अमेरिकी फेडरल रिजर्व बैंक बुधवार को अपनी मौद्रिक नीतियों का ऐलान करेगा। विशेषज्ञों का कहना है कि फेडरल रिजर्व इस बैठक में ब्याज दरों में 0.25% की कटौती कर सकता है। वहीं कुछ एक्सपर्ट को उम्मीद है कि दरों में 0.5% की कटौती हो सकती है। इस उम्मीद से भारतीय शेयर बाजार सोमवार को अपने नए ऑल-टाइम हाई पर पहुंच गए। साथ ही सोना-चांदी में भी तेजी आई। चांदी फिर से 90,000 रुपए किलो के पार निकल गई है। वहीं एमसीएक्स पर प्रति 10 ग्राम सोना 74,000 रुपए के करीब पहुंच गया है।
चांदी की कीमतें एमसीएक्स पर पिछले एक हफ्ते में ही 7500 रुपए और एक महीने में 10,000 रुपए प्रति किलो बढ़ चुका है। वहीं गोल्ड की कीमतें भी एक हफ्ते में 2000 रुपए और एक महीने में 4000 रुपए बढक़र आम बजट से पहले के स्तर से भी ऊपर है। एमसीएक्स पर सोमवार को गोल्ड 73,649 रुपए और सिल्वर 90,284 रुपए तक पहुंच गई। अमरीका में ब्याज दरें घटने पर सोना-चांदी में और तेजी आने की उम्मीद है। ब्याज दरें अगर 0.25% घटी तो शेयर बाजार पर ज्यादा असर नहीं होगा, पर दरें 0.5त्न घटी तो बुल रन देखने को मिल सकता है।
मजबूती का ट्रेंड जारी रहेगा
मेहता इक्विटीज के राहुल कलांतरी ने कहा, अगर अमरीकी केंद्रीय बैंक इंटरेस्ट रेट घटाता है तो गोल्ड की कीमतों में मजबूती का ट्रेंड जारी रहेगा। साथ ही डॉलर की कमजोरी से भी गोल्ड को सपोर्ट मिलता रहेगा। जियोपॉलिटिकल टेंशन से भी भी गोल्ड को मजबूती मिल रही है। यूक्रेन और मध्यपूर्व में टेंशन बढ़ रहा है। उधर, अमरीका और चीन के रिश्ते भी तनावपूर्ण बने हुए हैं। इससे भविष्य में भी गोल्ड की डिमांड बढ़ेगी।
कहां तक जा सकता है सोना
एक्सएम ऑस्ट्रेलिया के सीईओ पीटर मैकगुइरे ने कहा, इस महीने के अंत तक अंतरराष्ट्रीय बाजार में गोल्ड का भाव 2,700 डॉलर पहुंच जाए तो हैरानी नहीं होनी चाहिए। गोल्डमैन ने अगले साल गोल्ड के 2,700 डॉलर पर पहुंच जाने की उम्मीद जताई है। बैंक ऑफ अमेरिका ने अगले साल तक सोने का भाव 3,000 डॉलर प्रति औंस तक पहुंचने का अनुमान जताया है। वही, एलकेपी सिक्योरिटीज के जतीन त्रिवेदी ने कहा कि भारत में सोना जल्द 75,000 रुपए के पार जा सकता है।
भारत को ऐसे होगा फायदा
जब जेरोम पॉवेल दरों में कटौती करेंगे तो अमरीकी गवर्नमेंट सिक्योरिटीज से पैसा निकलेगा और रिटर्न घटेगा। इससे विदेशी निवेशकों का निवेश इमर्जिंग और हाई यील्ड वाले एसेट्स में जाएगा। इससे भारत समेत अन्य उभरती अर्थव्यवस्था में ज्यादा विदेशी निवेश देखने को मिलेगा और बाजारों में तेजी आएगी। ब्याज दरें घटने से डॉलर भी कमजोर होगा, जिससे देश में आयातित वस्तुएं सस्ती होंगी।