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Lok Sabha Election 2024: छत्तीसगढ़ में BJP का सभी सीटें जीतने पर फोकस, पायलट कांग्रेस को दे रहे बूस्टर डोज

एशिया का सबसे बड़ा कोयला हब होने के बावजूद छत्तीसगढ़ का कोरबा शहर शिक्षा व चिकित्सा जैसी मूलभूत सुविधाओं से वंचित है। पूरे इलाके में न तो अच्छे स्कूल-कॉलेज हैं और न ही अस्पताल। कारोबारी राम सिंह अग्रवाल ने बताया कि यहां होलसेल का एक भी बाजार नहीं है और खाद्य सामग्री भी महंगी है। पढ़िए रुपेश मिश्रा का विशेष लेख…

Feb 22, 2024 / 09:55 am

Paritosh Shahi

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एशिया के सबसे बड़े कोयला हब की पहचान रखने वाले कोरबा पहुंचते ही अजीब सी गंध और जमीन से आसमान तक काली धुंध नजर आती है। बिलासपुर से ढाई घंटे का सफर तय कर मैं छत्तीसगढ़ के इस आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र में रेलमार्ग से पहुंचा था। इस इलाके की पहचान ‘काले हीरों’ के गढ़ के रूप में है। इस विपुल संपदा के बावजूद समूचे छत्तीसगढ़ की सियासत में कोरबा अलग-थलग पड़ गया है। जबकि इस क्षेत्र में देश के सबसे बड़े पावर प्लांट भी हैं। इनके जरिए छत्तीसगढ़ के साथ दिल्ली, महाराष्ट्र, दादर नागर हवेली और पुदुचेरी तक बिजली आपूर्ति की जाती है। यहां के गेवरा, दीपका और कुसमुंडा की कोयला खदानों से राजस्थान, मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश और गुजरात सहित अन्य राज्यों के बिजली घरों को कोयला आपूर्ति की जाती है। मोटे अनुमान के अनुसार प्रतिदिन करीब एक लाख टन कोयला सड़क मार्ग से और सवा लाख टन से ज्यादा कोयला ट्रेनों के जरिए देश के अन्य हिस्सों में भेजा जाता है।

 


एशिया का सबसे बड़ा कोयला हब होने के बावजूद कोरबा शहर शिक्षा व चिकित्सा जैसी मूलभूत सुविधाओं से वंचित है। पूरे इलाके में न तो अच्छे स्कूल-कॉलेज हैं और न ही अस्पताल। कारोबारी राम सिंह अग्रवाल ने बताया कि यहां होलसेल का एक भी बाजार नहीं है और खाद्य सामग्री भी महंगी है। कारण यह भी है कि यह क्षेत्र मुख्य मार्ग से कटा हुआ है। करीब 38 किमी पहले चांपा से ही रेललाइन डायवर्ट हो जाती है। यहां ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर बनने की जरूरत है। जब कोयला लेने के लिए रेल लाइन का जाल बिछाया जा सकता है तो यात्री सुविधाओं के लिए क्यों नहीं?

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पिछले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस छत्तीसगढ़ की जिन दो सीटों पर ही जीत पाई थी उनमें बस्तर व कोरबा लोकसभा सीट शामिल हैं। शेष 9 सीटों पर भारतीय जनता पार्टी ने कब्जा किया। इस इलाके में आदिवासी इंदिरा गांधी के नाम पर कांग्रेस को समर्थन देते रहे हैं। दरअसल, कोरबा लोकसभा सीट परिसीमन के बाद साल 2009 में अस्तित्व में आई थी।

परिसीमन के बाद इस सीट पर अब तक तीन आम चुनाव हो चुके हैं। इस साल चौथी बार यहां से जनता अपना प्रतिनिधि चुनेगी। चुनावी नतीजों को देखें तो अब तक के चुनावों में दो बार कांग्रेस और एक बार भाजपा को जीत हासिल हुई है। कांग्रेस की ज्योत्सना महंत अभी कोरबा से सांसद हैं। उनके पति भी कांग्रेस के दिग्गज नेता हैं। अभी वे नेता प्रतिपक्ष की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं।

कांग्रेस खेमे में चर्चा इस बात की है कि इस बार भी पार्टी महंत दंपती में से किसी को भी टिकट दे सकती है। वहीं भारतीय जनता पार्टी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे पर चुनाव मैदान में है। आदिवासी इलाके में मतदाताओं के मन को भांपना आसान नहीं है, इसीलिए यहां के सियासी समीकरण भी आसानी से समझ नहीं आते।

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सियासी रण में क्लीन स्वीप के मूड से उतर रही भाजपा इस बार सभी सीटों पर जीत की रणनीति बनाने में जुट गई है। वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को 10 सीटें मिली थी, जबकि 2019 में 50.70 प्रतिशत वोट मिलने के बावजूद उसे एक सीट कम मिली। विधानसभा चुनावों में बड़े पैमाने पर मौजूदा विधायकों के टिकट कटे थे। इसी तर्ज पर मौजूदा सांसदों के टिकट पर भी कैंची चल सकती है।

उनकी जगह पार्टी युवाओं को तरजीह देने का मानस बना रही है। पार्टी सूत्रों के मुताबिक अधिकतर उम्मीदवार इस बार बिल्कुल नए होंगे। छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव के लिए भाजपा ने चार सांसदों को विधानसभा चुनाव में उतारा था, जिसमें विजय बघेल, गोमती साय, रेणुका सिंह और अरुण साव शामिल थे। इनमें विजय बघेल को पाटन से तत्कालीन मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से शिकस्त हासिल हुई थी।

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यूं तो भाजपा मोदी की गारंटी और उन्हीं के चेहरे पर लोकसभा चुनाव लडऩे का ऐलान कर चुकी है। लेकिन, इसके अलावा छत्तीसगढ़ में भाजपा के दो बड़े मास्टर स्ट्रोक और भी हैं, जिनके जरिए सियासी रण साधा जाएगा। पहला बड़ा मास्टर स्ट्रोक है महतारी वंदन योजना, जिसमें महिलाओं को मध्यप्रदेश की लाड़ली बहना योजना की तर्ज पर 1000 रुपए महीना दिया जाएगा, जिसका फॉर्म भरवाना भी सरकार ने शुरू कर दिया है। वहीं, दूसरा बड़ा मास्टर स्ट्रोक 3100 रुपए में धान की खरीद है। भाजपा ने अपने घोषणापत्र में वादे के मुताबिक धान की खरीदी की है।

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छत्तीसगढ़ में कांग्रेस आलाकमान ने हतोत्साहित कांग्रेसी कार्यकर्ताओं को बूस्टर डोज देने का जिम्मा राजस्थान के पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट को सौंपा है। पायलट के समक्ष यहां चुनौतियां कम नहीं हैं। सबसे बड़ी चुनौती चुनाव लडऩे से कतरा रहे वरिष्ठ नेताओं को मैदान में उतारने की है। कई नेताओं को अपने सियासी भविष्य पर आंच आने की चिंता सता रही है। हालांकि हार के बावजूद लोकसभा में कांग्रेस को अपने कोर वोट बैंक पर भरोसा है।

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