अकाली दल भाजपा के साथ जा सकती है कृषि कानून के कारण पंजाब के कई शहरों में आये दिनों विरोध प्रदर्शन देखने को मिले हैं। पंजाब में भाजपा के खिलाफ कितना गुस्सा था इसका अंदाजा आप इसी से लगा सकते हैं कि कई जगहों से भाजपा नेताओं को बंधक बनाने की खबरे तक सामने आईं थीं। हालांकि, मोदी सरकार के इस निर्णय के बाद अब अकाली दल भाजपा के साथ फिर से हाथ मिलाने पर विचार कर सकता है। भाजपा से अलग होने के बावजूद अकाली दल को कोई खास फायदा नहीं हुआ था। शिरोमणि अकाली दल आज भी राज्य में फिर से सत्ता पाने के लिए जुटी हुई है और एक बार फिर से वो भाजपा के साथ मिलकर विधानसभा चुनावों के लिए जीत का खाका बुनना चाहेगी। इसका बड़ा कारण हिन्दू मतदाता भी हैं जिनका समर्थन 1996 से ही भाजपा के कारण अकाली दल को मिलता रहा है।
अमरिंदर सिंह का साथ, दोनों के लिए फायदेमंद कांग्रेस पार्टी से अलग हो चुके अमरिंदर सिंह भी भाजपा संग आ सकते हैं। कांग्रेस से अलग होने के बाद कैप्टन अमरिंदर सिंह ने कहा था कि जब तक भाजपा किसानों के हित में निर्णय नहीं लेती वो भाजपा के साथ जाने पर विचार नहीं करेंगे। हालांकि, अब स्थिति बदल गई है और अगर अमरिंदर सिंह भाजपा के साथ जाने का निर्णय लेते हैं तो यहाँ दोनों को ही फायदा हो सकता है।
पंजाब के पूर्व सीएम कैप्टन अमरिंदर सिंह ने भाजपा के साथ काम करने की अपनी इच्छा भी व्यक्त की है। उन्होंने कहा कि ‘प्रधानमंत्री ने न केवल किसानों को बड़ी राहत दी है बल्कि पंजाब की प्रगति का मार्ग प्रशस्त किया है। मैं भाजपा के साथ मिलकर काम करने के लिए उत्सुक हूं।’
आज भी कैप्टन अमरिंदर सिंह पंजाब में लोकप्रिय चेहरा हैं और आम जनता को उनसे सहानुभूति भी है। भाजपा के पास प्रदेश में कोई लोकप्रिय चेहरा नहीं है। यदि अमरिंदर सिंह भाजपा के साथ जाते हैं तो भाजपा को सीएम पद के लिए मजबूत चेहरा मिल जाएगा। वहीं, अमरिंदर सिंह को फिर से सीएम की कुर्सी और बड़ी पार्टी का साथ मिल जाएगा।
भाजपा अकेले चुनाव लड़ सकती है पंजाब विधानसभा के लिए 117 सीटों पर इस बिल का बड़ा प्रभाव देखने को मिल सकता है। पंजाब की सत्तारूढ़ पार्टी नेतृत्व की कमी और आंतरिक मतभेद से जूझ रही है। नवजोत सिंह सिद्धू को राज्य का सीएम चेहरा बनाए जाने की चर्चाएं भी हैं जिससे प्रदेश की जनता खुश नहीं है। यही वजह है कि प्रदेश में कांग्रेस पार्टी कमजोर स्थिति में नजर आ रही है। बात करें अकाली दल कि तो प्रदेश में इस पार्टी के खिलाफ आज भी गुस्सा है जो पंजाब के निकाय चुनाव में भी देखने को मिला था।
वहीं, अकाली दल को 2017 विधानसभा चुनाव में हार के बाद 2019 लोकसभा चुनाव में भी कुछ खास हासिल नहीं हुआ था। आम आदमी पार्टी भी पंजाब में अपना प्रभाव बढ़ाने के लिए काम कर रही है, लेकिन अभी पार्टी आंतरिक कलह से जूझ रही है। आम आदमी पार्टी ने 2017 के विधानसभा चुनावों में 20 सीटों पर जीत दर्ज कर मुख्य विपक्षी दल का दर्जा हासिल किया था, परंतु इसके विधायकों की संख्या केवल 10 रह गई है। ऐसे में भाजपा एक मजबूत विकल्प पंजाब की जनता के लिए साबित हो सकती है।
भाजपा सभी परिदृश्यों को भांपते हुए अकेले विधानसभा चुनावों में जाने का निर्णय ले सकती है। भाजपा का अकेले चुनावों में जाना कांग्रेस, AAP और अकाली दल तीनों के लिए ही बड़ा झटका साबित हो सकता है। पंजाब की कुल 117 सीटों में से बीजेपी अभी तक महज 23 सीटों पर ही चुनाव लड़ती थी। अब भाजपा को पूरे राज्य में चुनाव लड़ने का अवसर मिला है। भाजपा की नजर पहले ही प्रदेश की उन सीटों पर थी जहां हिंदु वॉटर्स की संख्या अधिक है और किसान प्रदर्शन का प्रभाव भी कम था। अब भाजपा अन्य सीटों पर भी फोकस कर सकती है।
गौरतलब है कि भाजपा पहले पंजाब के राज्य में भाजपा को नॉन जाट सिख समेत हिन्दू और पूर्वांचल के प्रवासी लोगों का समर्थन प्राप्त है। पंजाब का मालवा इलाका हिन्दू मतदाताओं का गढ़ माना जाता है जिसके अंतर्गत करीब 67 विधानसभा सीटें आती हैं। इन सीटों पर भाजपा के कारण अकाली दल को समर्थन मिलता था। यदि भाजपा अकेले चुनाव लड़ने का निर्णय लेती है तो यहाँ के लोगों के लिए भाजपा पहली पसंद हो सकती है।
बता दें कि गुरु पर्व के अवसर पर लिए गए मोदी सरकार के इस निर्णय ने पंजाब की जनता को बड़ी राहत पहुंचाई है। पंजाब में चारों तरफ इसका जश्न मनाया जा रहा है। ये कृषि कानून ही थे जिस कारण अकाली दल ने भाजपा के साथ गठबंधन तोड़ा था। 2017 में बीजेपी अकाली दल के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ी थी, और केवल तीन सीट ही जीत पायी थी। इस बार कहा जा रहा था कि भाजपा को मुश्किल से एक सीट ही मिलेगी, परंतु अब इसमें बदलाव देखने को मिल सकता है। ऐसे में अगले वर्ष 2022 के विधानसभा चुनावों में अब पंजाब की जनता भाजपा को एक बड़े विकल्प के तौर पर देख सकती है। स्पष्ट है इससे चुनावों में अब बड़ा उलटफेर देखने को मिल सकता है।