देश के चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने शनिवार को जिला अदालतों के जजों, वकीलों और न्यायपालिका में अधीनस्थता की संस्कृति पर खुल कर बात की। मध्यस्थता केंद्र के उद्घाटन के अवसर पर सीजेआइ ने कहा कि हमारी जिला न्यायपालिका में भय का माहौल है। हाई कोर्ट और डिस्टि्रक जजों के बीच हमने समानता का आधार नहीं बनाया। अधीनस्थता की संस्कृति के कारण पक्षकारों, खासकर जमानत चाहने वालों को मिलने वाला न्याय प्रभावित हो रहा है।
उन्होंने सवाल उठाया कि जिला न्यायपालिका जमानत देने से डरती क्यों हैं? उन्होंने जिला न्यायपालिका को देश के न्याय प्रशासन की आधारशिला बताते हुए कहा कि प्रशासनिक न्यायाधीशों द्वारा निरीक्षण की पूरी प्रक्रिया से जिला न्यायाधीशों के मन में डर पैदा होता है, अधीनस्थता की इस संस्कृति को बदलना होगा। उन्होंने बड़ी संख्या में आपराधिक अपीलों के लम्बित रहने का जिक्र करते हुए वकीलों पर सवाल उठाया और कहा कि वह जमानत पर फैसला करने के लिए इतना उत्सुक क्यों है लेकिन आपराधिक अपील पर बहस करने को तैयार नहीं हैं। इस मुद्दे को सुलझाने के लिए सभी को साथ बैठने की जरूरत है। यह िस्थति हमारे देश का अहित कर रही है।
ज्यादा चुप रहना कतई उचित नहीं
राजेंद्र प्रसाद नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी के उद्घाटन समारोह में सीजेआइ ने कहा कि उनके जैसे व्यक्ति के लिए ज्यादा बोलना ठीक नहीं है, लेकिन जिस जगह पर वह हैं वहां ज्यादा चुप रहना भी कतई उचित नहीं है। उन्होंने संत कबीर दास का दोहा ‘अति का भला न बोलना, अति की भली न चुप…’ सुनाते हुए कहा कि उनका ज्यादा चुप रहना भी उचित नहीं है। सीजेआइ ने कहा कि कानून की शिक्षा सिर्फ प्रोफेशनल बनाने के लिए नहीं बल्कि राष्ट्र को आगे बढ़ाने वाले व्यति के तौर पर भी दी जानी चाहिए। इसे बेहतर बनाने के लिए नए विषयों को जोड़ने और बदलाव पर ध्यान देना चाहिए। ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा का दायरा बढ़ाते हुए सभी जगह समान शिक्षा पाठ्यक्रम होना चाहिए।