एक साल बाद भी क्यों नहीं लौट रहे हैं किसान? आखिर क्यों किसानों की मांग से चिंता में सरकार?
कृषि कानून की वापसी की प्रक्रिया तेजी से पूरी की जा रही है, परंतु इसके बावजूद किसान आंदोलन थमता नजर नहीं आ रहा है। किसान आंदोलन को आज एक वर्ष पूरे हो गए हैं। आखिर क्या कारण है कि किसान अब तक इस आंदोलन को खत्म करने को राजी नहीं हुए हैं? और यदि सरकार सभी मांगे मान लेती है तो इससे देश पर क्या पड़ेगा प्रभाव? आइए जानते हैं।
पीएम मोदी के ऐलान के बाद केन्द्रीय कैबिनेट से तीन कृषि कानून को वापस लेने की मंजूरी मिल गई है। जल्दी ही इसे संसद में पेश किया जाएगा और इसके पास होते ही ये कानून वापस हो जाएंगे। इस कानून की वापसी की प्रक्रिया तेजी से पूरी की जा रही है, परंतु इसके बावजूद किसान आंदोलन थमता नजर नहीं आ रहा है। किसान आंदोलन को आज एक वर्ष पूरे हो गए हैं। इस दौरान किसान और सरकार के बीच कई दौर के वार्ता भी हुए और हिंसा भी देखने को मिली। कृषि कानून वापस तक लिए जा रहे, परंतु ये आंदोलन खत्म होते नजर नहीं आ रहा। आखिर क्या कारण है कि किसान अब तक इस आंदोलन को खत्म करने को राजी नहीं हुए हैं? और यदि सरकार सभी मांगे मान लेती है तो इससे देश पर क्या पड़ेगा प्रभाव? आइए जानते हैं।
कृषि कानून की वापसी के बाद भी ट्रैक्टर रैली का क्या उद्देश्य ? पहले किसानों की मांग थी कि तीनों कृषि कानून को वापस लिया जाए तभी आंदोलन खत्म होगा। केंद्र सरकार ने अचानक इस मांग को स्वीकार कर लिया जिसके बाद राकेश टिकैत ने कहा कि कृषि कानून संसद में वापस लेते ही आंदोलन खत्म कर देंगे। इसके बाद अचानक से किसानों ने एमएसपी को लेकर कानूनी गारंटी के साथ ही कई और शर्ते पूरी करने की मांग शुरू कर दी। किसानों की मांग है कि आंदोलन के दौरान जिन किसानों ने अपनी जान गंवाई है उन्हें मुआवजा दिया जाए, और किसानों के खिलाफ जितने मामले दर्ज हैं उसे वापस लिया जाए।
अपनी मांग को लेकर किसान संसद की तरफ ट्रैक्टर रैली करेंगे। ये रैली कृषि कानून वापसी की घोषणा से पहले ही प्रस्तावित थी। उम्मीद की जा रही थी कानून की वापसी के बाद इस रैली पर रोक लग जाएगी, परंतु किसानों ने ऐसा ना करने के लिए कहा है। ट्रैक्टर रैली जो 29 नवंबर को होनी है उसपर राकेश टिकैत ने कहा कि ‘पिछले एक साल से हमारा आंदोलन चल रहा है, हम ऐसे कैसे घर चले जाएं।’ उन्होंने आगे ये भी कहा कि ‘ट्रैक्टर रैली हमारे एक साल के संघर्ष का जश्न होगा। हम 29 को खुशी जाहिर करेंगे, कोई दंगा नहीं करेंगे।’
किसान की जिद्द MSP पर गारंटी कानून बने किसान नेता राकेश टिकैत ने स्पष्ट कर दिया है कि ‘कृषि कानूनों की वापसी के साथ ही उनकी अन्य मांगों को जबतक नहीं माना जाता वो आंदोलन जारी रखेंगे।’ इस मांग में सबसे बड़ी मांग न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी MSP की गारंटी पर कानून बनाने की है।
किसानों की मांग है कि सरकार 23 फसलों पर न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की गारंटी दे तभी वो आंदोलन से पीछे हटेंगे। ये मांग तत्कालीन यूपीए शासन के समय से ही चली आ रही है और अब इस मांग को मनवाने के लिए बड़े पैमाने पर आंदोलन करने की योजना बनाई जा रही है। किसानों का कहना है कि MSP को एक मजबूत वैधानिक आधार दिया जाये ताकि किसानों के लिए MSP की गारंटी मिले। MSP अर्थात न्यूनतम सर्मथन मूल्य, वो कीमत है जो किसानों को अनाज वाली कुछ फसलों पर सरकार द्वारा दी जाती है। यदि बाजार में उस फसल की कीमत कम होगी तब भी किसानों को वही कीमत मिलेगी जितनी MSP होगी। MSP के पीछे का तर्क किसानों को बाजार में होने वाले उतार-चढ़ाव से बचाना है।
किस फसल पर कितनी मिलेगी MSP? IMAGE CREDIT: Patrika किसी भी फसल पर कितनी MSP मिलेगी इस बात का निर्णय कमीशन फॉर एग्रीकल्चर कॉस्ट एंड प्राइसेस (CACP) तय करती है। CACP की सिफारिश पर सरकार एमएसपी तय करती है। फिलहाल MSP के तहत अभी 22 फसलों की खरीद की जा रही है जिसनमें धान, गेहूं, ज्वार, बाजरा, मक्का, मूंग, मूंगफली, सोयाबीन, तिल और कपास जैसी फसलें शामिल हैं। इसपर कुछ भी लिखित नहीं है, हालांकि, सरकार के पास ऐसी कोई कानूनी बाध्यता नहीं है कि वो CACP की सिफारिश को माने ही।
