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Freedom of Education: लोकतांत्रिक समाज और शिक्षा में आजादी, आजादी की शिक्षा या शिक्षा की आजादी?

Educational Freedom: आजादी के लिए शिक्षा या शिक्षा की आजादी क्यों चाहिए? शिक्षा और आजादी किस तरह एक दूसरे के पर्याय हैं, इस बारे में पूनम भाटिया का जरूरी लेख पढ़ें।

नई दिल्लीAug 26, 2024 / 12:38 pm

स्वतंत्र मिश्र

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Freedom in Education: शिक्षा में आज़ादी का अर्थ है शिक्षा की आज़ादी और आज़ादी की शिक्षा। यानी वह शिक्षा जो स्वतंत्र सोच वाले, विवेकशील, विचारशील, वैज्ञानिक बोध वाले नागरिक पैदा करे और एक न्यायसंगत तथा समतामूलक समाज का निर्माण करने में सक्षम हो। किसी भी तरह की तंग नज़री की जगह हर तरह की आज़ाद ख़याली विकसित करती हो। ऐसी शिक्षा और ऐसी शिक्षा व्यवस्था। शिक्षा यानी कि लिखे हुए, कहे हुए को मान लेने की कूपमण्डूकता की जगह सवाल कर सकने का, असहमत हो सकने का साहस दे। सहमति और असहमति का विवेक दे।

शिक्षा की रोशनी से ही हासिल होंगे संवैधानिक अधिकार

शिक्षा जो विद्यार्थी और शिक्षक को ही नहीं, पूरे समाज को अपने विचारों और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता दे ताकि वे बिना किसी भय या दबाव के ज्ञान प्राप्त कर सकें और अपने विचारों को साझा कर सकें। इसके कुछ अर्थों और संदर्भों को इस तरह समझते हैं…
  1. विचारों की स्वतंत्रता: इसका मतलब है कि कोई भी व्यक्ति अपने विचारों को बिना किसी प्रतिबंध के व्यक्त कर सकता है, चाहे वह लिखकर, बोलकर या किसी अन्य माध्यम से करे। इसमें मुख्यतः विचारों को प्रकाशित करने, साझा करने, आलोचना करने, बदलने की स्वतंत्रता निहित है। विचारों की स्वतंत्रता महत्वपूर्ण है क्योंकि यह स्वतंत्र चिंतन को प्रोत्साहित करती है व रचनात्मकता और नवाचार को बढ़ावा देती है। इसके साथ ही यह लोकतंत्र और सामाजिक प्रगति के लिए आवश्यक है तथा किसी के भी व्यक्तित्व के विकास और उसकी स्वायत्तता को बढ़ावा मिले, इसके लिए भी आवश्यक है।
  2. पाठ्यक्रम की स्वतंत्रता: शिक्षकों और शैक्षणिक संस्थानों को अपने पाठ्यक्रम को डिजाइन करने और उसकी सामग्री का चयन करने की स्वतंत्रता देना। इसका मतलब है कि वे अपने छात्रों की जरूरतों और हितों के अनुसार पाठ्यक्रम को तैयार कर सकते हैं, बिना किसी बाहरी दबाव या नियंत्रण के। पाठ्यक्रम को डिजाइन करने की, पाठ्यक्रम की सामग्री का चयन करने की, उसे लागू करने की व उसमें परिवर्तन करने की स्वतंत्रता इसमें शामिल है। पाठ्यक्रम की स्वतंत्रता का महत्व इसलिए है क्योंकि यह शिक्षकों को अपने कौशलों का उपयोग करने की अनुमति देती है, छात्रों की जरूरतों और हितों को पूरा करती है एवम स्थानीय परिवेश को हमारी शिक्षा से जोड़ती है जो अंततः हमारी प्रामाणिक समझ को पुख्ता करती है। क्योंकि अगर हम ठीक ठीक स्थानीय नहीं हो सके तो वैश्विक विजन का निर्माण मुश्किल है।
  3. शिक्षण में स्वतंत्रता: इसका अर्थ है कि शिक्षकों को अपने शिक्षण तरीकों और तकनीकों को चुनने की स्वतंत्रता देना जिससे वे अपने छात्रों को प्रभावी ढंग से शिक्षित कर सकें। यानी शिक्षक अपने अनुभव, ज्ञान और कौशल का उपयोग करके अपने शिक्षण में स्वतंत्र रूप से निर्णय ले सकें। उन्हें शिक्षण तरीकों, सामग्री, माध्यम आदि का चयन करने के साथ ही नवाचार, प्रयोग आदि करने की स्वतंत्रता होनी चाहिए। यह महत्वपूर्ण है क्योंकि यह शिक्षकों को अपने ज्ञान का उपयोग करने का स्थान देती है। यह शैक्षणिक उत्कृष्टता को बढ़ावा देती है व नवाचार और प्रयोग को प्रोत्साहित करती है।
  4. विद्यार्थी की स्वतंत्रता: शिक्षार्थी को अपनी रुचियों के अनुरूप अपने शिक्षा के मार्ग को चुनने और अपने हितों के अनुसार विषयों का चयन करने की स्वतंत्रता देना। यानी छात्रों को अपने शैक्षणिक और व्यक्तिगत जीवन में स्वतंत्र निर्णय लेने की अनुमति देना। वे अपने लक्ष्यों को निर्धारित कर, अपने शिक्षा के मार्ग को स्वयं चुन सकें और अपने जीवन के बारे में स्वतंत्र रूप से निर्णय ले सकें। इसमें शैक्षणिक विकल्पों का चयन करने व अपने विचारों और अभिव्यक्ति को स्वतंत्र रूप से व्यक्त करने की स्वतंत्रता निहित है। यह महत्वपूर्ण है क्योंकि यह शिक्षार्थी के लक्ष्यों को प्राप्त करने में, उनके जीवन के बारे में स्वतंत्र रूप से निर्णय लेने में, व्यक्तित्व को विकसित करने व शैक्षणिक और व्यक्तिगत जीवन में संतुष्टि प्राप्त करने में मदद करती है।
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अशिक्षित समाज में नवाचार की होगी कमी

