आज भी हमारे जेहन में जिंदा हैं भगत सिंह
छोटी सी उम्र में दुनिया को अलविदा कहने वाला यह वीर जवान उस दिन भारत के इतिहास में अमर हो गया, जब आजादी के लिए लड़ते हुए 23 मार्च 1931 को भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को ब्रिटिश हुकूमत ने फांसी से लटका दिया था। इस बात को करीब 93 साल गुजर गए हैं, लेकिन भगत सिंह आज भी हमारे जेहन में जिंदा हैं।ब्रिटिश हुकूमत भी खाती थी भारत मां के इन शेरों से खौफ
सरदार भगत सिंह को ब्रिटिश सरकार ने लाहौर षड्यंत्र केस में शामिल होने के आरोप में फांसी पर चढ़ाया था। उनके साथ राजगुरु और सुखदेव को भी सजा-ए-मौत दी गई थी। फांसी की सजा सुनाने के बाद भी ब्रिटिश हुकूमत भारत मां के इन शेरों से खौफ खाती रही। न सजा का डर, न मरने का गम… बस जुबां पर था ‘इंकलाब जिंदाबाद।’हंसते-हंसते फांसी के फंदे को चूमा
भगत सिंह और उनके साथियों ने हंसते-हंसते फांसी के फंदे को चूमा था और इंकलाब-जिंदाबाद का नारा बुलंद किया। अंग्रेजों ने उनकी सांसें तो थाम दी, लेकिन उनके बलिदान के बाद पूरे देश में विद्रोह की आग तेज हो गई। यह भी पढ़ें
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लिखने और पढ़ने का था बहुत शौक
उनका व्यक्तित्व और शख्सियत कुछ ऐसी थी, जिसने हर किसी को अपना दीवाना बनाया था। उन्हें लिखने और पढ़ने का बहुत शौक था, साथ ही उनके बार में कहा जाता था कि उनकी शायरियों को सुनकर आदमी का इश्क इंकलाब हो जाएगा। उनके शब्दों में वतन से प्रेम समाया हुआ था। भगत सिंह के साहित्यिक प्रेम की सबसे बड़ी पेशकश उनकी जेल डायरी है। जिसमें उन्होंने कवियों और शायरों को लेकर काफी चर्चा की है। यह भी पढ़ें
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जेल डायरी
‘लिख रहा हूं मैं अंजाम जिसका कल आगाज आएगा, मेरे लहू का हर एक कतरा इंकलाब लाएगा। मैं रहूं या न रहूं पर ये वादा है मेरा तुमसे, कि मेरे बाद वतन पर मरने वालों का सैलाब आएगा।’ इस तरह के उनके अनमोल वचन देश प्रेमियों के दिलों में घर कर गए और उन्हें सदा के लिए अमर कर दिया। सीने में जुनूं, आंखों में देशभक्ति की चमक रखता हूं, दुश्मन की सांसे थम जाए, आवाज में वो धमक रखता हूं। ऐसी शख्सियत रखने वाले भगत सिंह आज हमारे बीच में नहीं हैं। लेकिन, भारत के इतिहास और देशवासियों के जेहन में वो सदा के लिए अमर हो गए। उनकी विरासत आज भी प्रेरणा का स्रोत है।