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एआई से लैस होकर हमले कर रहे साइबर अपराधी, भारत भी बड़ा टारगेट

Artificial Intelligence and Cyber Crime : एशिया-प्रशांत (एपीएसी) क्षेत्र में आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस (एआई) तकनीक को अपनाने वाले अग्रणी देशों में से एक है। एआई का उपयोग व्यवसायों व उपभोक्ताओं के लिए फायदेमंद है, लेकिन यह कई चुनौतियां भी पेश कर रही है।

Oct 08, 2023 / 10:46 am

Shaitan Prajapat

Artificial Intelligence and Cyber Crime

Artificial Intelligence and Cyber Crime

Artificial Intelligence and Cyber Crime : एशिया-प्रशांत (एपीएसी) क्षेत्र में आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस (एआई) तकनीक को अपनाने वाले अग्रणी देशों में से एक है। एआई का उपयोग व्यवसायों व उपभोक्ताओं के लिए फायदेमंद है, लेकिन यह कई चुनौतियां भी पेश कर रही है। माइक्रोसॉफ्ट की डिजिटल डिफेंस रिपोर्ट के अनुसार भारत एपीएसी क्षेत्र के उन शीर्ष तीन देशों में शामिल है, जहां नेशन स्टेट एक्टर्स साइबर हमलों के लिए एआई का इस्तेमाल करने लगे हैं। नेशन स्टेट एक्टर्स ऐसे अपराधियों को कहा गया है, जिन्हें किसी देश की खुफिया जानकारी का पता लगाने या उनकी गतिविधियों को बाधित करने का काम सौंपा गया है। ऐसे अपराधी नए खतरे पैदा करने, रैंसमवेयर हमलों की गति बढ़ाने, पासवर्ड मल्टी-फैक्टर ऑथेंटिकेशन आइटी आधारित हमलों के लिए एआइ का इस्तेमाल कर रहे हैं। एशिया प्रशांत क्षेत्र में सबसे प्रभावित देश में दक्षिण कोरिया में 17 प्रतिशत, ताइवान में 25 प्रतिशत, भारत में 13 प्रतिशत, मलेशिया में 6 फीसदी और जापान में 5 फीसदी साइबर हमला हुआ है।

यह आसान टारगेट

हमलावरों के लिए सबसे आसान टारगेट शिक्षा, आइटी और परिवहन क्षेत्र हैं। भारत डीडीओएस अटैक में दुनिया में 5वें स्थान पर है। इनमें हमलावर, यूजर्स को कनेक्टेड ऑनलाइन सेवाओं और साइट्स तक पहुंचने से रोकने के लिए सर्वर पर इंटरनेट ट्रैफिक भर देता है।


हमलों में चैटजीपीटी आदि का इस्तेमाल

साइबर अपराधी चैटजीपीटी जैसी तकनीक का सहारा लेते हैं। जिससे एक ही मेल को कई तरीके से लिखकर या अन्य बदलाव कर भेज सके। सिंथेटिक इमेजेस (ऐसी फोटो जो कैमरा से न लेकर कम्प्यूटर से तैयार की गई हो) को ज्यादा प्रभावी बनाने के लिए भी साइबर अपराधी एआइ को हथियार बना रहे हैं।

पहचान छिपाने के तरीके भी अपना रहे

दुनियाभर के संगठनों ने सितंबर, 2022 के बाद से मानव-संचालित रैंसमवेयर हमलों में 200 प्रतिशत की वृद्धि देखी। यह आमतौर पर फिरौती की मांग के साथ किसी एक डिवाइस की बजाय पूरे संगठन को निशाना बनाते हैं। अब रिमोट एन्क्रिप्शन के साथ क्लाउड- आधारित टूल का उपयोग करके हमलावर पहचान छिपा रहे हैं।

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