EVM-VVPAT Hearing: वीवीपैट पर्चियों के साथ ईवीएम डेटा के 100 फीसदी मिलान की मांग वाली याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा कि ईवीएम सोर्स कोड का खुलासा नहीं किया जाना चाहिए, क्योंकि इसका दुरुपयोग किया जा सकता है। जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस दीपांकर दत्ता की खंडपीठ ने कुछ तथ्यात्मक सवालों पर स्पष्टीकरण के लिए चुनाव आयोग के अधिकारी को कोर्ट बुलाया। आयोग ने स्पष्ट किया कि ईवीएम में माइक्रो कंट्रोलर की फ्लैश मेमोरी को दोबारा प्रोग्राम नहीं किया जा सकता।
‘अब तक हैकिंग की कोई घटना नहीं हुई’
याचिकाकर्ताओं के वकील प्रशांत भूषण ने दलील दी कि चुनाव चिह्न के साथ कोई गलत प्रोगाम तो अपलोड किया जा सकता है। मेरा अंदेशा इसी को लेकर है। इस पर पीठ ने कहा, हम आपकी दलील समझ गए। हम फैसले में इसका ध्यान रखेंगे। पीठ ने याचिकाकर्ताओं से पूछा, क्या हम सिर्फ हैकिंग और हेरफेर के संदेह के आधार पर ईवीएम के संबंध में निर्देश जारी कर सकते हैं, जबकि इसका कोई ठोस सबूत नहीं है? आप जिस रिपोर्ट पर भरोसा कर रहे हैं, उसमें भी कहा गया है कि अब तक हैकिंग की कोई घटना नहीं हुई। हम किसी अन्य संवैधानिक प्राधिकार के नियंत्रक अधिकारी नहीं हैं। हम चुनावों को नियंत्रित नहीं कर सकते। पीठ ने 18 अप्रेल को इस मामले में फैसला सुरक्षित रख लिया था। फैसला बुधवाई की सुनवाई के बाद भी सुरक्षित रखा गया है।
‘फीड हुए डेटा को कभी नहीं बदला जा सकता’
चुनाव आयोग के वकील ने पीठ को बताया कि तीनों इकाइयों (मतपत्र, वीवीपैट, चिप) के अलग-अलग माइक्रो नियंत्रक हैं। ये सुरक्षित एक्सेस डिटेक्शन मॉड्यूल में रखे गए हैं। इसे एक्सेस नहीं किया जा सकता। सभी माइक्रो नियंत्रक एक बार प्रोग्राम करने योग्य हैं, इसलिए फीड हुए डेटा को कभी बदला नहीं जा सकता। पीठ ने पिछली सुनवाई में टिप्पणी की थी कि हर चीज को संदेहास्पद चश्मे से नहीं देखा जा सकता। याचिकाकर्ताओं को ईवीएम के हर पहलू के बारे में आलोचनात्मक होने की जरूरत नहीं है।