ऐसे लगाया उम्र का पता
जियोग्लिफ की आयु पता लगाने के लिए डॉ. शिवनागिरेड्डी ने प्रागैतिहासिक रॉक आर्ट एक्सपर्ट प्रोफेसर रवि कोरीसेटर की मदद ली। प्रोफेसर कोरीसेटर ने इस जियोग्लिफ को लौह युग का बताया, जो 1000 ईसा पूर्व या इसके आसपास रहा था। कोरीसेटर ने बताया कि यह चक्रमहापाषाण युग में अंत्येष्टि स्थलों या किसी विशेष प्रयोजन की प्लानिंग के लिए तैयार किया गया होगा। यह चक्र सभ्यता की अन्य जानकारी हासिल करने के लिए मॉडल का काम कर सकता है।
पुरातात्त्विक स्थल के रूप में मिलेगी पहचान
जियोग्लिफ के पुरातात्त्विक महत्व को ध्यान में रखते हुए टीम ने मूडू चिंतालपल्ली गांव के लोगों से इस स्थान की हिफाजत करने की अपील की है। प्लिच इंडिया फाउंडेशन के शोध सहयोगी सनाथन ने कहा है कि इस साइट को महाराष्ट्र के रत्नागिरी क्षेत्र में प्रसिद्ध कोंकण पेट्रोग्लिफ साइटों की तरह पुरातात्त्विक पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जा सकता है। यह स्थान हैदराबाद और सिकंदराबाद से महज 30-40 किलोमीटर की दूरी पर है।
आसपास मिली और भी प्रागैतिहासिक आकृतियां
जियोग्लिफ के अलावा पुरातत्त्व टीम ने जियोग्लिफ से महज पांच मीटर दूर कई खांचों (ग्रूव्ज)की भी पहचान की है, जिन्हें 4000 ईसा पूर्व नवपाषाण काल का बताया है। इसके एक किलोमीटर की परिधि में तीन प्रागैतिहासिक रॉक आश्रयों की खोज की गई है, जो बैल, हिरण, साही और मुखौटे पहने मानव आकृतियां उकेरी गई हैं। टीम के मुताबिक ये कलाकृतियां मेसोलिथिक और गेगालिथिक काल की हैं।