हम आपको बता दें कि लवईडीह बरपारा के निवासियों को लवईडीह खास व जिला मुख्यालय अंबिकापुर आने के लिए डेम पार करने नाव व ट्यूब का सहारा लेना पड़ता है। ऐसी स्थिति में कई बार हादसा (CG news) भी हो चुका है। पूरा गांव खेती बाड़ी पर निर्भर है, इसलिए दोनों गांव के लोगों को एक दूसरे के गांव में हर रोज आना-जाना पड़ता है।
वहीं कुछ बच्चे स्कूल भी जाते हैं। जिला प्रशासन द्वारा 1994 में लवईडीह बरपारा के लोगों को विस्थापित करने की पहल की गई थी, लेकिन प्रशासनिक उदासीनता के ही कारण आज तक ग्रामीणों के नाम जमीन नहीं चढ़ पाई।
लगभग 15 एकड़ जमीन का कब्जा आज भी जिसकी जमीन थी, उसी के नाम है। लवईडीह बरपारा के ग्रामीणों का एक भी घर विस्थापित किए गए स्थान पर नहीं है। ये आज भी अपने गांव में ही रहते हैं।
CG News: वाहन से 45 किमी बढ़ जाती है दूरी
लवईडीह बरपारा के ग्रामीणों ने कहा कि यहां के लोग अगर दो पहिया व चारपहिया वाहन से सफर करते हैं तो अंबिकापुर जिला मुख्यालय जाने के लिए 45 किमी का सफर तय करना पड़ता है। वहीं अगर लवईडीह बांध (CG news) पर पुलिया का निर्माण करा दिया जाए तो यह दूरी 15 किमी हो जाती है। अगर किसी की तबियत खराब हो जाती है तो बड़ी परेशानी का सामना करना पड़ता है।
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ग्रामीणों ने की रोप-वे निर्माण की मांग
पंच पति सिलकंठ ङ्क्षसह व स्थानीय निवासी प्रशांत यादव सहित अन्य ग्रामीणों का कहना है कि नाव के सहारे जिन्दगी के सफर में अब तक लगभग आधा दर्जन से अधिक लोगों की जान जा चुकी है। लोगों ने शासन से मांग की है कि अगर बांध पर पुल का निर्माण नहीं किया जा सकता तो कम से कम झूला (रोपवे) लगा दें ताकि लोगों की जिन्दगी बच (CG news) सके और आने जाने में परेशानी न हो।
Students across dam on boat: बांध से गांव को फायदा नहीं
ग्रामीणों का कहना है कि घुनघुट्टा डेम (CG news) का निर्माण सिंचाई के लिए कराया गया है। पर उक्त बांध से लवईडीह के लोगों को फायदा नहीं है। इस बांध से जिले के 30 से 35 गांवों को पानी पहुंचता है पर लवईडीह खास व बरपारा के लोगों को सिंचाई के लिए पानी उपलब्ध नहीं हो पाता है। यहां के लोग केवल बांध से उदासीता का दंश झेल रहे हैं। यह भी पढ़ें
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बच्चों को स्कूल जाने के लिए नाव का सहारा
लवईडीह बरपारा में लगभग 50 घर हैं। यहां के छोटे बच्चों को हर दिन स्कूल (CG news) आना जाना पड़ता है। प्राथमिक व मिडिल स्कूल लवईडीह खास में है। इस स्थिति में लवईडीह बरपारा के बच्चों को स्कूल आने जाने के लिए नाव व ट्यूब का सहारा लेना पड़ता है। इस बांध में बारह महीने पानी भरा रहता है। विशेष कर बारिश के दिनों में बांध उफान पर रहता है। ऐसी स्थिति में बच्चे एक टूटी फूटी नाव व ट्यूब के सहारे स्कूल आना-जाना करते हैं।