अब्दुल हमीद का जन्म उत्तर प्रदेश के धरमपुर गांव में 1 जुलाई 1933 को हुआ था। उनके पिता मोहम्मद उस्मान दर्जी थे। अब्दुल हमीद ने छोटी उम्र से ही पढ़ाई के साथ कुश्ती का अभ्यास करना शुरू कर दिया। उन्हें लाठी चलाने में भी महारत हासिल थी और गुलेल से निशाना तो अचूक था ही। हमीद एक तैराक भी थे। उन्होंने छोटी उम्र में ही बाढ़ में डूबने के दौरान दो लड़कियों की जान बचाई थी। उन्होंने 20 साल की उम्र में आर्मी ज्वाइन की। हमेशा से देशसेवा के जुनून से लबरेज रहने वाले अब्दुल हमीद को आर्मी की ट्रेनिंग पूरी करने के बाद 1955 में 4 ग्रेनेडियर्स में पोस्टिंग मिली थी।
साल 1965 में भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध के बादल मंडराने लगे थे। तब, अब्दुल हमीद को बुलावा आ गया और उन्होंने बिना देरी किए अपनी छुट्टी बीच में छोड़ी और ड्यूटी ज्वाइन कर ली। पाकिस्तान ने भारत में अस्थिरता पैदा करने के लिए जम्मू-कश्मीर में घुसपैठ की गतिविधियां बढ़ा दी थी। पाकिस्तान के लगभग 30,000 छापामार हमलावर तैयार थे। इसी बीच 8 सितंबर 1965 को पाकिस्तान ने भारत पर हमला कर दिया। उस समय अब्दुल हमीद पंजाब के तरनतारण जिले के खेमकरण सेक्टर में तैनात थे। पाकिस्तान को अमेरिका से मिले ‘पैटन टैंक’ का घमंड था। उसे जीत दिख रही थी।
दूसरी तरफ पाकिस्तान को सबक सिखाने के लिए भारतीय सैनिक तैयार थे। पाकिस्तान के टैंकों ने खेमकरण सेक्टर के ‘असल उत्तर’ गांव पर हमला कर दिया। हर तरफ चीख-पुकार मची थी। भारत के जांबाज सैनिक राइफल और एलएमजी की बदौलत पाकिस्तान को मार भगाने की कोशिश में जुटे हुए थे। 8 सितंबर 1965 की सुबह करीब 9 बजे अब्दुल हमीद चीमा गांव के बाहरी इलाके में गन्ने के खेतों में जीप से गुजर रहे थे। इसी दौरान उन्हें पाकिस्तानी टैंकों की आवाज सुनाई दी। वह गन्ने के खेत में छिप गए और इंतजार करने लगे। जैसे ही टैंक उनकी रेंज में आया, उन्होंने जीप में लगे छोटे से तोप से फायरिंग की।
फायरिंग होते ही एक साथ चार पाकिस्तानी टैंक ध्वस्त हो गए। 10 सितंबर को भी अब्दुल हमीद ने अपनी बहादुरी का प्रदर्शन किया और पाकिस्तान के तीन टैंक को ध्वस्त कर दिया। अब्दुल हमीद एक और टैंक को निशाना बनाने आगे बढ़े, तभी पाकिस्तानी सेना की नजर पड़ी और उन पर फायरिंग शुरू कर दी गई। अब्दुल हमीद के चारों तरफ से फायरिंग हो रही थी। उन्होंने पाकिस्तान के आठवें टैंक को भी ध्वस्त कर दिया। गोलियां चलती रही और हमीद डटे रहे। आखिरकार, उन्होंने देश की खातिर अपना सर्वोच्च बलिदान दिया। अब्दुल हमीद को अदम्य साहस और वीरता के लिए मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया।
वहीं, अमेरिका भी हैरान था कि उसके ‘पैटन टैंक’ को इस तरह कैसे तबाह कर दिया गया। भारतीय डाक विभाग ने 28 जनवरी 2000 को अब्दुल हमीद के सम्मान में डाक टिकट जारी किया था। इसमें परमवीर अब्दुल हमीद की तस्वीर थी और वह जीप, जिसके जरिए हमीद ने पाकिस्तान को घुटनों पर ला दिया था। भारतीय सेना के जांबाज परमवीर चक्र विजेता अब्दुल हमीद की बहादुरी पर किताब भी लिखी गई है। लेखिका रचना बिष्ट रावत ने अंग्रेजी में चर्चित किताब ‘द ब्रेव : परमवीर चक्र स्टोरीज’ लिखी। इसमें परमवीर चक्र हासिल करने वाले भारतीय सेना के 21 जांबाज फौजियों की शौर्य गाथा का जिक्र है।