शिक्षा में आज़ादी ना होने के कई नकारात्मक परिणाम हो सकते हैं, जैसे- इसके बिना विद्यार्थियों को अपने विचारों को स्वतंत्र रूप से व्यक्त करने की अनुमति नहीं मिल पाएगी, जिससे स्वतंत्र चिंतन की कमी के साथ रचनात्मकता व नवाचार की भी कमी होगी। जिसे हम अन्य देशों की तुलना में देख भी पाते हैं। इस आज़ादी के बिना, लोकतंत्र की कमजोरी साफ साफ परिलक्षित होगी क्योंकि शिक्षा में आज़ादी नई पीढ़ी को जागरूक बनाएगी। यह जागरूकता लोकतंत्र के लिए अत्यंत आवश्यक है। विचारों को स्वतंत्र रूप से व्यक्त करने की अनुमति नहीं होने पर, मानसिक दासता की स्थिति उत्पन्न होगी। जिसे हम महसूस भी कर रहे हैं। तमाम तरह के भेदभावपूर्ण जीवन और सोच में उलझे हुए हैं। कहीं धर्म, कहीं जाति,कहीं क्षेत्रवाद, कहीं लैंगिक भेदभाव से भरे हम एक रुग्ण समाज के रूप में ढलते गए। हम लकीर के फकीर बन रहे हैं। सामाजिक प्रगति में भी इससे कमी होगी क्योंकि नए और अनोखे विचारों का विकास नहीं हो पाएगा। व्यक्तिगत विकास की कमी होगी। इसको आज के परिप्रेक्ष्य में देखें तो समझ व्यापक हो पाएगी। आजाद ख़याली को विकसित करती शिक्षा व्यवस्था हमें सपने देखना सिखाती है, संघर्ष करना, जीवन पथ पर जूझना और असफल होकर भी सीखने देने का धैर्य प्रदान करती है।
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(पूनम भाटिया, राज. उ. प्रा. विद्यालय, बंबाला, सांगानेर शहर, जयपुर, राजस्थान में प्रधानाध्यापक हैं। यह लेख उनके निजी विचार हैं।)

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