ग्रीन पटाखों से 50 फीसदी कम प्रदूषण
ग्रीन पटाखों में पारंपरिक पटाखों के मुकाबले धुआं और खतरनाक गैसें कम निकलती हैं। इससे 40 से 50 फीसदी तक प्रदूषण घटाया जा सकता है।
ऐसे होते हैं ग्रीन पटाखे
ग्रीन पटाखे आकार में छोटे होते हैं। इनमें एल्युमिनियम, बैरियम, पोटेशियम नाइट्रेट और कार्बन का इस्तेमाल नहीं किया जाता है या इनकी मात्रा बहुत कम होती है। ग्रीन पटाखे दिखने, जलने और आवाज में सामान्य पटाखों जैसे होते हैं, लेकिन इनसे नाइट्रोजन और सल्फर जैसी गैसें नहीं निकलतीं। ग्रीन पटाखों में फुलझड़ी, फ्लावर पॉट से लेकर स्काइशॉट जैसे सभी पटाखे मिलते हैं।
नीरी की खोज
भारत में ग्रीन पटाखे राष्ट्रीय पर्यावरण अभियांत्रिकी अनुसंधान संस्थान (नीरी) की ईजाद हैं। अब देशभर की कई संस्थाएं इन्हें बना रही हैं।
कैसे पहचाने असली हैं या नकली
ग्रीन पटाखों के पैकेटों पर लगे क्यूआर कोड को स्कैन कर आप इनकी पहचान कर सकते हैं।
ग्रीन पटाखों की खास बातें
1. पानी छोडऩे वाले पटाखे
ग्रीन पटाखे जलने के बाद पानी के कण पैदा करते हैं, जिससे आतिशबाजी में निकलने वाली हानिकारक गैसों के कण घुल जाते हैं। इससे धूल के कण ऊपर नहीं उठते। इससे प्रदूषण कम होता है।
2. कम एल्युमिनियम वाले
सामान्य पटाखों की तुलना में 50 से 60 फीसदी तक कम एल्युमिनियम का उपयोग होता है। इसे नीरी ने सेफ मिनिमल एल्युमिनियम नाम दिया है।
3. कम सल्फर व नाइट्रोजन वाले
इन पटाखों को स्टार क्रैकर कहा गया है। इनमें ऑक्सिडाइजिंग एजेंट का उपयोग होता है, जिससे पटाखे फोडऩे के बाद सल्फर और नाइट्रोजन कम मात्रा में निकलते हैं। इसके लिए इन पटाखों में खास रसायन डाले जाते हैं।
4. अरोमा पटाखे
इन पटाखों को जलाने से न केवल हानिकारक गैसें कम पैदा होंगी, बल्कि ये अच्छी खुशबू भी बिखेरते हैं। यानी आतिशबाजी का आनंद दोगुना हो सकता है।
परंपरागत पटाखों में तत्व और नुकसान
तांबा : इसके संपर्क में आने पर श्वसन तंत्र में तकलीफ होती है।
कैडमियम : ब्लड को ऑक्सीजन पहुंचाने की क्षमता प्रभावित करता है।
जस्ता : धातु जैसी सुगंध से बुखार और उल्टी की तकलीफ।
सीसा : तंत्रिका तंत्र को गंभीर हानि।
मैग्नीशियम : धुएं से मेटल फ्यूम फीवर होने की आशंका बढ़ जाती है।
सोडियम : ये रिएक्टिव तत्व है। इससे व्यक्ति जल सकता है।