केरल हाईकोर्ट ने कहा है कि वरिष्ठ नागरिकों (घर के बुजुर्ग) को उनकी इच्छा के बिना भाई-बहनों और अन्य करीबी रिश्तेदारों के साथ रहने से वंचित नहीं किया जा सकता।
केस की सुनवाई के दौरान जस्टिस देवन रामचंद्रन ने की टिप्पणी
एक केस की सुनवाई के दौरान जस्टिस देवन रामचंद्रन ने इस टिप्पणी के साथ रख-रखाव न्यायाधिकरण का वह आदेश निरस्त कर दिया। जिसमें एक वरिष्ठ नागरिक महिला को बेटे के बजाय बहन के घर में स्थानांतरित करने का निर्देश दिया गया था। बेटा इस आदेश से व्यथित था और उसने अदालत को बताया कि वह अपनी मां की अच्छी देखभाल कर रहा है और उसे सभी सुविधाएं दे रहा है।
कोर्ट ने दिया आदेश
कोर्ट ने रखरखाव न्यायाधिकरण को यह ध्यान में रखकर अधिक जांच करने का निर्देश दिया कि वरिष्ठ नागरिक न केवल अपने बच्चों बल्कि अन्य प्रियजनों, जैसे भाई-बहन, करीबी रिश्तेदारों के साथ या उनकी मौजूदगी में रहना चाहते हैं। बता दें कि देश में बुजुर्गों के साथ बढ़ते अत्याचार को रोकने के लिए कई राज्य सराकरों ने सख्त कदम उठाए हैं। लेकिन उसका ज्यादा असर देखने को नहीं मिलता है।