कतर से हमारे नौसैनिकों की रिहाई भारत की बड़ी कूटनीतिक जीत है। निश्चित ही यह सभी भारतीयों के लिए हर्ष का विषय है, क्योंकि इसने हमारी विदेश नीति को एक नया मुकाम दिया है। मामले में पहले दिन से ही कतर ने अधिकारिक तौर पर चुप्पी साधे हुई थी और भारत के साथ कोई विवरण साझा नहीं किया था। ऐसे हालात में भारतीयों की रिहाई और घर वापसी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और कतर के अमीर शेख तमीम बिन हमद अल-थानी के बीच दुबई में कोप-28 शिखर सम्मेलन के मौके पर हुई अनौपचारिक वार्ता की खास अहमियत है। साथ ही यह भी महत्वपूर्ण है कि कतर की शीर्षस्थ अदालत कोर्ट ऑफ कैसेशन ने भी सभी पूर्व नौसैनिकों को रिहा किया है। यह कोर्ट मामले की वैधानिकता की पड़ताल करती है। ऐसे में मामले को अपने अंजाम तक पहुंचने में थोड़ी देरी जरूर हुई है, लेकिन इसमें न्याय प्रक्रिया को भी पूरा किया गया है।
भारत की कूटनीतिक सफलता के बावजूद इस मामले में पहले कतर की चुप्पी और भारत से विवरण साझा नहीं करने का तथ्य दोनों देशों के बीच वार्ता के स्तर और गुणवत्ता को ऊंचा उठाने की जरूरत और गुंजाइश को रेखांकित करता है। कोप-28 बैठक से पहले दोनों देशों के नेताओं को जी-20 बैठक के दौरान भी चर्चा का मौका मिला था, उस समय सकारात्मक बातचीत होती तो खुशी की खबर और जल्दी आ सकती थी। इसमें कोई संदेह नहीं है कि कतर हमेशा से ही भारत के साथ अच्छे संबंध कायम रखना चाहता है, लेकिन वहां के प्रशासन और अमीर को यह भी विश्लेषण करना चाहिए कि अभियोजन पक्ष ने बिना साक्ष्य के इस पूरे मामले की प्रक्रिया को क्यों और कैसे शुरू किया?
के.पी. फैबियन (कतर में भारत के पूर्व राजदूत)
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