क्या होगा यदि सरकार मांग मानती है ? अंतर्राष्ट्रीय कानून के अनुसार कोई भी देश अपनी जीडीपी का 10 फीसदी ही सब्सिडी के रूप में किसानों को दे सकते हैं। भारत और अमेरिका जैसे देशों पर इस कानून का उल्लंघन करने के आरोप लगते रहे हैं। भारत में किसानों को दी जाने वाली सब्सिडी के रूप में प्रतिदिन 15000 करोड़ रुपये खर्च किये जाते हैं। देश कई बड़े अर्थशास्त्री हमेशा ही MSP का विरोध करते रहे हैं। यदि सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) गारंटी कानून ले आती है तो सरकार किसानों से फसल खरीदने के लिए बाध्य हो जाएगी।
कुछ विशेषज्ञों के अनुसार यदि सरकार MSP के तहत पैसे देती है तो इसका सीधा प्रभाव देश की जीडीपी पर पड़ेगा। सरकार की चिंता का मुख्य कारण भी अर्थव्यस्था पर इससे पड़ने वाला प्रभाव है। विशेषज्ञों के अनुसार देश के कुल 6 फीसदी किसानों को ही MSP को लाभ मिलता है, जबकि अन्य किसान इसका लाभ नहीं उठा पाते। सुप्रीम कोर्ट की ओर से नियुक्त किये गए समिति के ससदस्यों में से एक अनिल घनवत के अनुसार, अगर फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की गारंटी के लिए कानून बनाया जाता है, तो भारतीय अर्थव्यवस्था को संकट का सामना करना पड़ेगा।
उन्होंने सीजेआई एनवी रमना को लिखे अपने पत्र में कहा कि ‘हम MSP के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन खुली खरीद एक समस्या है। हमें बफ्फर स्टॉक के लिए 41 लाख टन अनाज की आवश्यकता है जबकि इससे अधिक अनाज स्टॉक में पड़ा है। अगर एमएसपी गांरटी कानून बन जाता है, तो सभी किसान अपनी फसलों पर एमएसपी की मांग करेंगे और कोई भी इससे कुछ भी कमाने की स्थिति में नहीं होगा। ‘ उन्होंने ये भी दावा किया कि ‘MSP चाहे केंद्र दे या राज्य, वह जल्द ही दिवालिया हो जाएगा। यह बहुत खतरनाक मांग है जो लंबे समय तक पूरी नहीं की जा सकती। अगर इन्हें मान लिया गया तो दो वर्ष के अंदर ही देश दिवालिया हो जाएगा।’ MSP का प्रभाव किस कदर आर्थिक व्यवस्था पर पड़ता है इसका उदाहरण अमेरिका में देखने को मिल चुका है। 1977 में अमेरिका ने अपने दूध के किसानों को जब MSP दिया था तब कुछ ही वर्षों में अमेरिका की अर्थव्यवस्था पर बड़ प्रभाव देखने को मिला था।
कितना है सरकार के पास स्टॉक ? FCI के पास वर्तमान में बड़ी मात्रा में अनाज का भंडार है जो अप्रैल 2021 के आंकड़ों के अनुसार 8.17 करोड़ मिट्रिक टन है। सरकार के बफ्फर स्टॉक में मौजूद अनाज 1.70 लाख करोड़ रुपये के हैं। अनाज की मात्रा आवश्यकता से कहीं अधिक है। सरकार जो अनाज MSP पर खरीदती है उसे राशन सिस्टम के तहत जरूरतमंद लोगों में बांट देती है। इसके अलावा बाजार में अनाज की कमी होने पर भंडार से अनाज जारी कर देती है। सरकार के भंडार में रखा अनाज हर साल बर्बाद हो रहा है, फिर भी सरकार MSP पर किसानों से अनाज खरीदती ही है जो अर्थव्यवस्था के लिए ठीक नहीं है। यदि सरकार सभी 23 फसलों को MSP पर खरीदती है तो इसके लिए कुल 17 लाख करोड़ रुपये की आवश्यकता होगी जो कुल सालाना बजट का करीब 50 फीसदी है।
पर सवाल ये है कि क्या MSP गारंटी कानून की मांग पूरी होने से सभी किसानों की समस्या खत्म हो जाएगी ? यदि सरकार कुछ फसलों पर MSP गारंटी कानून ले भी आती है तो इससे सभी किसानों को लाभ नहीं होगा, केवल 6 फीसदी किसानों को ही लाभ मिलेगा। इससे शायद किसान उन्हीं फसलों को उगाना शुरू कर दें जिसपर उन्हें MSP मिलेगी। इससे भारत में महंगाई भी बढ़ेगी। वहीं, अन्य किसान अपनी फसलों पर भी MSP की मांग कर सकते हैं। फिलहाल, सरकार के पास सभी फसल खरीदने और उन्हें बेचने के लिए कोई बुनियादी ढांचा नहीं है। यदि सरकार मांग नहीं मानती तो हो सकता है अलग-अलग राज्यों में किसानों का विरोध प्रदर्शन देखने को मिले। मांग के दबाव में आकर यदि भविष्य में एमएसपी की सूची में और फसले जुड़ीं तो सरकार उन्हें कैसे खरीदेगी और कहां रखेगी?
MSP के लिए गारंटी कानून को स्वीकार करना देश के लिए बड़ी आर्थिक समस्या खड़ी कर सकता है, और ये मांग सभी किसानों की समस्या का समाधान भी नहीं है। इस समस्या से निपटने के लिए सरकार यदि वैकल्पिक माध्यम निकालती है तो शायद सभी किसानों की समस्या का समाधान हो। इसके लिए सरकार और किसान दोनों के बीच फिर से बातचीत का दौर भी देखने को मिल सकता है।
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