वी.के. सक्सेना ने 2001 में दर्ज करवाया था मामला
गजिंदर कुमार ने बताया कि अदालत से दिल्ली विधिक सेवा प्राधिकरण (डीएलएसए) को मुआवजे की राशि आवंटित करने का अनुरोध किया गया था। पाटकर को 24 मई को भारतीय दंड संहिता की धारा 500 के तहत आपराधिक मानहानि के मामले में अदालत ने दोषी ठहराया गया था। सक्सेना ने 2001 में पाटकर के खिलाफ मामला दर्ज कराया था। उस समय वह अहमदाबाद स्थित एनजीओ नेशनल काउंसिल फॉर सिविल लिबर्टीज के प्रमुख थे।सक्सेना ने की पाटकर को कड़ी सजा देने की मांग
पिछली सुनवाई के दौरान सजा के मामले में दोनों पक्षों ने अपनी दलीलें दी थीं। शिकायतकर्ता सक्सेना ने पाटकर को अधिकतम सजा देने की मांग की थी। उन्होंने दलील दी थी कि पाटकर अक्सर कानून की अवहेलना करती रहती हैं। सक्सेना ने कोर्ट में पाटकर का आपराधिक इतिहास भी पेश किया। उन्होंने बताया कि झूठी दलीलों के लिए एनबीए को सुप्रीम कोर्ट भी फटकार लगा चुका है। सक्सेना ने पाटकर को कड़ी सजा देने की मांग करते हुए कहा था कि वह अक्सर कानून की अवहेलना करती रहती हैं। उन्होंने अदालत में लंबित 2006 के एक अन्य मानहानि मामले का हवाला भी दिया।जानिए क्या है पूरा मामला
मानहानि का यह मामला 2000 में शुरू हुआ था। उस समय, पाटकर ने सक्सेना के खिलाफ उन विज्ञापनों को प्रकाशित करने के लिए मुकदमा किया था। पाटकर ने दावा किया था कि ये विज्ञापन उनके और एनबीए के लिए अपमानजनक थे। इसके जवाब में, सक्सेना ने पाटकर के खिलाफ मानहानि के दो मामले दर्ज कराए थे। पहला, टेलीविजन कार्यक्रम के दौरान उनके बारे में कथित अपमानजनक टिप्पणी के लिए और दूसरा, पाटकर द्वारा जारी एक प्रेस बयान से जुड़ा था। पाटकर को दोषी ठहराते हुए मजिस्ट्रेट शर्मा ने उल्लेख किया कि पाटकर ने आरोप लगाया और प्रकाशित किया कि शिकायतकर्ता ने मालेगांव का दौरा किया, एनबीए की प्रशंसा की और 40 हजार रुपये का चेक जारी किया। यह चेक लाल भाई समूह से आया था, जो एक कायर और देश विरोधी था। यह भी पढ़ें
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