ससुर से बगावत कर सीएम बने नायडू चंद्रबाबू नायडू आज जिस टीडीपी के सर्वेसर्वा हैं, वह उनके ससुर एनटीआर की बनाई हुई है। अपने ससुर की विरासत पर खड़े चंद्रबाबू ने 1995 में एनटीआर का तख्तापलट कर दिया था। चंद्रबाबू टीडीपी विधायकों के समर्थन से अपने ससुर को हटाकर पहली बार मुख्यमंत्री बने और पार्टी की कमान भी अपने हाथों में ले ली। चंद्रबाबू नायडू के इस कदम के पीछे असल वजह क्या थी, ये वही जानें लेकिन चर्चा इस बात की होती है कि वह एनटीआर की दूसरी पत्नी लक्ष्मी पार्वती की पार्टी और सरकार में बढ़ती दखलंदाजी से नाराज थे।
खुद मुख्यमंत्री बेटे को बनाया मंत्री आंध्र प्रदेश की राजनीति में बड़ा उलट फेर कर सत्ता में आने के बाद टीडीपी प्रमुख चंद्रबाबू नायडू ने न सिर्फ खुद मुख्यमंत्री पद की शपथ ली बल्कि अपने बेटे नारा लोकेश को भी कैबिनेट मंत्री बना दिया। एक क्षेत्रीय दल के तौर नायडू के इस कदम के दूरगामी परिणाम भी राजनीति के इतिहास में दर्ज किए जाएंगे। पिता चंद्रबाबू के नेतृत्व में बेटे लोकश पार्टी के साथ-साथ सरकार चलाने की बारीकियों को भी समझेंगे। हालांकि देश की राजनीति के लिए यह कोई नई या पहली घटना नहीं है।
बेटों को सत्ता सौंपने के बाद नहीं लिया कोई पद चंद्रबाबू से पहले कई क्षेत्रीय दलों के नेताओं ने ऐसा किया है। इनमें तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एस के स्टालिन, तेलंगाना के पूर्व मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव, महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे, पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल का नाम शामिल है। इन सभी नेताओं ने अपनी कैबिनेट में अपने बेटों को मंत्री बनाया। लेकिन इससे उलट बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू यादव और उत्तर प्रदेश के पूर्व सीएम मुलायम पर परिवारवाद को लेकर लगातार आरोप लगाए जाते रहे लेकिन इन दोनों ही नेताओं ने अपने मुख्यमंत्री पद पर बने रहने तक कभी भी अपने बेटों को मंत्री नहीं बनाया या सरकार में कोई पद नहीं दिया।