2019 में दो सीटों पर हारे थे उपेंद्र कुशवाहा
राष्ट्रीय लोक मोर्चा (रालोमो) के प्रमुख और पूर्व केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा इस चुनाव मैदान में एकबार फिर से काराकाट से चुनावी मैदान में भाग्य आजमा रहे हैं। पिछले चुनाव में ये उजियारपुर और काराकाट सीट से चुनाव लड़े थे, लेकिन दोनों सीटों पर इन्हें हार का मुंह देखना पड़ा था। पिछले चुनाव में हालांकि कुशवाहा की पार्टी विपक्षी दलों के महागठबंधन में थी, जबकि इस बार वह एनडीए में शामिल हैं।
मांझी गया (सुरक्षित) लेाकसभा सीट से चुनावी मैदान में
हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा (हम) के संरक्षक जीतनराम मांझी के लिए यह लोकसभा चुनाव काफी अहम माना जा रहा है। मांझी गया (सुरक्षित) लेाकसभा सीट से चुनावी मैदान में हैं। मांझी का मुख्य मुकाबला महागठबंधन में शामिल राजद के कुमार सर्वजीत से है। पिछले चुनाव में भी मांझी गया से चुनाव मैदान में थे, लेकिन गया के मतदाताओं ने एनडीए के प्रत्याशी विजय कुमार मांझी को इस क्षेत्र का ’मांझी’ बनाकर यहां के नाव की सवारी करने की जिम्मेदारी सौंपी थी। लेकिन इस बार परिस्थितियां बदली हैं। जीतनराम मांझी की पार्टी इस बार एनडीए के साथ चुनावी मैदान में है।
चिराग के लिए हाजीपुर सीट प्रतिष्ठा का सवाल
इधर, लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के प्रमुख चिराग पासवान तो अपने चाचा पशुपति कुमार पारस से हाजीपुर सीट लेकर बढ़त बना ली है। लेकिन यह सीट उनके लिए प्रतिष्ठा का सवाल बन गया है। चिराग के पिता और पूर्व केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान इस क्षेत्र का कई बार लोकसभा में प्रतिनिधित्व कर चुके थे। पिछले चुनाव में यहां से लोजपा के टिकट पर पशुपति कुमार पारस चुनाव लड़े थे और विजयी हुए थे।
यह चुनाव पप्पू यादव के लिए प्रतिष्ठा का सवाल
इस चुनाव से पहले अपनी जन अधिकार पार्टी का कांग्रेस में विलय कर चुके पूर्व सांसद पप्पू यादव भी बतौर निर्दलीय पूर्णिया से चुनावी मैदान में ताल ठोंक रहे हैं। महागठबंधन में यह सीट राजद के कोटे में चली गई और राजद ने यहां से बीमा भारती को चुनावी मैदान में उतारा है। ऐसे में यह चुनाव पप्पू यादव के लिए प्रतिष्ठा का सवाल बन गया है।
चुनाव मैदान में उतर सकते हैं मुकेश सहनी
उधर, विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) के महागठबंधन में शामिल होने और राजद कोटे से तीन सीट – गोपालगंज, मोतिहारी और झंझारपुर वीआईपी को मिलने के बाद माना जा रहा है कि पार्टी के प्रमुख मुकेश सहनी भी खुद चुनाव लड़ने के लिए मैदान में उतर सकते हैं। हालांकि पार्टी ने अब तक अपने उम्मीदवारों की आधिकारिक घोषणा नहीं की है।
बहरहाल, सभी राजनीतिक दल के कार्यकर्ता अपने प्रमुखों और पार्टी के सर्वेसर्वा को विजयी बनाने के लिए हर हथकंडे अपना रहे हैं, मगर चार जून को चुनाव परिणाम आने पर ही पता चलेगा कि मतदाताओं ने पार्टी के किस ’खेवैया’ को अपना ’खेवनहार’ बनाया। बिहार में लोकसभा चुनाव के सभी सात चरणों में मतदान होना है।