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धर्म के झगड़े में बाप को दफनाने के लिए सरकार और कोर्ट से लड़ रहा एक बेटा, 15 दिन से पड़ी है लाश, अब SC में फैसला सुरक्षित

सुप्रीम कोर्ट ने छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय के 9 जनवरी, 2025 के आदेश को चुनौती देने वाली विशेष अनुमति याचिका पर अपना आदेश सुरक्षित रख लिया है, जिसमें याचिकाकर्ता की यह याचिका खारिज कर दी गई थी कि उसके पिता, जो एक ईसाई पादरी थे, को छिंदवाड़ा गांव के कब्रिस्तान में दफनाया जाए। छत्तीसगढ़ राज्य की […]

नई दिल्लीJan 22, 2025 / 02:30 pm

Anish Shekhar

सुप्रीम कोर्ट ने छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय के 9 जनवरी, 2025 के आदेश को चुनौती देने वाली विशेष अनुमति याचिका पर अपना आदेश सुरक्षित रख लिया है, जिसमें याचिकाकर्ता की यह याचिका खारिज कर दी गई थी कि उसके पिता, जो एक ईसाई पादरी थे, को छिंदवाड़ा गांव के कब्रिस्तान में दफनाया जाए। छत्तीसगढ़ राज्य की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दफन के लिए एक निर्दिष्ट क्षेत्र का सुझाव दिया, जो ईसाई आदिवासियों के लिए अलग से निर्धारित किया गया है, जो गांव से लगभग 20-30 किलोमीटर दूर है। उन्होंने इसे सार्वजनिक व्यवस्था का मुद्दा बताते हुए इसे संवेदनशीलता से संभालने की आवश्यकता बताई।
सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने इस पर सवाल उठाया कि अगर वर्षों से ईसाई आदिवासियों और हिंदू आदिवासियों को एक साथ दफनाने पर कोई आपत्ति नहीं उठाई गई थी, तो अब अचानक हिंदू आदिवासियों की आपत्तियां क्यों आईं। इस पर कोर्ट ने यह भी कहा कि मृतकों को सम्मानजनक तरीके से दफनाने का अधिकार सर्वोच्च महत्व का है और मामले को सौहार्दपूर्ण तरीके से सुलझाने की आवश्यकता जताई।
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को इस बात पर दुख जताया कि छत्तीसगढ़ के एक गांव में एक व्यक्ति को अपने पिता को ईसाई रीति-रिवाजों से दफनाने के लिए शीर्ष अदालत आना पड़ा, क्योंकि अधिकारी इस मुद्दे को सुलझाने में विफल रहे। कोर्ट ने कहा कि बीते वर्षों और दशकों में क्या हुआ और क्या स्थिति थी, आपत्ति अब ही क्यों उठाई जा रही है?
मामले की सुनवाई कर रही जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की बेंच ने सवाल किया- किसी व्यक्ति को किसी खास गांव में क्यों नहीं दफनाया जाना चाहिए? शव 7 जनवरी से मुर्दाघर में पड़ा हुआ है. यह कहते हुए दुख हो रहा है कि एक व्यक्ति को अपने पिता को दफनाने के लिए सुप्रीम कोर्ट आना पड़ रहा है।
पीठ ने कहा, “हमें यह कहते हुए दुख हो रहा है कि न तो पंचायत, न ही राज्य सरकार या हाईकोर्ट इस समस्या का समाधान कर पाए। हम हाईकोर्ट की इस टिप्पणी से हैरान हैं कि इससे कानून-व्यवस्था की समस्या पैदा होगी। छत्तीसगढ़ सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दलील दी कि गांव में ईसाइयों के लिए कोई कब्रिस्तान नहीं है और मृत व्यक्ति को गांव से 20 किलोमीटर दूर किसी स्थान पर दफनाया जा सकता है।

यह है मामला

सुप्रीम कोर्ट बस्तर के ग्राम छिंदवाड़ा निवासी रमेश बघेल की याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जिसने छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देते हुए याचिका दायर की है। हाईकोर्ट ने उसके पिता जो पादरी थे, को गांव के कब्रिस्तान में ईसाइयों के लिए निर्धारित क्षेत्र में दफनाने की मांग वाली याचिका को शांति भंग की आशंका पर खारिज कर दिया था। बघेल ने अपनी याचिका में कहा कि ग्रामीणों ने उनके पादरी पिता को कब्रिस्तान में दफनाने पर उग्र विरोध किया था। साथ ही पुलिस ने उन्हें कानूनी कार्रवाई की धमकी दी थी।

दोनों पक्षों के तर्क

सोमवार को सुनवाई के दौरान बघेल की पैरवी कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता कोलिन गोंजाल्विस ने कहा कि राज्य सरकार द्वारा प्रस्तुत शपथपत्र से पता चलता है कि उनके परिवार के सदस्यों को भी गांव में दफनाया गया था और मृतक को दफनाने की अनुमति नहीं दी जा रही थी, क्योंकि वह ईसाई थे। गोंजाल्विस ने स्पष्ट किया कि उनके मुवक्किल अपने पिता को गांव के बाहर दफनाना नहीं चाहते। राज्य सरकार के वकील तुषार मेहता ने कहा कि पादरी का बेटा आदिवासी हिंदुओं और आदिवासी ईसाइयों के बीच अशांति पैदा करने के लिए अपने पिता को अपने परिवार के पैतृक गांव के कब्रिस्तान में दफनाने पर अड़ा हुआ है।

अगली सुनवाई कल

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि शव 7 जनवरी से मुर्दाघर में है, समाधान क्या है? मेहता ने कहा कि उनकी याचिका में कहा गया है कि गांव वालों की तरफ से आपत्ति है। मेहता ने कोर्ट से अनुरोध किया कि मामले की सुनवाई मंगलवार या बुधवार को की जाए, वे बेहतर हलफनामा देंगे। जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि अदालत याचिकाकर्ता को जाने और दफनाने की अनुमति दे सकता है, और मामला समाप्त हो जाएगा। हालांकि, मेहता ने मामले में जल्दबाजी में फैसला न सुनाने का आग्रह किया और अनुच्छेद 25 का हवाला देते हुए कहा कि इसका उद्देश्य अराजकता पैदा करना नहीं है। मेहता ने कहा कि समाधान यह है कि गांव में ईसाई जो कुछ भी कर रहे हैं, याचिकाकर्ता को भी वही करना चाहिए। सुनवाई के बाद पीठ ने मामले की अगली सुनवाई बुधवार को रखी है।

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