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Ground Report: जम्मू-कश्मीर में हर तबका मतदान के लिए आतुर, लेकिन नतीजों को लेकर कन्फ्यूज, ये हैं तीन बड़े कारण

Ground Report: Ground Report: जम्मू-कश्मीर के पहले विधानसभा चुनाव को लेकर एक समय के अलगवावादियों समेत अमन पसंद जनता तक सभी में इस बार भारी उत्साह है। पढ़िए दौलत सिंह चौहान की खास रिपोर्ट…

जम्मूSep 12, 2024 / 12:42 pm

Shaitan Prajapat

Ground Report: केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर के पहले विधानसभा चुनाव को लेकर एक समय के अलगवावादियों समेत अमन पसंद जनता तक सभी में इस बार भारी उत्साह है। लेकिन, चुनाव के नतीजों को लेकर कन्फ्यूजन ही कन्फ्यूजन है। दशकों बाद यह पहला मौका है जब हर तरह के लोग चुनाव में मतदान के लिए आतुर हैं। अट्ठारह सितंबर को पहले चरण के मतदान वाले इलाकों के हालात की टोह लेने के मेरे इस दौरे का पहला दिन श्रीनगर में बीता। लालचौक में मिले आम जन से लेकर राजनीतिक दलों के पदाधिकारियों, प्रबुद्ध लोगों, पत्रकारों आदि जितने भी लोगों से बात हुई, सबने एक ही बात कही कि इस बार कश्मीरियों में भारी उत्साह है। कारण बताया गया कि कश्मीर के लिए दशकों से सपना बन चुकी फ्री एंड फेयर इलेक्शन की उम्मीद सभी को है इस बार। लेकिन इस सवाल पर कि क्या निकलेगा नतीजा, जितने मुंह उतनी बातें सुनने को मिली। बातों की तह में गया तो इतनी अलग-अलग राय के तीन बड़े कारण भी स्पष्ट रूप से समझ में आए।

कन्फ्यूजन का पहला कारण

भाजपा की सरकार किसी हालत में नहीं बनेगी

पहला कारण तो इस बार राष्ट्रीय दल कांग्रेस पार्टी से लेकर चुनाव लड़ रहे लगभग सारे क्षेत्रीय दल भाजपा के खिलाफ लामबंद हैं। चुनाव के मुद्दा धारा 370 हटाना और जम्मू-कश्मीर से राज्य का दर्जा छीन कर दो टुकड़े करके केंद्र शासित प्रदेश बना देना। चुनाव पूर्व गठबंधन भले ही कांग्रेस और नेशनल कांफ्रेस (एनसी) के बीच हुआ हो लेकिन मुद्दा महबूबा मुफ्ती की पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) का भी वही है। जम्मू-कश्मीर नेशनल पीपुल्स फ्रंट (जेकेएनपीएफ) के मीडिया प्रभारी एजाज अहमद का भी यही कहना था, बिलकुल ऐसा हो सकता है। इनके मुद्दे तो एक ही है। आप देखिए, एनसी नेता और पीडीपी नेता अपने भाषणों में धारा 370 की बहाली की मांग खुलकर रख रहे हैं, लेकिन लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष कांग्रेस को नेता राहुल गांधी इसे थोड़ बदल कर इतना ही कह रहे हैं कि हम कश्मीर को राज्य का दर्जा बहाल करके रहेंगे। वे यहां तक कह गए कि केंद्र की मौजूदा सरकार नहीं करेगी तो इंडिया गठबंधन की आने वाली सरकार करेगी। ऐसे में घाटी में प्रभाव रखने वाली एनसी और पीडीपी और घाटी व जम्मू दोनों रीजन में प्रभाव रखने वाली कांग्रेस एक होती है तो आश्चर्य नहीं होगा। मतलब भाजपा की सरकार किसी हालत में नहीं बनेगी।

