शहीद दिवस के हुए 77 साल
सीएम ने कहा कि आज का साल का पहला दिन है और मुझे लगता है कि शहीद दिवस को करीब 77 साल हो चुके है। आज ही हम लोग अपने शहीदों के प्रति अपना सम्मान और आदर रखते हैं। उन्होंने कहा कि हमें गर्व है कि साल के पहले दिन आदिवासी-मूलवासी के लोग यहां पर आते हैं और अपने पूर्वजों की शहादत को याद करते हुए उन्हें श्रद्धांजलि देते है। आगे और मजबूती के साथ अपने इन शहीदों के प्रति अपना सम्मान मजबूत करते हुए आगे बढ़ेंगे। हमें गर्व है कि ऐसे महापुरुष हमारे बीच रहे और उनके संघर्षों की बदौलत ही आज हम जिंदा है। अपने अधिकार को लेकर संघर्ष अनवरत चल रही है।
खरसावां गोलीकांड के शहीद होंगे चिन्हिंत
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा कि खरसावां गोलीकांड को 77 साल हो चुके है। मामला काफी पुराना है। लेकिन गुआ गोलीकांड के शहीदों को चिन्हिंत किया था और उनके परिजनों को नियुक्ति पत्र दिया था। हमारी सरकार खरसावां गोलीकांड के शहीदों को भी उनके परिजनों को उचित सम्मान देने का काम करेगी।
कब हुआ था खरसावां गोलीकांड?
देश को आजादी मिलने के चार महीने बाद 1 जनवरी 1948 को खरसावां में आदिवासियों पर पुलिस ने अंधाधुंध फायरिंग की थी। इसमें कितने लोगों की मौत हुई, इसके अलग-अलग दावे किए जाते है। खरसावां गोलीकांड को उस समय आजाद भारत का जलियांवाला बाग कांड (Jallianwala Bagh massacre) करार दिया था। बता दें कि उड़ीसा के शासकों ने सरायकेला और खरसावां के विलय का उड़ीसा में प्रस्ताव रख दिया। यह प्रस्ताव वहां के आदिवासी लोगों को मंजूर नहीं था। हालांकि भारत सरकार ने इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया था। इस फैसले के विरोध में आदिवासी लोग आंदोलन कर रहे थे। 1 जनवरी 1948 को खरसावां में बड़ी संख्या में आदिवासी लोग तीर धनुष और अपने पारंपरिक हथियार लेकर विरोध प्रदर्शन कर रहे थे। इसी दौरान उड़ीसा पुलिस ने विरोध कर रहे लोगों पर अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दी थी, जिसमें सैकड़ों लोगों की मौत हुई। हालांकि मौतों के आंकड़े को लेकर अभी भी संशय बना हुआ है। बताया जाता है कि खरसावां हाट मैदान में स्थित एक कुएं में लाशों को डालकर ऊपर से मिट्टी डाल दी गई थी।