मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की इस महत्वकांक्षी योजना को दिल्ली सरकार राशन डीलर्स संघ ने हाई कोर्ट में चुनौती दी थी। डीलर्स संघ का तर्क था कि यह राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली अधिनियम, पीडीएस नियम और संविधान के शासन का उल्लंघन है। डीलरों ने कोर्ट में दायर की गई अपनी याचिका में डोरस्टेप डिलीवरी योजना को समाप्त करने की गुहार लगाई थी।
दिल्ली के डीलरों के संघ ने दायर की थी याचिका-
डीलर्स संघ ने याचिका में यह मांग की थी कि भारतीय खाद्य निगम को सख्ती से यह सुनिश्चित करने का निर्देश दें कि दिल्ली सरकार को पीडीएस के तहत खाद्यान्न की आपूर्ति खाद्य, सुरक्षा और मानक अधिनियम, 2006 के तहत तय मानकों के अनुसार हो। केंद्र सरकार ने भी याचिकाकर्ताओं के इस तर्क का समर्थन किया था कि उचित मूल्य की दुकानें खाद्य सुरक्षा अधिनियम का अभिन्न अंग हैं। जो डोर स्टेप राशन डिलीवरी स्कीम चालू होने से बर्बाद हो जाएंगे।
दिल्ली सरकार ने दी थी भ्रष्टाचार पर लगाम की दलील-
हालांकि दिल्ली सरकार ने इस योजना का बचाव करते हुए कहा था कि डोरस्टेप डिलीवरी योजना से राशन वितरण की लंबी प्रक्रिया में हो रहे भ्रष्टाचार पर लगाम लगेगा। राज्य सरकार ने इस मामले में केंद्र से सवाल किया था कि अगर राज्य जीरो कॉस्ट पर राशन देने को तैयार है और नब्बे फीसदी जनता चाहती है तो केंद्र को इससे कोई दिक्कत क्यों है।
क्या है दिल्ली सरकार की डोर स्टेप राशन डिलीवरी योजना-
दिल्ली सरकार की इस योजना के जरिए दिल्ली के लोगों को घर बैठे-बैठे राशन पहुंचाए जाने की बात थी। दिल्ली सरकार ने कोर्ट में यह दलील दिया था कि दिल्ली के अधिकांश लोगों ने इस योजना का समर्थन किया है। साथ ही इस योजना में यह भी विकल्प दिया गया था कि सार्मथ्यवान लोग निःशुल्क राशन वितरण की योजना से बाहर निकल सकते है। सरकार की इस योजना का दिल्ली के डीलर विरोध कर रहे हैं।