। इसे यहां की संस्कृति से जुदा कर पाना आसान नहीं है। आसान क्या, ऐसा कर पाना नामुमकिन है। अंग्रेजी को बढ़ावा मिलने की वजह आर्थिक है। वह हिन्दी का विकल्प नहीं है।
भारत में हिन्दी का भविष्य

हिन्दी आज ज्ञान शून्य : समझना होगा कि भाषा विषय भी है, ज्ञान भी और संस्कृति भी

Hindi News / National News / Hindi Diwas Vishesh : दुनिया की सभी भाषाओं की अगली श्रेणी में सभासीन हो सकती है हिंदी

Copyright © 2025 Patrika Group. All Rights Reserved.