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हाथ में गीता, चेहरे पर मुस्कान, 18 की उम्र में दी गई थी स्वतंत्रता संग्राम के वीर खुदीराम बोस को फांसी

Khudiram Bose Death Anniversary: देश की आजादी की बात आती है तो वीर स्वतंत्रता सेनानियों के नाम जहन में गूंजने लग जाते हैं।

नई दिल्लीAug 11, 2024 / 12:35 pm

Prashant Tiwari

देश की आजादी की बात आती है तो वीर स्वतंत्रता सेनानियों के नाम जहन में गूंजने लग जाते हैं। देश की आजादी की लड़ाई में भगत सिंह हो या चंद्रशेखर आजाद या फिर सुभाष चंद्र बोस, हर किसी ने अपना बलिदान दिया। लेकिन, शहीदों की सूची में एक नाम ऐसा भी था, जिसे भुलाया नहीं जा सकता। जब उन्होंने फांसी के फंदे को गले लगाया तो उस समय उनकी उम्र महज 18 साल थी। ये स्वतंत्रता सेनानी थे खुदीराम बोस।
फांसी के समय महज 18 साल के थे बोस

बता दें कि स्वतंत्रता सेनानी खुदीराम बोस को 11 अगस्त 1908 को बहुत ही कम उम्र में फांसी दी गई थी। फांसी के समय खुदीराम की उम्र 18 साल, 8 महीने और 8 दिन थी। उनकी शहादत ने देश को झकझोर कर रख दिया। देश के लिए मर मिटने के उनके जज्बे ने कइयों को प्रेरित किया।
तहसीलदार पिता के बेटे थे बोस

खुदीराम बोस का जन्म 3 दिसंबर, 1989 को बंगाल (पश्चिम बंगाल) के मिदनापुर में हुआ था। उनके पिता तहसीलदार थे। बचपन के दिनों में ही उनके सिर से माता-पिता का साया उठ गया। खुदीराम की बड़ी बहन ने ही उनकी देख रेख की। हालांकि, स्कूली दिनों में ही उन्होंने आजादी से जुड़े कार्यक्रमों में हिस्सा लेना शुरू कर दिया और बाद में स्कूल भी छोड़ दिया। वह 15 साल की उम्र में स्वयंसेवक बन गए और भारत में ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ चल रहे आंदोलन में भाग लेने लगे। 15 साल की उम्र में खुदीराम बोस को पर्चे बांटने के लिए गिरफ्तार किया गया। इसके बाद उन्होंने 16 साल की उम्र में पुलिस स्टेशनों के पास बम लगाने और सरकारी अधिकारियों को निशाना बनाने की योजनाओं में भी हिस्सा लिया।
Gita in hand smile on face freedom fighter Khudiram Bose was hanged at age of 18
1907 में रेलवे स्टेशन पर बम विस्फोट की घटना को अंजाम दिया

खुदीराम बोस 1905 में हुए बंगाल का विभाजन विरोध करने वालों में से एक थे। उन्होंने विभाजन के विरोध में चलाए गए आंदोलनों में भी बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया। खुदीराम बोस उस समय चर्चा में आए, जब उन्होंने 6 दिसंबर 1907 को नारायणगढ़ रेलवे स्टेशन पर एक बम विस्फोट की घटना को अंजाम दिया। इसके बाद उन्होंने किंग्सफोर्ड नामक एक ब्रिटिश अधिकारी को मारने की योजना बनाई। कहा जाता है कि वह भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों पर बहुत जुल्म करता था।
किंग्सफोर्ड की बग्घी को बनाया निशाना

खुदीराम और प्रफुल्ल चाकी ने किंग्सफोर्ड की रेकी की और बाद में मुजफ्फरपुर में बम से उसकी बग्घी को निशाना बनाया। इस हमले में किंग्सफोर्ड की पत्नी और बेटी की मौत हो गई। इस घटना के बाद वे भागने में सफल हुए, लेकिन वैनी स्टेशन पर पुलिस ने खुदीराम को संदेह के बाद गिरफ्तार कर लिया। खुदीराम के साथी प्रफुल्ल चाकी ने खुद को गोली मार ली।
खुदीराम ने अपनी गिरफ्तारी के बाद किंग्सफोर्ड पर फेंके गए बम की बात को स्वीकारा और उन्हें फांसी की सजा सुनाई गई। 11 अगस्त 1908 को उन्हें मुजफ्फरपुर जेल में फांसी दे दी गयी। उस समय उनकी उम्र मात्र 18 वर्ष थी। फांसी के समय उनके हाथ में भगवद गीता थी और चेहरे पर मुस्कान थी।
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