आंदोलन कर रहे किसानों की मांग पूरी करने से देश के खजाने पर पड़ने वाले बड़े भार की चिंता और किसानों की मांग पर विचार करने के लिए बनी विशेषज्ञ समिति की सुस्त चाल ने इस पूरे मामले को जटिल बना दिया है। किसानों की मुख्य मांग फसलों की न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर खरीद की गारंटी का कानून बनाने की है। सरकारी अधिकारियों ने ऐसे किसी कानून को लागू करने को देश पर लाखों करोड़ रुपए के वित्तीय भार डालना वाल बता रहे हैं। इससे देश की वित्तीय हालत पर खासा प्रभाव पड़ सकता है और अंतत: विकास और कल्याण योजनाएं प्रभावित होंगी।
कानून बनाना सरकार के लिए आसान नहीं
दरअसल, दूसरी बार शुरू हुए किसान आंदोलन के बीच एमएसपी गारंटी कानून पर एक बार फिर बहस शुरू हो चुकी है। अधिकारियों ने सरकार को चेताया है कि फसलों के न्यूनतम मूल्य पर खरीद का कानून बनाना सरकार के लिए आसान नहीं है। इसके पीछे तर्क दिया जा रहा है कि वित्त वर्ष 2020 में देश में कृषि उत्पादों का मूल्य 40 लाख करोड़ रुपए आंका गया था, जबकि एमएसपी व्यवस्था के तहत आने वाली 24 फसलों का बाजार मूल्य 10 लाख करोड़ रुपए था। ऐसे में बड़ा सवाल है कि 2024-25 के केंद्र सरकार के करीब 47 लाख करोड़ रुपए के कुल बजट आकार को देखते हुए एमएसपी पर खरीद की गारंटी दी गई तो अन्य विकास कार्यों और सामाजिक सुरक्षा योजनाओं के लिए धन कहां से आएगा? किसानों की पेंशन और कर्ज माफी की मांग भी खजाने की कमर तोड़ने वाली है।
विकास का कुल खर्चा ही 11.11 लाख करोड़
एमएसपी गारंटी के भार का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि केंद्र के हाल ही पेश अंतरिम बजट में बिजली, सड़क व अन्य विकास पर पूंजीगत खर्च के लिए कुल 11.11 करोड़ रुपए आवंटित किए गए हैं। माना जाता है कि इस खर्च से देश में विकास, रोजगार और मांग बढ़ी है। इसे देखते हुए सिर्फ एमएसपी के लिए दस करोड़ रुपए का इंतजाम करना आसान नहीं है।
* समिति की 37 बैठकें-कार्यशालाएं, नतीजा कुछ नहीं
किसान आंदोलन से संकट बढ़ाने के लिए एमएसपी पर सरकार की ओर से गठित कमेटी की सुस्त चाल भी कम जिम्मेदार नहीं है। सरकार ने यह कमेटी तीन कृषि कानून वापस लेने के साथ मार्च 2022 में बनाई थी। अधिकृत सूत्रों के कमेटी की करीब 37 बैठकें और कार्यशालाएं हो चुकी हैं। हालांकि इन बैठकों का ठोस नतीजा सामने नहीं आने पर किसान संगठन इस समिति पर सवाल उठा रहे हैं। इस समिति में 29 सदस्य शामिल थे। इसमें 18 सरकारी अधिकारी और शिक्षा से जुड़े हुए विशेषज्ञ थे, जबकि 11 गैर आधिकारिक सदस्य भी शामिल थे। उल्लेखनीय है कि आंदोलनकारी किसान इस कमेटी के सामने पेश नहीं हुए हैं।
मोदी ने सीएम रहते हुए एमएसपी गारंटी की सिफारिश की थी: कांग्रेस
कांग्रेस मीडिया और पब्लिसिटी विभाग के अध्यक्ष पवन खेड़ा ने पत्रकार वार्ता में कहा कि प्रधानमंत्री बनने से पहले गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए नरेंद्र मोदी न्यूनतम समर्थन मूल्य के बहुत बड़े वकील बनकर सामने आए थे। मार्च 2011 में गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए नरेंद्र मोदी ने रिपोर्ट ऑफ वर्किंग ग्रुप ऑन कंज्यूमर अफेयर्स के चेयरमैन होने के नाते कहा था कि अगर एमएसपी गारंटी हो तो किसानों को उत्पादन बढ़ाने में प्रोत्साहन मिलेगा।
किसान संगठन जिस कानून की बात कर रहे उसे बनाना आसान नहीं
किसान संगठनों को ये समझना होगा कि जिस कानून की बात की जा रही है। उस कानून के बारे में इस तरीके से कोई निर्णय नहीं लिया जा सकता जिससे बाद के दिनों में सबके लिए बगैर सोची समझी स्थिति के बार में लोग आलोचना करें। हमें ये कोशिश करनी चाहिए हम इसके सभी पक्षों का ध्यान रखें। किसानों को इस बात का भी ध्यान रखना पड़ेगा कि आम जनजीवन को बाधित ना करें, आम जनजीवन किसी तरह से परेशान ना हो। अर्जुन मुंडा, कृषि मंत्री
कृषि मंत्री मुंडा का दावा एमएसपी मूल्यों पर खर्च की जाने वाली राशि में 115 फीसदी वृद्धि, जिससे यह दोगुनी से भी अधिक हो गई है।
वर्ष बजट एमएसपी खरीद पर (लाख करोड़ रुपए)
वर्ष | बजट |
2014-15 | 1.06 |
2022-23 | 2.38 |
एमएसपी पर खाद्यान्न खरीद
वर्ष खाद्यान्न | (लाख मीट्रिक टन) |
2014-15 | 761.40 |
2015-16 | 1062.69 |
पिछले चार वित्तीय वर्षों में कृषि पर खर्च की गई राशि
वर्ष | बजट खर्च राशि (करोड़ रुपए में) |
2019-20 | 101740 |
2020-21 | 115856 |
2021-22 | 122712 |
2022-23 | 109561 |
कुल | 449869 |
ये भी पढ़ें: शंभू बॉर्डर पर डटे किसान, आज फिर करेंगे दिल्ली जाने की कोशिश; राजधानी की चार सीमाएं पूरी तरह सील