दिग्गजों के लडऩे से लाभ की उम्मीद
पार्टी के रणनीतिकारों का मानना है कि अधिकतर राज्यों में कांग्रेस सत्ता से बाहर है। यदि दिग्गज नेताओं को चुनाव में उतारा जाता है तो उसका असर कार्यकर्ताओं के मनोबल पर दिखेगा और पार्टी एकजुट होकर लड़ेगी। साथ ही आसपास की सीटों के समीकरण भी बदलने से लाभ होगा।
पिछले चुनाव की तुलना में इस बार स्थिति अलग है। 2019 में कांग्रेस की राजस्थान, मध्यप्रदेश व छत्तीसगढ़ में सरकार थी। इनमें राजस्थान और मध्यप्रदेश में कांग्रेस का बहुमत मार्जिन पर था। वहीं दिग्गज नेताओं ने हार के बाद मंत्री पद जाने के चलते लोकसभा चुनाव लडऩे से मना कर दिया था। इस बार कांग्रेस विपक्ष में है। यदि कोई दिग्गज नेता चुनाव हार भी जाता है तो उसकी स्थिति पर ज्यादा असर नहीं पड़ेगा।
सोनिया गांधी के राज्यसभा में जाने के बाद उनके रायबरेली से चुनाव मैदान में उतरने की प्रबल संभावना है। पार्टी का मानना है कि उनके चुनाव में उतरने से अन्य सीटों पर असर दिख सकता है।
जोधपुर से 1980 से 1998 तक छह में से पांच लोकसभा चुनाव जीते थे। पिछले चुनाव में उनके पुत्र वैभव गहलोत की बड़े अंतर से हार हुई थी। इस बार खुद जोधपुर से उम्मीदवार बनें तो जालौर, पाली, बाड़मेर सीट पर असर पड़ सकता है।
लोकसभा कभी चुनाव नहीं लड़े। इस बार राजनांदगांव से उम्मीदवार बनाया जा सकता है। स्क्रीनिंग कमेटी ने उनके नाम पर चर्चा की है।
छत्तीसगढ़ के प्रभारी हैं, जन समर्थन देखते हुए टोंक-सवाईमाधोपुर से उतारा जा सकता है। इससे समीप की अजमेर, दौसा, धौलपुर-करौली सीट पर असर पड़ सकता है।
अभी असम और मध्यप्रदेश का प्रभार है। उन्हें फिर से अलवर से चुनाव मैदान में उतारा जा सकता है।
फिलहाल उत्तराखंड की जिम्मेदारी है, लेकिन अपने गृह राज्य हरियाणा में सक्रिय हैं। अंबाला सीट से चुनाव लड़ाया जा सकता है। इससे हरियाणा की गुटबाजी शांत हो सकती है।
खासतौर पर शेखावटी में उनका असर बढ़ता जा रहा है। सीकर से उम्मीदवार बनाने से झुंझुनू, चुरू व जयपुर ग्रामीण सीट पर भी असर हो सकता है।
मोदी लहर के बावजूद 2019 में बस्तर से चुनाव जीते। विधानसभा चुनाव हारे लेकिन बस्तर से फिर मैदान में उतारना लगभग तय है।
पार्टी के बड़े मुस्लिम चेहरे हैं और बिहार के कटिहार से टिकट दिया जा सकता है। चुनाव तैयारी के लिए उन्हें केरल के प्रभार से मुक्त किया गया था।
कोरोना काल में ऑक्सीजन मेन के नाम से प्रसिद्ध हुए। मोदी सरकार के खिलाफ कई बड़े प्रदर्शन किए। अब बेंगलुरू सेन्ट्रल से उम्मीदवार बनाकर पार्टी युवाओं को संदेश दे सकती है।
पार्टी लगभग सभी बड़े नेताओं को चुनाव में उतारना चाहती है, लेकिन कई नेताओं ने सार्वजनिक तौर पर चुप्पी साध रखी है। पूछने पर यही कहते हैं कि पार्टी कहेगी तो चुनाव लड़ लेंगे।
-दिग्विजय के चुनाव लडऩे पर संशय
मध्यप्रदेश के पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह फिलहाल राज्यसभा सांसद है। पिछला चुनाव भोपाल से हारे थे। उनके लोकसभा चुनाव लड़ने पर अभी संशय बना हुआ है।
-अरूण यादव, पूर्व पीसीसी चीफ, मध्यप्रदेश
दो बार सांसद रह चुके यादव को खंडवा सीट से उतारा जा सकता है।
-अजय सिंह, विधायक, मध्यप्रदेश
फिलहाल चुरहट विधानसभा से विधायक है। सीधी सीट से पिछला लोकसभा चुनाव हारे थे, उन्हें फिर से मैदान में उतारा जा सकता है।