सवाल: पिछले छह माह में हमने 3 साइंस मिशन लॉन्च किए जबकि साल 2019 तक केवल 4 साइंस मिशन लॉन्च हुए थे। आगे भी कई साइंस मिशन कतार में हैं। यह तकनीकी और आर्थिक तरक्की में किस तरह योगदान देंगे?
जवाब: रिपीट उपग्रह बनाने से कोई फायदा नहीं है। हमें इनोवेशन करना है। नए आइडिया लाना है। इसलिए तकनीकी उन्नति होती रहेगी। जब, तकनीक उन्नत होती है तो लागत भी कम आती है। ऑटोमेशन होता है और अधिकांश प्रणालियां स्वचालित होती हैं। कृत्रिम बुद्धिमता (एआइ) का विकास होता है और एफिशियंसी बढ़ती है। चंद्रयान-3 और आदित्य मिशनों में काफी ऑटोमेशन हुआ है। इस तकनीकी अपग्रेडेशन का फायदा हमें रिमोट सेंसिंग और संचार उपग्रहों में भी मिलेगा।
सवाल: देश में साइंस को लेकर एक नई लहर पैदा हुई है। क्रिकेट से कहीं अधिक चर्चा आजकल चंद्रयान, आदित्य और इसरो के रॉकेट पर हो रही है। इस बदलाव को आप कैसे देखते हैं?
जवाब: हमारा काम ऐसा है जो दिल को छूता है। चंद्रयान मिशन काफी इमोशनल मिशन भी है। छोटे बच्चे, युवा या देश का हर नागरिक चंद्रयान-3 की सफलता पर खुश हुआ। जब हम यह कहते हैं कि भारत ने खुद अपनी तकनीक विकसित कर इस उपलब्धि को हासिल किया तो, हमें और गर्व होता है। आत्मविश्वास बढ़ता है कि हमारे पास भी इतनी ताकत है कि ऐसे जटिल मिशन कर सकते हैं। मुझे विश्वास है कि इससे बच्चे साइंस और इंजीनियरिंग के प्रति आकर्षित होंगे और अंतत: उसका लाभ देश को मिलेगा।
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सवाल: आदित्य एल-1 मिशन की सफलता पर आप क्या कहेंगे?
जवाब: यह मिशन कई वर्षों से चला आ रहा था। यह जटिल होने के साथ ही अनूठा मिशन भी है। इसकी योजना 2009 में बनी और अब जाकर पूरा हुआ। तीन बातें महत्त्वपूर्ण हैं। पहला, साइंस मिशन की योजना बनाना और उसे कार्यान्वित करना जो साल-दो साल की बात नहीं है। दूसरा, आदित्य मिशन में सारे उपकरण भारत में बने। हमने विदेशों से कुछ नहीं लिया। कोई तकनीक नहीं ली। तीसरा, हमारा प्लानिंग वर्ल्ड क्लास है।