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Euthanasia: बेटे की इच्छामृत्यु मांग रहे थे माता-पिता, आखिरी दिन पूर्व CJI चंद्रचूड़ कर गए ये बड़ा काम

Euthanasia Case: वेजेटेटिव स्टेट में होने का मतलब कोई व्यक्ति जागृत अवस्था में तो रहता है लेकिन अनुभव शून्य (Senseless) रहता है। उसकी आंखें खुली होती हैं लेकिन वह कुछ भी अनुभव नहीं कर सकता। ऐसा ही एक मामला डीवाई चंद्रचूड़ (DY Chandrachud) के CJI के तौर पर कार्यकाल के आखिरी दिन आया। जानिए क्या सुनाया फैसला-

नई दिल्लीNov 12, 2024 / 02:05 pm

Akash Sharma

Former CJI DY Chandrachud

Euthanasia Case: एक युवक ऐसी बीमारी से ग्रसित है जिसमें व्यक्ति जागता तो है लेकिन सेंसलेस रहता है। इस अवस्था को वेजिटेटिव स्टेट (Persistent vegetative state) बोलते हैं। ऐसा ही एक मामला डीवाई चंद्रचूड़ (DY Chandrachud) के CJI के तौर पर कार्यकाल के आखिरी दिन आया। एक युवक जिसकी उम्र 30 साल है वेजिटेटिव स्टेट में है। ऐसी स्थिति में मां-बाप उसका खर्च नहीं वहन कर पा रहे थे और इच्छामृत्यु अर्थात यूथनेशिया (Euthanasia) की मांग कर रहे थे। इस केस में सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने अहम फैसले सुनाया।

क्या होती है वेजेटेटिव स्टेट ?

वेजेटेटिव स्टेट में होने का मतलब कोई व्यक्ति जागृत अवस्था में तो रहता है लेकिन अनुभव शून्य (Senseless) रहता है। उसकी आंखें खुली होती हैं लेकिन वह कुछ भी अनुभव नहीं कर सकता। इस वजह से बेटे के इलाज का खर्च उठाते-उठाते मां बाप परेशान हो गए थे। उनका कहना था कि आर्टिफिशियल लाइफ सपोर्ट हटा लिया जाए। 62 साल के अशोक राणा और उनकी पत्नी निर्मला देवी को बेटे के इलाज में काफी समस्या आ रही थी। ऐसे में वे पैसिव इच्छामृत्यु की मांग कर रहे थे। उनका बेटा 13 साल पहले चौथी मंजिल से गिर गया था। इसके बाद उसके सिर में गंभीर चोट आई थी।

माता-पिता को मिली राहत

CJI के तौर पर कार्यकाल के आखिरी दिन भी जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ कई अहम फैसले सुना गए। उनके दखल के बाद पीड़ित युवक के मां-बाप को भी बड़ी राहत मिल गई। पिछले 13 साल से हरीश राणा वेजेटेटिव स्टेट में थे। मां-बाप अब बेटे का खर्च उठाने में सक्षम नहीं थे और इच्छामृत्यु की मांग कर रहे थे। सीजेआई रहते चंद्रचूड़ के दखल की वजह से मां-बाप को बड़ी राहत मिली है। आखिरी सुनवाई में सीजेआई चंद्रचूड़ ने केंद्र की स्टेटस रिपोर्ट देखी और उत्तर प्रदेश सरकार को आदेश दिया कि सरकार युवक के इलाज की पूरी व्यवस्था करे। घर पर ही लाइफ सपोर्ट लगाया जाए और फिजियोथेरेपिस्ट और डायटीसियन रेग्युलर विजिट करें। इसके अलावा जरूरत पड़ने पर डॉक्टर और नर्सिंग सपोर्ट भी दिया जाए। सीजेआई रहते चंद्रचूड़ ने अपने आदेश में कहा था कि राज्य सरकार मुख्त में इलाज की सारी सुविधा उपलब्ध करवाए। अगर होम केयर ठीक ना लगे तो नोएडा के जिला अस्पताल में भर्ती कराकर सुविधाएं दी जाएं।

पीड़ित के बकील ने दी ये जानकारी

अशोक राणा की तरफ से वकील मनीष ने जानकारी दी कि परिवार ने सरकारी इलाज की बात स्वीकार कर ली है और वह इच्छामृत्यु वाली याचिका वापस लेने को तैयार है। इससे पहले दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा था कि राणा बिना लाइफ सपोर्ट के भी जीवित रह सकते हैं, ऐसे में उन्हें ऐक्टिव इच्छामृत्यु नहीं दी जा सकती। सुप्रीम कोर्ट के 2018 के फैसले का हवाला देते हुए जस्टिस सुब्रमण्यम प्रसाद ने कहा था कि कुछ मामलों में पैसिव इयुथेनेसिया की इजाजत दी जाती लेकिन एक्टिव इच्छामृत्यु की इजाजत भारत में नहीं दी जा सकती। 2018 के फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि कुछ मामलों में ही किसी मरीज को पैसिव इच्छामृत्यु की इजाजत दी जा सकती है। सीधे तौर पर इच्छामृत्यु की इजाजत नहीं होगी। इसके लिए लाइफ सपोर्ट सिस्टम हटाया जा सकता है।
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