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Constitution Debate: ‘1949 में RSS नेताओं ने ना तो संविधान को स्वीकार किया और ना ही तिरंगे को क्योंकि…’- खड़गे

Constitution debate Kharge on RSS: राज्यसभा में ‘भारत के संविधान की 75 साल की गौरवशाली यात्रा’ पर चर्चा के दौरान बोलते हुए, खड़गे ने जोर देकर कहा कि तिरंगे, अशोक चक्र और संविधान का तिरस्कार करने वाले आज हमें उपदेश दे रहे हैं।

नई दिल्लीDec 16, 2024 / 03:50 pm

Akash Sharma

Constitution debate Kharge on RSS

Constitution Debate: वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण पर कटाक्ष करते हुए, राज्यसभा के नेता प्रतिपक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने सोमवार को कहा कि उन्होंने जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से पढ़ाई की है और वहां के छात्र बहुत प्रगतिशील हैं और देश के विकास में योगदान दे रहे हैं चाहे वह अर्थशास्त्र हो, राजनीति विज्ञान हो, लेकिन आज यहां लोकतांत्रिक मूल्यों को खत्म करने की बात हो रही है। खड़गे ने कहा, “निर्मला सीतारमण ने जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) से पढ़ाई की लेकिन मुझे नहीं पता कि उन्होंने क्या पढ़ा क्योंकि वहां पढ़ने वाले छात्र बहुत प्रगतिशील हैं और देश के निर्माण में उनका बड़ा हाथ है चाहे वह अर्थशास्त्र हो, राजनीति विज्ञान हो या इतिहास हो, लेकिन यहां लोकतांत्रिक चीजों को खत्म करने की बात हो रही है।”

सिर्फ एक-दूसरे पर उंगली उठाने से कुछ नहीं होगा- खड़गे

राज्यसभा में ‘भारत के संविधान की 75 साल की गौरवशाली यात्रा’ पर चर्चा के दौरान बोलते हुए, खड़गे ने जोर देकर कहा कि सभी को संविधान और उसकी प्रस्तावना का पालन करना चाहिए। उन्होंने कहा, “सिर्फ़ एक-दूसरे पर उंगली उठाने से कुछ नहीं होगा। जनसंघ ने कभी मनुस्मृति के नियमों के आधार पर संविधान बनाने का लक्ष्य रखा था। यही आरएसएस का इरादा था। तिरंगे, अशोक चक्र और संविधान का तिरस्कार करने वाले आज हमें उपदेश दे रहे हैं। जिस दिन संविधान लागू हुआ, उसी दिन इन लोगों ने रामलीला मैदान में अंबेडकर, महात्मा गांधी और जवाहरलाल नेहरू के पुतले जलाए। वे बेशर्मी से नेहरू-गांधी परिवार का अपमान करते हैं।’

’26 जनवरी 2002 को पहली बार मजबूरी में RSS मुख्यालय पर तिरंगा फहराया गया’


कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने 1949 में RSS नेताओं ने भारत के संविधान का विरोध किया क्योंकि यह मनुस्मृति पर आधारित नहीं था। ना तो उन्होंने संविधान को स्वीकार किया और ना ही तिरंगे को। 26 जनवरी 2002 को पहली बार मजबूरी में RSS मुख्यालय पर तिरंगा फहराया गया, क्योंकि इसके लिए अदालत का आदेश था।’ उन्होंने याद दिलाया कि 1931 में सरदार पटेल की अध्यक्षता में कराची कांग्रेस अधिवेशन के दौरान जवाहरलाल नेहरू ने मौलिक अधिकारों और आर्थिक नीतियों पर एक प्रस्ताव पेश किया था, जिसे पारित कर दिया गया था।

‘RSS नेताओं ने भारतीय संविधान का विरोध किया था क्योंकि…’


खड़गे ने कहा, “संविधान कहीं से भी नहीं आया, बल्कि महत्वपूर्ण आंदोलनों, स्वतंत्रता संग्राम और यहां तक ​​कि पहले की घटनाओं ने इसे आकार दिया। नेहरू ने 1937 के चुनावों में संविधान सभा की मांग को केंद्रीय मुद्दा बनाया। ये लोग न तो महात्मा गांधी, न ही नेहरू और न ही अंबेडकर का सम्मान करते हैं।” विपक्ष के नेता ने यह भी उल्लेख किया कि 1949 में RSS नेताओं ने भारतीय संविधान का विरोध किया था क्योंकि यह मनुस्मृति पर आधारित नहीं था।

‘ना तो तिरंगे का सम्मान किया और ना ही संविधान का’

मल्लिकार्जुन खड़गे ने यह भी कहा कि संविधान गरीबों को सशक्त बनाता है और शासन के लिए नैतिक मार्गदर्शक के रूप में कार्य करता है। उन्होंने कहा, “आज भी मनुस्मृति की भावना उनमें समाई हुई है और वे इसके लिए हमें दोषी ठहराते हैं। उन्होंने न तो तिरंगे का सम्मान किया और न ही संविधान का, यही वजह है कि 26 जनवरी, 2002 को RSS मुख्यालय को राष्ट्रीय ध्वज फहराने के लिए मजबूर करने के लिए अदालत के आदेश की जरूरत पड़ी।”
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