इसे हटाने के लिए क्या प्रक्रिया अपनाई गई?
इसे हटाने के लिए अपनाई गई क़ानूनी प्रक्रिया जटिल व पेचीदा रही। 2019 में 5 अगस्त को राष्ट्रपति ने एक आदेश जारी किया। इससे संविधान में संशोधन हुआ। इसमें कहा गया कि राज्य की संविधान सभा के संदर्भ का अर्थ राज्य की विधानसभा होगा। इसमें यह भी कहा गया था कि राज्य सरकार प्रदेश के राज्यपाल के समकक्ष होगी। 9 अगस्त को संसद ने राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों जम्मू और कश्मीर और लद्दाख में बांटने वाला एक क़ानून पारित किया। जम्मू-कश्मीर में विधानसभा होगी, लेकिन लद्दाख में नहीं होगी।
अनुच्छेद 370 हटने के नतीजे क्या रहे?
जम्मू-कश्मीर में पांच अगस्त से लॉकडाउन लगा दिया गया था। टेलीफोन नेटवर्क और इंटरनेट सेवाएं बंद कर दी गई थीं। राजनीतिक दलों के नेताओं समेत हज़ारों लोगों को या तो हिरासत में ले लिया गया या गिरफ्तार किया गया या नज़रबंद कर दिया गया। 2जी इंटरनेट को कुछ महीने बाद जनवरी 2020 में बहाल किया गया जबकि 4जी इंटरनेट को फ़रवरी 2021 में बहाल किया गया।
किन लोगों ने इसे अदालत में चुनौती दी?
अनुच्छेदों को हटाए जाने के बाद इसे अदालत में चुनौती दी गई। अगस्त 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को पांच सदस्यीय बेंच के पास भेज दिया। इस मामले में कुल 23 याचिकाएं दायर की गई हैं। इस मामले के याचिकाकर्ताओं में नागरिक समाज संगठन, वकील, राजनेता, पत्रकार और कार्यकर्ता शामिल हैं।
याचिकाकर्ताओं ने क्या दी दलील?
याचिकाकर्ताओं के अनुसार अनुच्छेद 370 हटाना उस विलय पत्र के विरुद्ध था जिसके ज़रिए जम्मू-कश्मीर भारत का हिस्सा बना। यह लोगों की इच्छा के ख़िलाफ़ जाने के लिए किया गया एक राजनीतिक कृत्य था। यह भी तर्क दिया कि जब राज्य राष्ट्रपति शासन के अधीन था तो यह संशोधन नहीं हो सकता था। केंद्र के पास किसी राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में बांटने की शक्ति नहीं है क्योंकि इससे राज्य की स्वायत्तता कम हो जाती है और संघ की अवधारणा पर असर पड़ता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि केंद्र शासित प्रदेश पर केंद्र सरकार का नियंत्रण होगा।
सरकार ने अपने फ़ैसले का बचाव कैसे किया?
सरकार का तर्क है कि अनुच्छेद 370 एक अस्थायी प्रावधान था। हालांकि, संविधान सभा भंग हो गई थी इसलिए विधानसभा को वह पद ग्रहण करना पड़ा। अगर ऐसा नहीं होता तो प्रावधान में कभी संशोधन नहीं हो सकता था। सरकार की दलील रही है कि इस बदलाव ने जम्मू-कश्मीर को पूरी तरह से भारत में एकीकृत कर दिया। सरकार का यह भी कहना था कि उसके पास राज्यों का पुनर्गठन करने की व्यापक शक्तियां हैं।
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