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Court News: बच्चा गोद लेना मौलिक अधिकार नहीं, जिनके पहले से बच्चे वे दिव्यांग को गोद ले- दिल्ली हाईकोर्ट

Delhi High Court decision: जस्टिस सुब्रमण्यम प्रसाद ने दो बच्चों के बावजूद तीसरे बच्चे को गोद लेने की इच्छा रखने वाले माता-पिता की याचिकाओं का निपटारा करते हुए यह निर्णय दिया।

Feb 21, 2024 / 07:51 am

Prashant Tiwari

 

दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा है कि बच्चों को गोद लेने का अधिकार मौलिक अधिकार नहीं है। कोर्ट ने किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम 2015 के तहत जारी गोद लेने के नियमों में किए गए बदलावों को सही ठहराते हुए ऐसे माता-पिता को ‘सामान्य बच्चे’ को गोद लेने से रोक दिया जिनके पहले से ही दो बच्चे हैं। सामान्य बच्चा वह है जो विकलांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम के तहत विकलांगता से पीड़ित नहीं है।

जस्टिस सुब्रमण्यम प्रसाद ने दो बच्चों के बावजूद तीसरे बच्चे को गोद लेने की इच्छा रखने वाले माता-पिता की याचिकाओं का निपटारा करते हुए यह निर्णय दिया। कोर्ट ने कहा कि गोद के लिए नीति व नियमों में बदलाव यह सुनिश्चित करने के लिए लाया गया है कि विशेष आवश्यकता वाले अधिक से अधिक बच्चों को गोद लिया जाए। कोर्ट ने नियमों में संशोधन से पहले लंबित गोद आवेदनों पर भी नया नियम लागू होने को सही ठहराया और याचिकाएं खारिज कर दीं।

 

एससी-एसटी एक्ट: बिना परिवादी को सुने जमानत गलत

दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा है कि एससी-एसटी अत्याचार निवारण मामलों में पीडि़त या परिवादी का पक्ष सुने बिना आरोपी को जमानत नहीं दी जा सकती। कोर्ट ने यह भी कहा कि परिवादी या पीडि़त को नोटिस जारी किए बिना दी गई जमानत रद्द भी की जा सकती है। जस्टिस नवीन चावला ने एक बलात्कार पीडि़ता की याचिका पर यह आदेश दिया जिसमें बिना सुनवाई का अवसर दिए आरोपी को जमानत देने को चुनौती दी गई थी। कोर्ट ने कहा कि बिना परिवादी की सुनवाई के जमानत देना एससी-एसटी कानून की धारा 15 ए की उपधारा तीन और पांच के खिलाफ है। कोर्ट ने विशेष अदालत को जमानत अर्जी पर पुनर्विचार करने को कहा।

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शादी के आधार पर महिलाओं से भेदभाव असंवैधानिक

सुप्रीम कोर्ट ने एक महिला नर्सिंग अधिकारी को शादी के कारण सेना से बर्खास्त करने को असंवैधानिक मानते हुए याचिकाकर्ता महिला को 60 लाख रुपए को मुआवजा देने के निर्देश दिए हैं। कोर्ट ने इसे लैंगिक भेदभाव और असमानता का गंभीर मामला बताते हुए कहा कि यह अस्वीकार्य है। जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस दीपांकर दत्ता की बेंच ने कहा कि आगे भी जो नियम महिला कर्मचारियों की शादी और उनकी घरेलू भागीदारी को पात्रता से वंचित करने का आधार बनाते हैं, वे असंवैधानिक होंगे। याचिकाकर्ता का मामला पुराना था जिसके तहत शादी के बाद महिला अधिकारियों को सेना से बर्खास्त किया जाता था। बाद में 1995 में यह नियम हटा दिया गया।

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