अफगानिस्तान की सत्ता पर तालिबान के काबिज होने के बाद भारत की कूटनीतिक भूमिका अहम मानी जा रही है। तालिबानी आतंकियों से सुरक्षा और शांति के बढ़ते खतरे को देखते हुए भारत जो रुख अपना रहा है, उसे अमरीका और रूस न सिर्फ अहमियत दे रहे हैं बल्कि, भारत को भरोसे में लेकर आगे बढऩे की बात कर रहे हैं।
तालिबानी सरकार से दोस्ती को बेचैन दिख रहा चीन भी तालिबान के आतंकियों को लेकर अपना रुख स्पष्ट नहीं कर पा रहा है। ऐसे में आतंकवाद पर भारत की राय और भूमिका ब्रिक्स, शंघाई सहयोग संगठन यानी एससीओ समेत कई और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर प्रमुखता से स्वीकार की गई है।
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बता दें कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अगले हफ्ते यानी 24 सितंबर को वाशिंगटन में होने वाले क्वाड समिट में शामिल होंगे। इसके लिए संभवत: वह अमरीका जाएंगे। कोरोना महामारी का दौर शुरू होने के बाद से यह उनकी पहली अंतरराष्ट्रीय यात्रा होगी। इस बार क्वाड बैठक में भी अफगानिस्तान प्रमुख मुद्दा रहेगा। इसके अलावा, अमरीकी राष्ट्रपति जो बिडेन से मुलाकात में भारत, अमरीका और अफगानिस्तान के मुद्दे पर रणनीतिक सहमति बनाने की कोशिश भी रहेगी। अफगानिस्तान के मुद्दे पर अमरीका लगातार भारत के संपर्क में है। दोनों देश अभी तक तमाम रणनीतिक व कूटनीतिक स्तर पर गंभीरता से बात करते रहे हैं। अमरीका इस समय अफगानिस्तान के मुद्दे पर भारत के रुख को ज्यादा तरजीह दे रहा है। दोनों आतंकवाद और सुरक्षा खतरों पर बात कर रहे हैं। अमरीकी और भारतीय एजेंसियां तालिबानी आतंकियों से सुरक्षा खतरे को मिले इनपुट पर मिलकर भविष्य की रणनीति बना रहे हैं।
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दूसरी ओर रूस भी अफगानिस्तान के मुद्दे पर भारत को अपनी तरफ खींचने में जुटा है। हालांकि, रूस का रुख अभी तक तालिबान को लेकर नरम है, लेकिन आतंकवाद को लेकर उसकी भी चिंता भारत वाली ही है। इसको देखते रूसी सुरक्षा अधिकारी भी भारतीय एजेंसियों से लगातार संपर्क में बने हुए हैं। रूस इस मामले में भारत से दोस्ती को महत्वपूर्ण मानते हुए उसके साथ चलने की कोशिश कर रहा है। वहीं, चीन इस मामले में काफी फूंक-फूंककर आगे कदम बढ़ा रहा है। पाकिस्तान और तालिबान दोनों के मामले में वह विकास के मुद्दे पर आर्थिक सहयोग तो देने को तैयार दिख रहा है, लेकिन सुरक्षा के मुद्दे पर वह बाकि देशों की रणनीति को परख कर आगे बढऩा चाहता है।