11वीं या 12वीं शताब्दी ईस्वी पूर्व की हैं मूर्तियां
ये मूर्तियां शक्तिनगर के पास कृष्णा नदी पर एक पुल के निर्माण के दौरान नदी के किनारे मिली है। काम कर रही टीम ने उन्हें सुरक्षित निकाला और तुरंत स्थानीय प्रशासन को इसकी सूचना दी। जांच करने वाले पुरातत्वविदों का कहना है कि यह मूर्तियां ग्यारहवीं या बारहवीं शताब्दी ईस्वी पूर्व की हैं।
मूर्तियों को बचाने के लिए नदी में डुबोया गया
प्रसिद्ध इतिहासकार पद्मजा देसाई के अनुसार, दस अवतारों को दर्शाने वाली आभा के साथ खड़ी विष्णु की मूर्ति 11वीं सदी के कल्याण चालुक्य वंश की मानी जाती है। इन मूर्तियों को तराशने के लिए इस्तेमाल की गई हरी मिश्रित चट्टान कल्याण चालुक्यों के समय से उनकी उत्पत्ति का संकेत देती है। अनुमान लगाया जा रहा है कि इन कलाकृतियों को अंतर-धार्मिक युद्धों के दौरान विरोधियों से बचाने के लिए जानबूझकर नदी में डुबोया गया होगा।
मूर्ति में भगवान विष्ण के दस अवतारों के दर्शन
रायचूर विश्वविद्यालय में प्राचीन इतिहास और पुरातत्व व्याख्याता डॉ. पद्मजा देसाई ने कहा कि भगवान विष्णु की मूर्ति किसी मंदिर के गर्भगृह की शोभा बढ़ाती होगी। मंदिर के संभावित विनाश के समय उसे नदी में गिरा दिया गया होगा। कृष्णा बेसिन में पाई गई मूर्ति अद्वितीय विशेषताओं को प्रदर्शित करती है। यह ‘दशावतार’ या मत्स्य, कूर्म, वराह, नरसिम्हा, वामन, राम, परशुराम, कृष्ण, बुद्ध और कल्कि सहित भगवान विष्णु के दस अवतारों को दर्शाने वाले एक चाप से घिरा हुआ है।
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