सोमवार को सुनवाई के दौरान मुस्लिम पक्ष ने कोर्ट पर ही सवाल खड़े कर दिए। मुस्लिम पक्ष के वकील मुछला ने कहा कि कोर्ट को इस मुद्दे से बचना चाहिए था क्योंकि वो अरबी में कुशल नहीं है इसलिए वो कुरान की व्याख्या करने में सक्षम नहीं। ऐसे में कोर्ट को कुरान में इस्लाम के लिए हिजाब की अनिवार्यता की बजाय हिजाब को एक व्यक्तिगत महिला के अधिकार के रूप में देखा जाना चाहिए।
इसपर कोर्ट ने कहा, ‘मुछला, क्या आप अपनी ही बात के खिलाफ नहीं जा रहे हैं? एक तरफ, आप कह रहे हैं कि आवश्यक धार्मिक प्रथाओं के सवालों को एक बड़ी बेंच को भेजा जाना चाहिए, लेकिन दूसरी तरफ, आप कह रहे हैं कि किसी भी कोर्ट को इस पर गौर नहीं करना चाहिए।” इसपर मुछला ने कहा, मेरा तर्क है कि व्यक्ति के अधिकार के मामले में आवश्यक धार्मिक प्रथाओं के मुद्दों को लागू नहीं किया जाना चाहिए।
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दरअसल, सोमवार को हिजाब मामले पर जस्टिस हेमंत गुप्ता और जस्टिस सुधांशु धूलिया की बेंच ने इस मामले पर सुनवाई की। पीठ ने सवाल किया कि क्या उनका तर्क यही है कि हिजाब एक आवश्यक धार्मिक प्रथा है? इसपर वरिष्ठ अधिवक्ता युसूफ मुछला ने कहा कि ये अनुच्छेद 25(1)(ए), 19(1) ( ए) और 21 के तहत अधिकार है और इन अधिकारों को एक साथ पढ़ने पर मेरे मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होता है। इन छोटी बच्चियों का क्या अपराध कर रही हैं? यही कि वो अपना सिर ढकना चाहती हैं। जब पगड़ी पहनने पर कोई आपत्ति नहीं है तो इस सिर ढकने पर आपत्ति क्यों?”
वकील मुछला अब इस्लाम में हिजाब की जरूरत की जांच नहीं चाह रहे। उन्होंने कहा, ‘निजता मतबल शरीर और दिमाग पर खुद का अधिकार है।’ मुछला ने तर्क दिया कि निजता का अधिकार, धर्म की स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता एक दूसरे के पूरक हैं। दुर्भाग्य से हाईकोर्ट का मानना है कि अनुच्छेद 19(1) और 25 परस्पर अनन्य हैं।”
इसपर कोर्ट ने कहा किउसके पास कोई विकल्प नहीं था, क्योंकि याचिकाकर्ताओं ने दावा किया था कि ये एक आवश्यक धार्मिक प्रथा है।
मुछला ने कहा कि हिजाब पहनना धार्मिक संप्रदाय के बारे में नहीं है, बल्कि किसी व्यक्ति के मौलिक अधिकार के बारे में है। बता दें कि कर्नाटक हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि हिजाब पहनना इस्लाम के तहत अनिवार्य नहीं है। इसलिए ये संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत संरक्षित नहीं है।