कांग्रेस नेता यह मान कर बैठ गए कि जनता में भाजपा की तत्कालीन खट्टर सरकार के खिलाफ नाराजगी है और कांग्रेस भारी बहुमत से चुनाव जीत जाएगी। चुनाव के शुरुआती दौर में बड़े नेताओं ने भी प्रचार में सुस्ती दिखाई। कुमारी शैलजा कोप भवन में जाकर बैठ गईं। भाजपा ने शैलजा के अपमान और सीएम को लेकर कांग्रेस के झगड़े का मुद्दा गांव-गांव तक पहुंचा दिया। शैलजा ने प्रचार में नहीं उतर कर भाजपा के इस एजेंडे को आगे बढ़ाने का काम कर दिया। इसका नुकसान कांग्रेस को उठाना पड़ा है।
भाजपा की पिच पर खेली कांग्रेस
कांग्रेस के अति आत्मविश्वास ऐसा रहा कि हुड्डा का घर कहे जाने वाले रोहतक शहरी सीट पर कांग्रेस उम्मीदवार कांटे की टक्कर में फंस गए। कस्बाई व शहरी इलाकों में पंजाबियों, बनियों की संख्या अधिक है। हुड्डा के जाटवाद के नारे के चलते अधिकांश शहरी इलाकों में दूसरी जातियों के मतदाता कांग्रेस से दूर होते चले गए। कांग्रेस के रणनीतिकार भूल गए कि भाजपा ने पहले दो विधानसभा चुनाव जाटों के खिलाफ गैर जाट जातियों को एकजुट कर जीता था। कांग्रेस पूरी तरह से भाजपा की पिच पर जाकर जाटवाद के नारा लगाने लग गई। भले ही जाट वोट बड़े पैमाने पर कांग्रेस को मिला हो, लेकिन वे हर सीट को जीत में नहीं बदल सकें।
इधर, दूसरी जातियों के वोटर भाजपा भाजपा के पक्ष में जुट गए। यही वजह रही है कि चाहे रोहतक हो या फिर पानीपत या सोनीपत, हुड्डा के प्रभाव के बावजूद कांग्रेस को यहां भाजपा ने चित कर दिया। सोनीपत में पंजाबी उम्मीदवार होने के बावजूद कांग्रेस को यह सीट खोनी पड़ी। इस जिले की 6 में से 4 सीट कांग्रेस के कब्जे में थी। इस बार सिर्फ एक सीट पर कांग्रेस जीत सकी है। जबकि चार पर भाजपा और एक पर निर्दलीय ने कब्जा जमा लिया।
मतों का बंटवारा रोकने में विफल
हरियाणा की करीब डेढ़ दर्जन सीटों पर हार-जीत का अंतर करीब काफी कम रहा है। ऐसी सीटों पर इनेलो, जेजेपी, बसपा, आजाद समाजवादी पार्टी, आम आदम पार्टी ने कांग्रेस के वोट काट कर भाजपा को फायदा पहुंचाया है। कुछ सीटों पर बागियों ने भी खेल बिगाड़ा है।