एक हजार में एक दुर्लभ रोग का शिकार
विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization) ने आजीवन चलने वाली बीमारियों को दुर्लभ बीमारियों को श्रेणी में रखा है। यह प्रति एक हजार लोगों में से एक या उससे भी कम लोगों को प्रभावित करती हैं। भारत में करीब 55 चिकित्सा स्थितियों को दुर्लभ बीमारियों के रूप में वर्गीकृत किया गया है। इनमें जिनमें गौचर रोग (Gaucher disease) , लाइसोसोमल स्टोरेज डिसऑर्डर (Lysosomal Storage Disorder), टायसोनेमिया (Tysonemia), मस्कुलर डिस्ट्रॉफी (Muscular Dystrophy) के कई रूप शामिल हैं।पोर्टल के जरिये कर सकते हैं दान
केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार मंत्रालय ने ऐसे रोगियों की मदद के लिए पोर्टल बना रखा है। यहां करीब 2,342 मरीजों का रजिस्ट्रेशन है। इनमें से 50 मरीज ऐसे हैं जिनको तत्काल मदद की दरकार है। जोधपुर एम्स में 116 और भोपाल एम्स में 20 मरीजों का रजिस्ट्रेशन है। मरीजों के फोटो, उनके परिजनों के मोबाइल नंबर, पते, बीमारी का नाम, उपचार की अनुमानित लागत, बैंक विवरण की जानकारी उपलब्ध है। दानदाता अपने अनुसार उपचार केंद्र और रोगियों के उपचार को चुन सकते हैं।दवाओं की लागत बहुत ज्यादा
दुर्लभ बीमारियों की कई दवाइयां और उपचार पेटेंट के तहत आते हैं, जिसके चलते ये बहुत महंगे होते हैं। यदि इन दवाओं को भारत में विकसित और निर्मित किया जाए तो उनकी कीमतें कम की जा सकती हैं लेकिन इसके लिए सरकार को कंपनियों को कर में छूट जैसी प्रोत्साहन योजनाएं देनी होंगी। दिल्ली हाई कोर्ट ने ऐसी दवाओं के लिए कस्टम, जीएसटी और आयकर कानूनों के तहत आवश्यक छूट की प्रक्रिया को 30 दिनों में पूरा करने की समय सीमा निर्धारित की है।दुर्लभ रोगों की तीन श्रेणियां
समूह 1: जिनका इलाज एक बार के उपचार से किया जा सकता है।समूह 2: जिनके लिए दीर्घकालिक या आजीवन उपचार की आवश्यकता। यह अपेक्षाकृत कम महंगे होते हैं, लेकिन रोगियों को नियमित जांच की आवश्यकता पड़ती है।
समूह 3: जिनके लिए प्रभावी उपचार उपलब्ध हैं, लेकिन वे महंगे होते हैं और अक्सर जीवनभर चलते हैं।
केस-1: फेंफड़ों में फंसता है बलगम, सांस लेने होती है परेशानी
जोधपुर के ज्वाला विहार में रहने वाले 15 साल का मोहित डाटावनी जन्म से ही सिस्टिक फाइब्रोसिस (Cystic fibrosis) से पीड़ित है। उसके इलाज पर करीब साढ़े 12 लाख रुपए का खर्च बताया गया है। उनके पिता मनीष डाटावनी का कहना है कि मोहित के फेंफड़ों में बलगम (Cough congestion in Lungs) फंस जाता है, उसे सांस लेने में परेशानी (Breathing Problems) होती है। जोधपुर एम्स से दवाएं निशुल्क मिलती है। घर पर नेबुलाइजर मशीन लाकर रखी हुई है।केस-2: 17 करोड़ का था इलाज, 6 माह के बच्चे की मौत
भीलवाड़ा के आदर्श विहार निवासी आदित्य पारीक के पुत्र कियान पारीक को जन्म के एक महीने बाद स्पाइन मस्कुलर एट्रोपी बीमारी बताई थी। इसमें बच्चे की मांसपेशियां बिल्कुल कमजोर होती है। वह बैठ भी नहीं सकता है। इसके इलाज का अनुमानित खर्च करीब 17 करोड़ रुपए बताया गया। आदित्य ने बताया कि इलाज नहीं होने के कारण बच्चे का छह महीने की उम्र में महीने में निधन हो गया।केस-3: सरकार बदलते ही जयपुर में दवा मिलनी बंद
नागौर का 13 साल का मोहम्मद दानिश पैदाइशी गौचर रोग से पीड़ित है। चाचा तोशीब राहीन ने बताया कि इलाज पर 82 लाख रुपए का खर्च बताया गया। कोर्ट के आदेश पर गौचर पीडि़त छह बच्चों का ग्रुप बनाया गया। जयपुर के जेके लोन अस्पताल से निशुल्क दवाएं मिलनी शुरू हुई लेकिन, पिछले साल राजस्थान सरकार बदलते ही बंद हो गई। अब दिल्ली के मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज से दवाएं लेनी पड़ती है।यहां होता है इलाज
- अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, जोधपुर (AIIMS, Jodhpur)
- अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, दिल्ली (AIIMS, Delhi)
- अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, भोपाल (AIIMS Bhopal)
- आईपीजीएमईआर, कोलकाता (IPGMER, Kolkata)
- इंस्टीट्यट ऑफ चाइल्ड एंड हॉस्पिटल फॉर चिल्ड्रन, इगमोर (ICHHC, EGMORE)
- गर्वमेंट मेडिकल कॉलेज, तिरुवंतुपुरम (GMC, Thiruvananthapuram)
- सेन्टर फॉर हयूमन जेनेटिक्स, बेंगलूरु (Centre For Human Genetics, Bengaluru)
ऐसे बढ़ता गया बजट
वित्तीय वर्ष बजट करोड़ में2022-23 34.99
2023-24 74.0
2024-25 24.20
उपकरण खरीद 35 करोड़ यह भी पढ़ें – Expenditure on food: आजादी के बाद आधे से भी कम हुआ भोजन पर औसत घरेलू खर्च, पैकेज्ड फूड की बढ़ी खपत बनी चिंता का कारण