बता दें, न्यायमूर्ति हरीश टंडन और न्यायमूर्ति रवींद्रनाथ सामंतर की पीठ सोमवार को एसएससी भर्तियों के 10 मामलों की सुनवाई करने वाली थी। ‘व्यक्तिगत आधार’ का हवाला देते हुए, न्यायमूर्ति टंडन ने एक खुली अदालत में, पीठ की ओर से कहा कि वे अब कथित घोटाले से संबंधित मामलों की सुनवाई नहीं कर रहे थे। राज्य सरकार ने नियुक्तियों के लिए एक सलाहकार समिति का गठन किया था।
इससे पहले, न्यायमूर्ति अभिजीत गंगोपाध्याय की एकल पीठ ने सीबीआई को मामले की जांच करने और नियुक्तियों में अनियमितताओं को लेकर डब्ल्यूबीएसएससी के पूर्व सलाहकार शांतिप्रसाद सिन्हा और चार अन्य सदस्यों से पूछताछ करने का निर्देश दिया था। सिन्हा को सीबीआई की पूछताछ का सामना करना पड़ा, जबकि अन्य ने एकल पीठ के निर्देश को चुनौती देते हुए खंडपीठ का रुख किया।
दिलचस्प बात यह है कि न्यायमूर्ति गंगोपाध्याय की एकल-न्यायाधीश पीठ ने न्यायमूर्ति टंडन और न्यायमूर्ति सामंतर की खंडपीठ के आदेशों पर कड़ी आपत्ति दर्ज की थी। न्यायमूर्ति गंगोपाध्याय ने सिन्हा को अपनी संपत्ति के ब्योरे पर अदालत में हलफनामा दाखिल करने का आदेश दिया था।
सिन्हा ने तब एकल-न्यायाधीश पीठ के आदेश के खिलाफ खंडपीठ का रुख किया था। हालांकि खंडपीठ ने एकल-न्यायाधीश पीठ के आदेश को बरकरार रखा, लेकिन उसने सिन्हा को एक सीलबंद लिफाफे में हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया।
न्यायमूर्ति अभिजीत गंगोपाध्याय ने इस बात पर नाराजगी जताते हुए कहा कि हमारे हाथ बंधे हुए हैं। उन्होंने कहा, “मुझे यह कहते हुए खेद हो रहा है कि अपील न्यायालय द्वारा ज्ञात कारण के लिए ‘दोहरे मानदंड का उच्चतम स्तर’ व्यक्त किया गया है। लेकिन न्यायिक अनुशासन बनाए रखने के लिए, मुझे इस तरह के आदेश को स्वीकार करना होगा।”
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1 अप्रैल को, जस्टिस सौमेन सेन और जस्टिस अजय कुमार मुखर्जी की एक अन्य खंडपीठ ने CBI जांच के लिए एकल पीठ के आदेश पर सोमवार तक रोक लगा दी, जब तक कि जस्टिस टंडन और सामंत की पीठ ने इस मामले की सुनवाई नहीं कर ली। बता दें, 2016 में, राज्य सरकार ने विभिन्न सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों में लगभग 13,000 गैर-शिक्षण कर्मचारियों की नियुक्ति की सिफारिश की थी, जिसके बाद WBSSC ने परीक्षा और इंटरव्यू आयोजित किए। जिसके बाद से ऐसे आरोप लगे हैं कि SSC ने लगभग 500 अनियमित भर्तियां की है।
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