कन्फ्यूजन का दूसरा कारण

चाहे कुछ भी हो सरकार तो भाजपा ही बनाएगी

कारण गिनाया गया कि विरोधियों की लामबंदी के चलते भाजपा ने इस बार राम माधव को ऐन वक्त पर फिर से चुनाव प्रभारी यों ही नहीं बनाया है। राम माधव की सक्रियता के बाद पहले चरण से ही खास कर कश्मीर घाटी रीजन निर्दलीय प्रत्याशियों की चुनाव मैदान में आश्चर्यजनक रूप से संख्या बढ़ गई। पहले चरण की 24 सीटों पर मैदान में रहे 219 प्रत्याशियों में से 90 से ज्यादा निर्दलीय हैं। इनमें सामान्य जन ही नहीं प्रतिबंधित जमात-ए-इस्लामी के कई नेता शामिल हैं। जहां सीआरपीएफ के 40 से ज्यादा जवानों के शहीद होने की घटना के बाद जमात पर यूएपीए के तहत बैन लगा उस पुलवामा सीट पर जमात के पूर्व नेता तलत मजीद ने ताल ठोकी है। जमता 1987 के चुनाव के बाद से चुनाव का बायकाट करने वाली हुर्रियत के साथ रही है।
भाजपा ने 2014 के पिछले विधानसभा चुनाव में यहां (तब की) 87 सीटों में से 25 सीटें जीती थी और ये सारी की सारी जम्मू क्षेत्र की थी। पीडीपी ने 28 सीटें जीती जिसमें ज्यादातर घाटी के अलावा कुछ जम्मू रीजन की मुस्लिम बहुल सीटें भी थी। एनसी और कांग्रेस ने तब अलग-अलग लड़कर क्रमशः 15 और 12 सीटें जीती थी। लेकिन परिसीमन के बाद इस बार लद्दाख के अलग केंद्र शासित प्रदेश बन जाने के बावजूद जम्मू-कश्मीर विधानसभा की 90 सीटें हैं। इसमें 47 जम्मू में और 43 घाटी में है। श्रीनगर से प्रकाशित एक अंग्रेजी अखबार के संपादक आरिफ शाह वानी के अनुसार भाजपा को जम्मू से भले ही इस बार भी ज्यादातर सीटें मिल जाए लेकिन घाटी में पिछली बार का उसका शून्य एक में तब्दील होने से ज्यादा कुछ होता हुआ दिखाई नहीं दे रहा।
भाजपा का काम निर्दलीयों की जीत से ही बन सकता है। एक बात साफ है घाटी में जितने निर्दलीय जीतेंगे उतना एनसी, कांग्रेस और पीडीपी का ही नुकसान होगा। इससे भाजपा के सबसे बड़े दल के रूप में उभरने की संभावना बढ़ेगी। पार्टी को सरकार बनाने या सबसे बड़े दल के रूप में उभरने के लिए घाटी की कम से कम दस सीटों पर ‘अपने’ चाहिए। इसी नजरिये से बिसात बिछाई गई है। कांग्रेस के प्रदेश महासचिव इरफान नकीब के अनुसार जेल में रहते हुए हाल के लोकसभा चुनाव में जीत हासिल करने वाले एपीआई प्रमुख इंजीनियर राशिद की मंगलवार को ही अंतरिम जमानत पर रिहाई निर्दलीयों के साथ मिल कर बिछाई गई बिसात का बड़ा प्रमाण है। क्या जमात के समर्थक और एपीआई के प्रत्याशी जीत बाद भाजपा के साथ ही रहेंगे, इस सवाल पर इरफान बोले इसकी तो कौन गारंटी दे सकता है। जमात के नेताओं में बदलाव का कारण क्या होगा, इस सवाल पर 73 वर्षीय मोहम्मद रमजान बोले सरहद पार के हालात भी बदल गए अब उनकी हालत भी खराब है ऐसे में जमात नेता करते भी तो क्या।

कन्फ्यूजन का तीसरा कारण

यह बड़ा दिलचस्प है। यह आम आवाम की दुविधा को दर्शाता है। आम कश्मीरी भाजपा नेताओं के इस आरोप से सहमत दिखाई दिया की कश्मीर को अब तक दो-तीन परिवार ने लूटा है। लालचौक घंटाघर की चबूतरी पर बैठे एम्तियाज अहमद का कहना था कि 70 साल से राज करने वालों ने क्या किया ? जब अफजल गुरू को फांसी दी गई तब उमर अब्दुल्ला चीफ मिनिस्टर थे, क्या कर लिया ? धारा 370 हटी तब चीफ मिनिस्टर महबूबा मुफ्ती थी, क्या कर लिया ? वो अपने घर के लिए कर रही है, अपने बच्चों के लिए कर ही है, आवाम के लिए कुछ नहीं किया। जो लोग दंगे कराते थे वो आज चुनाव लड़ रहे हैं। ये बदलाव क्यों आया, इस सवाल पर वह बोले 370 हटने से बदलाव आया। पहले आवाम की कोई सुनता नहीं था। सरकारी मुलाजिम बेलगाम होकर भ्रष्टाचार कर रहे थे। गवर्नर राज में इनको टाइट कर दिया गया है। आम आदमी की सुनवाई होने लगी है। गरीबों का फायदा है अब। पहले सिर्फ अमीरों को फायदा होता था आज गरीबों की सुनवाई हो रही है।’
‘हमारी कौन सुनता है’

लालचौक से वापस होटल जाने के लिए ऑटो रिक्शा किया। चालक इमरान से बात की तो शुरुआती ना नुकुर के बाद वो इम्तियाज के ठीक विपरीत फट पड़ा, हमारे लिए कोई कुछ नहीं कर रहा। कोई पार्टी हो जीतने के बाद कुछ नहीं करती। श्रीनगर स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के काम के चलते सड़क पर गड्ढे से ऑटो हिचकोले खाने लगा तो बोले, अब ये स्मार्ट सिटी पर करोड़ों रुपए खर्च कर रहे हैं, हमें नहीं चाहिए स्मार्ट सिटी। जब हम ही बेहाल हैं तो स्मार्ट सिटी का क्या करेंगे। इन करोड़ों रुपयों से चार कारखाने ही खोल देते तो बेरोजगारों को काम मिल जाता। पढ़े-लिखे डिग्रीधारी लोग ऑटो चलाने और मजदूरी करने को मजबूर है। हमें तो नायक फिल्म के हीरो अनिल कपूर जैसा नेता चाहिए। उमर अब्दुल्ला जब नए-नए आए तो नायक बने फिर वे ही सबसे बड़े खलनायक बन गए। पर चुनाव में वोट तो दोगे, यह सवाल दागा तब तक होटल आ गया। इमरान ने ऑटो रोका और मुझसे हाथ मिला कर बोला, हमारा संकट यह है कि हम किस पर विश्वास करें और किस पर नहीं। आप से बात करके हमें तो लगा कि हमने हमारी बात मोदी जी तक पहुंचा दी। वरना हमारी कौन सुनता है।

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