एक लोक गीत में वर्णन किया गया है…
लोक गीत में व्रती महिलाएं सूर्य से अन्न-धन व सोना मांगती हैं। तो षष्ठी देवी से पुत्र- काहे लागी पूजेलू तुहू देवल घरवा (सूर्य) है।
काहे लागी, कर ह छठी के बरतिया हे, काहे लागी अन-धन सोनवा लागी पूजी देवलघरवा हे।
पुत्र लागी करी हम छठी के बरतिया हे पुत्र लागी।।
(इस लोक गीत के अनुसार से स्पष्ट होता है कि छठी व्रत में सूर्य व छठी मईया की अलग-अलग पूजा की जाती है। जिसमें सूर्य को अर्घ्य (जल) देकर अन्न-धन व सोना देने की कामना की जाती है तो छठी मईया से पुत्र की कामना की जाती है।)
पुत्र प्राप्ति के लिए कोशी रूप में होती है पूजा –
छठ व्रत करने वाली महिलाएं व पुरुष म्मिट्टी की कोशी (आंगन में रंगोली बनाकर मिट्टी की हाथीनुमा कोशी (षष्ठी देवी) की पूजा अर्चना करते हैं। छठ व्रत करने वाले लोग शाम के समय डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य (जल) देकर जब घाट से वापस घर आते हैं तो कोशी के उपर ईख (गन्ना) का चनना बनाकर पूजा की जाती है। जिसे महिलाएं कोशी भरना भी कहती हैं। कोशी के रूप में षष्ठी देवी की पूजा करके उनसे पुत्र के मंगल जीवन व नवविवाहिता महिलाएं पुत्र देने की कामना करती हैं।
शास्त्रों में भी है वर्णन-
छठ व्रत में छठी मइया की पूजा का शास्त्रों में भी वर्णन है। मान्यता है कि राजा प्रिय व्रत की कोई संतान नहीं थी। जिसके चलते राजा उदास रहते थे और राज का राजपाट से मोह भंग होने लगा था। एक बार राजा ने महर्षि कश्यप को अपना दुख बताया तो महर्षि ने राज प्रियव्रत को पुत्रेष्टि यज्ञ करने का परामर्श दिया। जिसके बाद प्रियव्रत ने पुत्रेष्टि यज्ञ कराया। यज्ञ के बाद महाराज की महारानी मालिनी को एक पुत्र हुआ लेकिन वो मृत था। महाराज मृत शिशु को देखकर शोक करने लगे। तभी आकाश से एक ज्योतिर्मय विमान पृथ्वी की ओर आया। विमान में एक दिव्य नारी बैठी थी। उसने राजा से कहा कि वह ब्रह्मा की मानस पुत्री षष्ठी है। मैं अपुत्रों को पुत्र प्रदान करती हूं। उन्होंने ‘पुत्रदाअहम अपुत्राय’ कहकर मृत शिशु को स्पर्श किया तो वह जीवित हो उठा। षष्ठी देवी ने कहा कि जो कार्तिक शुक्ल पक्ष षष्ठी तिथि को मेरी पूजा करेगा उसे पुत्र की प्राप्ति होगी तभी से छठी मईया की पूजा होने लगी।