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नई दिल्ली

‘माता-पिता भारतीय नागरिकता भलें छोड़ दें, गर्भ में मौजूद बच्चे को नागरिकता वापस पाने का हक’ – मद्रास हाईकोर्ट

अगर पति-पत्नी माता-पिता बनने जा रहे हैं, मगर साथ हीं भारत की नागरिकता भी छोड़ने जा रहे हैं, तो उनसे जन्मा बच्चा वापस भारतीय होने का हकदार है। मद्रास उच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया है, कि अजन्मा बच्चा भी भारतीय नागरिकता का दावा कर सकता है।

नई दिल्लीMay 19, 2022 / 05:07 pm

Archana Keshri

'माता-पिता भारतीय नागरिकता भलें छोड़ दें, गर्भ में मौजूद बच्चे को नागरिकता वापस पाने का हक' - मद्रास हाईकोर्ट

‘माता-पिता भारतीय नागरिकता भलें छोड़ दें, गर्भ में मौजूद बच्चे को नागरिकता वापस पाने का हक’ – मद्रास हाईकोर्ट

माता-पिता भले ही अपनी भारतीय नागरिकता का त्याग करते हैं और किसी दूसरे देश की नागरिकता का विकल्प चुनते हैं, लेकिन त्याग के समय उनका अजन्मा बच्चा भारतीय नागरिकता का दावा करने का हकदार है, मद्रास उच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया है। मद्रास हाईकोर्ट की जस्टिस अनिता सुमंथ ने 22 साल के हो चुके ऐसे ही एक बच्चे की याचिका स्वीकार कर उसे चार हफ्ते में भारतीय नागरिकता देने के लिए केंद्रीय गृहमंत्रालय को निर्देश दिए।
न्यायमूर्ति अनीता सुमंत ने 22 साल के प्रणव श्रीनिवासन की एक रिट याचिका की अनुमति देते हुए यह फैसला सुनाया, जिसमें प्रणव ने भारतीय नागरिकता की मांग की थी। उन्होंने केंद्रीय गृह मंत्रालय के 30 अप्रैल 2019 के उस आदेश को रद्द करने की मांग की, जिसने उनकी याचिका को खारिज कर दिया था। याचिकाकर्ता के माता-पिता, हालांकि मूल रूप से भारतीय नागरिक थे, ने अपनी नागरिकता त्याग दी और दिसंबर, 1998 में सिंगापुर की नागरिकता प्राप्त कर ली। याचिकाकर्ता उस समय साढ़े सात महीने का भ्रूण था।
1 मार्च 1999 को प्रणव का जन्म सिंगापुर में हुआ और जन्म की वजह से उसे सिंगापुर की स्वाभाविक नागरिकता मिली। बालिग होने पर प्रणव ने भारतीय नागरिकता वापस लेने का निर्णय किया। इसके लिए मई 2017 को सिंगापुर में भारतीय दूतावास में नागरिकता के लिए आवेदन किया। प्रणव का कहना था कि जब वह गर्भ में था, तब भी भारतीय था। प्रणव ने 5 मई 2017 को सिंगापुर में भारतीय वाणिज्य दूतावास के समक्ष अपनी भारतीय नागरिकता की बहाली की मांग की।

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याचिकाकर्ता के अनुसार, वह भारतीय नागरिक नहीं रहा, क्योंकि उसके माता-पिता 19 दिसंबर, 1998 को सिंगापुर के नागरिक बन गए थे, उस वक्त हालांकि वह अपनी मां के गर्भ में था। प्रणव ने दलील दी कि क्योंकि उसके माता-पिता और दादा-दादी दोनों जन्म से भारत के नागरिक थे और उसके दादा-दादी आज भी भारतीय नागरिक हैं।
न्यायाधीश ने कहा, “याचिकाकर्ता को इस तरह की स्थिति से इनकार करने का प्रयास करने वाला आदेश मेरे विचार में स्पष्ट भाषा और धारा 8 (2) के स्पष्ट इरादे के विपरीत है।” हाईकोर्ट ने कहा कि भ्रूण के तौर पर प्रणव ने एक बच्चे का दर्जा हासिल कर लिया था। इसके तहत वह अपने माता-पिता की वजह से भारतीय बन चुका था। नागरिकता बाद में बदली। ऐसे में वह नागरिकता नियमावली के तहत वापस भारतीय बनने का पात्र है। केंद्रीय मंत्रालय के अस्वीकृति आदेश को अलग करें। न्यायाधीश ने कहा कि याचिकाकर्ता नागरिकता की बहाली का हकदार है और उसे चार सप्ताह के भीतर नागरिकता का दस्तावेज जारी किया जाएगा।

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