2015-16 के बाद से 517 लोकसभा सीटों पर गरीबों की आबादी में गिरावट देखी गई है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के सामाजिक-आर्थिक संकेतकों पर हार्वर्ड विश्वविद्यालय के प्रोफेसर एसवी सुब्रमण्यन के नेतृत्व वाली एक टीम के डेटाबेस से पता चला है कि बहुआयामी गरीबी में रहने वाली आबादी का हिस्सा 517 सीटों पर गिरा और केवल 26 निर्वाचन क्षेत्रों में बढ़ा है। जिन 26 सीटों पर 2015-16 के बाद गरीबी बढ़ी, उनमें से केवल छह सीटों के लोगों ने इस बार अलग पार्टी को वोट दिया। बाकी 2019 की अपनी पसंद पर कायम रहे।
हालांकि, केवल सात सीटों पर गरीबी में 1 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि देखी गई। मेघालय के शिलांग में 6.01 प्रतिशत अंक की सबसे अधिक वृद्धि देखी गई। इसके बाद बिहार के पटना साहिब में 4.52 प्रतिशत अंक की वृद्धि देखी गई। छह सीटें ऐसी हैं जहां आधी से अधिक आबादी बहुआयामी गरीबी में जी रही है। इनमें तीन बिहार में, दो उत्तर प्रदेश में और एक झारखंड में है। इनमें से पांच सीटों पर मतदाताओं ने 2019 की तरह उसी पार्टी को फिर से चुना। केवल यूपी का श्रावस्ती ही बदलाव हुआ।
30 सीटें छीनने में सफल रही भाजपा
भाजपा ने अपने सहयोगियों जनता दल (यूनाइटेड), जनता दल (सेक्युलर) और राष्ट्रीय लोक दल (आरएलडी) को तीन सीटें छोड़ दीं, जिनमें से सभी ने जीत हासिल की। हालांकि, भाजपा प्रतिद्वंद्वी पार्टियों से 30 सीटें छीनने में सफल रही, जिसमें बीजू जनता दल (बीजेडी) की 12 और कांग्रेस की छह सीटें शामिल थीं। इनमें से एक निर्वाचन क्षेत्र पर 2019 में लोक जनशक्ति पार्टी (एलजेपी) ने चुनाव लड़ा था, लेकिन इस बार भाजपा ने चुनाव लड़ा और जीत हासिल की।
भाजपा ने अपने सहयोगियों जनता दल (यूनाइटेड), जनता दल (सेक्युलर) और राष्ट्रीय लोक दल (आरएलडी) को तीन सीटें छोड़ दीं, जिनमें से सभी ने जीत हासिल की। हालांकि, भाजपा प्रतिद्वंद्वी पार्टियों से 30 सीटें छीनने में सफल रही, जिसमें बीजू जनता दल (बीजेडी) की 12 और कांग्रेस की छह सीटें शामिल थीं। इनमें से एक निर्वाचन क्षेत्र पर 2019 में लोक जनशक्ति पार्टी (एलजेपी) ने चुनाव लड़ा था, लेकिन इस बार भाजपा ने चुनाव लड़ा और जीत हासिल की।
गरीबी घटने वाली सीटों का सियासी गणित